विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। पुराने जमाने में जिन लोगों का दिवाला निकल जाता था, वह हाथ जोड़कर क्षमा याचना करते हुए देनदारों को अपनी मजबूरी बताते और शर्मिंदगी जाहिर करते हुए कहते थे कि भैया अब हमारे पास कुछ नहीं बचा है आपको देने के लिए। वे बार-बार रिरियाते घिघियाते और आंख से आंख मिलाने में भी हिचकिचाते थे। कभी-कभी तो अपनी पगड़ी या टोपी भी उनके पैरों में रख देते ऐसा करके वह देनदारों के गुस्से को शांत कर लेते थे।
इसके बाद समाज उन पर तरस खाकर हर प्रकार से मदद करता था। राजस्थान में तो मारवाड़ी समाज के हर घर से एक रुपया और एक ईंट दिवालियों को बतौर मदद मिलती थी। ईंट घर बनाने को और रुपया घर चलाने को, किंन्तु आज के दिवालियों का स्वरूप दूसरा है।
आज के दिवालिये तो उल्टे अपने देनदारों को ही आंखे दिखाते हैं और तगादा करने पर तरह-तरह से हड़कातें घुड़काते हैं। सच में देखा जाए तो इनमें अधिकांश कृत्रिम दिवालिये हैं। इन कृत्रिम दिवालियों को बहाना मिल गया जीएसटी और नोट बन्दी का, बस उसी की आड़ में यह लोगों का माल मार बैठे।
अगर यह सचमुच के दिवालिये होते तो इनकी ऐशो आराम की जिंन्दगी कहां रहती, फिर तो यह सड़क पर आ जाते लेकिन इन बेईमानों की नियत खोटी है। इनके आलीशान घर महलों जैसे हैं। इनकी लग्जरी गाड़ियां एक नहीं कई-कई हैं। इनकी और इनकी औलादों की अय्याशी किसी से छिपी नहीं है। इनके खर्च ऐसे हैं जो किसी गरीब का एक महीने का खर्च और इनके एक घंटे का खर्च बराबर।
साहूकार बने बैठे इन बेईमानों को अपने किए का दंड अवश्य भुगतना पड़ेगा क्योंकि आह बड़ी बुरी होती है। वह कहावत कि निर्बल को न सताइए जाकी मोटी हाय, मरी खाल की श्वांस सौं लौह भस्म होय जाए। किसी ने अपनी बेटी की शादी को पैसे रखे इनके पास तो किसी ने बुढ़ापे में सहारा मिलेगा, यह सोचकर रकम ब्याज पर दी। किसी ने हारी बीमारी या किसी और प्रयोजन के लिए अपनी कमाई इन बेईमानों को दे दी और अब यह उल्टे उन्हीं को आंखें दिखा रहे हैं। इन बेचारों की आह इन्हें चाट जाएंगी। हो सकता है कि अगला जन्म इन्हें सूअर और कुत्ते का मिले क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि हे अर्जुन नीच कर्म करने वालों को मैं बारंम्बार शूकर और कूकर आदि की नींच योनियों में गिराता हूं।
पूरी दुनिया में महामारी का हाहाकार मच रहा है। प्रतिदिन दस-बीस हजार मौतें हो रही हैं। पता नहीं दो चार महीनों में पृथ्वी पर कितने लोग बच पाएंगे? ऐसी स्थिति में भी यह पत्थर दिल बेईमान गरीबों तक के पैसे नहीं चुका रहे। अपना धन होते हुए भी यह गरीब इस संकट काल में दाने दाने को तरस रहे हैं और यह बेईमान मदमस्त हो रहे हैं। अरे भाई अमीरों का भले ही बाद में देखना, किंन्तु गरीबों को तो तुरंत कुछ ना कुछ दे दो जो इस समय अपनी जान बचाऐं लेकिन इनको कोई मतलब नहीं। इनकी बला से तो गरीब जाएं भाड़ में।
यह भी हो सकता है कि यह बेईमान जिन्होंने इन बेचारों का हक मारा है, अगले जन्म में सांप बन कर अपनी महल नुमा कोठियों, प्रतिष्ठानों और फार्म हाउसों में विचरण करेंगे और सोचेंगे कि यह सब हमारे थे और इनकी औलाद या इनके कर्मचारी इनको डंडों से उठाकर दूर फेंक देंगे या ईट पत्थर और डंडे मारकर कुचल-कुचल कर इनकी जान ले लेंगे। तब इन्हें अपनी गलती का एहसास होगा और बुरी तरह पछताऐंगे एवं छटपटाऐंगे, लेकिन उस समय इन पर यह कहावत खरी उतरेगी कि ‘अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियां चुग गईं खेत’। आपने देखा होगा कि अक्सर सांप निकलने पर यही सब घटित होता है। ये लोग सोचेंगे कि देखो हमारी औलादें और हमारे नौकर चाकर ही हमें मारे डाल रहे हैं। उनकी औलादों और नौकर-चाकरों को क्या पता कि यह हमारे बाप दादा या स्वामी है।
यह बातें हंसी मजाक की नहीं, एकदम सही है। इनका प्रमाण यह है कि पुराने समय से देखा जाता रहा है कि कुछ लोग मटके में सोना चांदी आदि धन दौलत गाड़ कर मर जाते थे फिर वह सर्प योनि प्राप्त कर उन मटकों में रखे अपने खजाने की रखवाली करते थे, क्योंकि उस खजाने में उनकी ममता फंसी रहती थी। ठीक उसी प्रकार इनकी ममता इनकी कोठियों, प्रतिष्ठानों और फार्म हाउसों में फंसी होने के कारण ये वही भटकेंगे और इनका जो हश्र होगा वह सामने दिखाई दे रहा है। अभी भी बेटी बाप की है और इन्हें मौका है जिससे जो लिया है, उसे वापिस कर दें तथा अपना जन्म न बिगाड़े वरना जैसी करनी वैसी भरनी।
एक ईंट और एक रुपया भेंट करें ऐसे लोगों को
एक सुझाव उन पीड़ित लोगों को देना चाहूंगा जिनका पैसा यह मारकर बैठे हैं। ये लोग अब इनके घर जाएं तथा एक ईंट और एक रूपया अवश्य भेंट करें और फोटो खींच ले अथवा वीडियो बना लें। यदि वे वीडियो या फोटो के दांव में न आएं तो उनके घर के दरवाजे के सामने ही वीडियो या फोटो खींच ले जिसमें ईंट और रुपया नजर आ रहे हों। इसके पश्चात इस फोटो या वीडियो को सोशल मीडिया पर वायरल कर दें, ताकि उन्हें कुछ तो शर्म आए। टिप्पणी कुछ भी नहीं करें, देखने वाले सब समझ जाएंगे कि माजरा क्या है। जहां दस-बीस केस ऐसे हुए, वहीं शायद इन लोगों में कुछ सुधार दिखाई देने लगे, ऐसा हो भी सकता है।