विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। उत्तर प्रदेश शासन के व्यापारी कल्याण बोर्ड के चेयरमैन और पूर्व मंत्री रविकांत गर्ग ने
फोन करके मुझे बताया कि गुप्ता जी मैंने महामृत्युंजय का जाप बैठा दिया है। मैंने पूछा कि क्यों?
ऐसी क्या बात हो गई जो आप इतने घबराऐ हुए हैं और महामृत्युंजय का जाप बैठाना पड़ गया। इसका
उत्तर उन्होंने यह दिया कि मैं नहीं आप घबराऐ हुए हैं और यह पाठ भी आप की सलामती के लिए है।
उनका इशारा गत दिवस स्वदेश में छपी मेरी उस खबर की ओर था जिसका शीर्षक था ‘आपके हसबैंड तो
एक्सपायर हो गए’। इस खबर में एक बुजुर्ग एवं सीधी-सादी महिला ने भूल चूक में मेरी धर्मपत्नी से यह
वाक्य कह दिया था। रविकांत जी हमारे अंतरंग मित्र हैं तथा अपने फोटो और समाचार प्रतिदिन समाचार
पत्रों तथा टीवी पर देखना उन्हें बड़ा सुहाता है। उन्होंने मुझे यहीं तक नहीं बख्शा और कहा
कि गुप्ता जी आपको तो अब चर्चा में बने रहने का चस्का लग गया है। इसीलिए रोजाना अखबार में कुछ न
कुछ लिखने की आदत पड़ गई है।
गर्ग साहब की यह बात सही हो सकती है, हो सकती है क्या बल्कि मैं खुद मान लेता हूं कि उनकी यह बात
एकदम सही है, किंन्तु एक बात में विनम्रता पूर्वक कहना चाहूंगा कि भले ही खुद को चर्चा में बनाऐ
रखते हुऐ खरी-खरी बात कही जाए तो उसमें बुराई क्या है? खैर गर्ग साहब ने तो हास परिहास में
हल्के-फुल्के रूप में कही थी क्योंकि वह हमारे अंतरंग मित्र जो ठहरे। उनका कुछ भी कहने का
अधिकार है किंन्तु मेरे लेखन से अन्य कुछ भाई बंधुओं को बड़ी टीस होती है और उनके पेट
में बड़े मरोड़े उठते हैं। समाचार व लेख छपते ही मानो उनके ऊपर मूसलाधार पानी पड़ गया।
ऐसा लगता है कि अब मुझे इन लोगों के मरोड़े शांत करने के लिए शांति पाठ बैठाना पड़ेगा। साथ
ही त्वरित लाभ के लिए बैराल्गिन (पेट दर्द की गोली) भी भेजनी पड़ेगी। एक कहावत है कि मेरी
पड़ोसन खाए धयों और मोपै कैसे जाय रहौ। चतुर्वेदी समाज में दही के लिए धयौ कहा जाता है। इस
कहावत को पदम श्री मोहन स्वरूप भाटिया दिवंगत पत्रकार आचार्य मुरारी लाल चतुर्वेदी से अक्सर कहा करते
थे। ओम शांति।