रिपोर्टः- विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। बात लगभग बीस वर्ष पुरानी है। कानपुर जोन के आईजी एसएन चक मथुरा आए हुए थे। चक साहब लगभग पैंतीस वर्ष पूर्व मथुरा के पुलिस अधीक्षक भी रह चुके थे। रिफाइनरी गेस्ट हाउस में पत्रकार वार्ता चल रही थी। इस दौरान वरिष्ठ पत्रकार आचार्य मुरारी लाल चतुर्वेदी जो अब इस दुनिया में नहीं है, बार-बार कह रहे थे कि एससीएसटी (हरिजन एक्ट) का दुरुपयोग हो रहा है। जो चाहे जिसे झूठा फंसाया जा रहा है। उस समय मायावती मुख्यमंत्री थी और चक साहब की गिनती उनके खास अधिकारियों में थी वे भी रिजर्व कोटे से थे।
चौबे जी बार-बार एक ही रटना लगाए जा रहे थे कि एससीएसटी का दुरुपयोग हो रहा है। आईजी चक उन्हें शान्त करने की कोशिश करते और कहते कि चतुर्वेदी जी कोई भी ऐसा झूठा केस हो तो बताओ। मैं जांच करा लूंगा। इस पर चौबे जी ने कहा कि सभी मामले झूठे हैं, किस-किस की जांच कराओगे।
खैर पत्रकार वार्ता समाप्त हुई और चाय नाश्ता आया। चौबे जी को छोड़कर बाकी सभी लोग नाश्ता करने लगे। मैं जानता था कि चौबे जी क्यों नहीं खा रहे। मुझे अपने स्वभाव के अनुसार शैतानी सूझी, मैंने चौबे जी से कहा कि आप भी कुछ लो, उन्होंने नकारात्मक सर हिला दिया।
इसके बाद मैंने चक साहब से कहा कि आप इन्हें खिलाइये, चक साहब ने प्लेट उठाकर चौबे जी की और बढ़ाई और खाने का अनुरोध किया किंन्तु चौबे जी ने फिर मना कर दिया। तब मैंने कहा कि चक साहब आप अपने हाथ से मिठाई का एक पीस उठा कर खिलाइये तब खाएंगे। चक साहब ने ऐसा ही किया और मिठाई उठाकर उनकी और बढ़ाई किंन्तु नतीजा सिफर यानी उन्होंने मुंह नहीं खोला। चौबे जी ने कहा कि आज मेरा व्रत है, मैं कुछ भी नहीं खाऊंगा।
चक साहब ठहरे सीधे-साधे व्यक्ति, वह चौबे जी की मक्कड़ बाजी और मेरी उद्दंडता को नहीं समझ पाऐ। मैंने चक साहब से कहा कि यह मक्कड़ बना रहे हैं, इनका कोई व्रत नहीं है। असली बात यह है कि ये आपके हाथ का छुआ बिल्कुल नहीं खाऐंगे। यह है असली एससीएसटी यानी छुआछूत का सच्चा मामला। अब बताओ इन पर एससीएसटी लगाओगे क्या? यह बात सुनते ही चक साहब सहित सभी पत्रकार हंसने लगे और चौबे जी एकदम सुस्त हो गए, किंन्तु अंदर आग बबूला हो उठे।
इसके पश्चात उन्होंने कई वर्ष तक मेरे से बोला चाली और मुंह देखा दाखी तक बंद कर दी। उनके बड़े पुत्र मनोहर लाल ने मुझसे कहा कि गुप्ता जी आपने हमारे बाबूजी को जेल भिजवाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। यदि आईजी का मूड़ बिगड़ जाता तो क्या होता? बात उनकी बिल्कुल सही थी किंन्तु मैं अपनी आदत से मजबूर था, इसीलिए ऐसी हरकत कर बैठा।
चौबे जी सभी पत्रकारों में खिलौना की तरह थे। वैसे तो वे किसी की चाय तक के दागी नहीं थे किंन्तु उनका स्वभाव खरखरा था। वे बगैर लाग लपेट के दो टूक बात करते और जब गुस्सा आता तो किसी को भी नहीं छोड़ते। चौबे जी मथुरा में हिंन्दुस्तान समाचार एजेंसी तथा वीर अर्जुन के जिला प्रतिनिधि और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता थे। उन दिनों मेरी पत्रकारिता के शुरुआती दिन थे। मुझ में उन दिनों उत्साह जरूरत से ज्यादा था।
चौबे जी का खिलौना जैसा स्वरूप मुझे बहुत अच्छा लगता और उन्हें छेड़ने में भी बहुत आनन्द आता था। वह कभी-कभी मुझे खरी-खोटी भी सुना डालते लेकिन स्नेह भी बहुत करते थे। जब-जब मेरी किसी से कोई खटपट या लड़ाई झगड़ा होता तो वे हमेशा मेरा साथ देते।
पत्रकारिता में मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा भी। वे ब्लैक मेलिंग से एकदम दूर रहते तथा दो टूक और सटीक कहते और लिखते। आज भी चौबे जी मुझसे बहुत स्नेह मानते हैं। इसका प्रमाण यह है कि अक्सर वे स्वप्न में आकर अपना आशीर्वाद देते रहते हैं। मैं उनके स्नेह को शत-शत नमन करता हूं।