ब्रज के इस गांधी के जीवन परिचय को पाठ्य पुस्तकों में स्थान मिलना चाहिए
मथुरा। शिवरात्रि जैसे पर्व पर नश्वर शरीर त्यागने वाले ब्रज के गांधी कन्हैयालाल गुप्त से आत्मिक लगाव रखने वाले लोग उन्हें भुला नहीं पा रहे हैं। श्री गुप्त के कर्म ऋषि मनीषियों जैसे रहे। राजनीति में भी वे सच्चाई व ईमानदारी के लिये संघर्ष करते रहे। उनके आलौकिक जीवन से ब्रज ही नहीं बल्कि संपूर्ण प्रदेश दैदीप्य मान रहा। उनके उच्च आदर्श और सादा जीवन को भुलाया नहीं जा सकता।
7 मार्च सन् 1917 में जन्मे श्री कन्हैयालाल गुप्त ने शिक्षा अध्ययन पूर्ण करके शिक्षक के रूप में अपनी जीवन यात्रा प्रारंभ की। प्रारंभ में क्लेंसी इंटर कालेज मथुरा हजारीमल सोमानी नगर पालिका इंटर कालेज वृंदावन में पहले अध्यापक फिर प्रधानाचार्य के पद के बाद चंपा अग्रवाल इंटर कालेज मथुरा के प्रधानाचार्य पद को सुशोभित करते हुए सेवानिवृत्त हुए। इस दौरान शिक्षक हितों की लड़ाई सत्य व ईमानदारी के साथ लड़कर नये कीर्तिमान स्थापित किये।
उप्र माध्यमिक शिक्षक संघ की स्थापना उन्हीं की देन थी। उप्र में अध्यापकों की हालत सुधारने के लिये पहले पहल अलख जगाने वाले श्री गुप्त की पहचान प्रदेश स्तर पर हुई जिसके फलस्वरूप वह दो बार शिक्षक विधायक (विधान परिषद सदस्य) चुने गये। तीसरी बार का टिकट नियम विरुद्ध बताते हुए लौटा दिया। उन दिनों श्री गुप्त प्रदेश की राजनीति में दबदबा बनाने वाले कांग्रेस नेता श्री चंद्रभान गुप्त के सहयोगियों में प्रमुख थे। इन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री बनवारीदास गुप्त ने शिक्षा मंत्री बनाने का न्यौता दिया। श्री गुप्त शपथ ग्रहण में शामिल नहीं हुए।
इससे पूर्व श्री चंद्रभान गुप्त ने भी अपने मंत्री मंडल में शामिल करने की पहल की लेकिन अपने सिद्धांतों की खातिर श्री गुप्त ने दोनों बार मंत्री बनना अस्वीकार कर दिया। बुराई से लड़ने और सच्चाई से न डिगने वाले श्री गुप्त के लिये सत्तर का दशक चुनौतीपूर्ण रहा। समय था सन् 1975 में देश में आपातकाल लागू होने का। नसबंदी का विरोध करने पर अध्यापकों के साथ हो रहे उत्पीड़न पर आंदोलन खड़ा कर दिया। इस पर तत्कालीन जिलाधिकारी ने इन्हें गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया।
श्री गुप्त के ऊपर डीआईआर मीसा की कार्यवाही की तीव्र प्रतिक्रिया हुई। बीसीसी लंदन ने अपने प्रसारण में इन्हें मथुरा का गांधी की संज्ञा दी तो विदेशी मीडिया ने भी प्रमुख स्थान देकर प्रसारित किया। जेल में कदम रखते ही उन्होंने जेलर से गीता की पुस्तक उपलब्ध कराने की मांग की और देर रात्रि जब गीता उपलब्ध हुई तब उन्होंने भोजन ग्रहण किया। आपातकाल बंदी श्री गुप्त को कांग्रेस सरकार ने सशर्त रिहा करने का प्रस्ताव रखा जिसे उन्होंने अस्वीकार करते हुए जेल यातनायें सहने की सहमति दी। आखिरकार केंद्र व प्रदेश की सरकारों को प्रबल जनाक्रोश को देखते हुए झुकना पड़ा। मथुरा जिले में उस समय यही एक ऐसे व्यक्ति थे जिनको बिना शर्त रिहा किया गया था।
इस घटना से उद्वेलित श्री गुप्त ने कांग्रेस छोड़ दी। आपातकाल समाप्त होने के बाद सन् 1977 में प्रदेश विधानसभा चुनाव हुए। कांग्रेस के विरुद्ध गठित जनता पार्टी ने इन्हें मथुरा शहरी क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया जिसमें वह प्रचंड बहुमत से चुनाव जीते। सन् 1977 से सन् 1979 तक जनता पार्टी की सरकार रही। अपने विधायक कार्यकाल में उन्होंने क्षेत्र के विकास और जनसमस्याओं का निराकरण सत्य और ईमानदारी के साथ किया।
चंपा अग्रवाल इंटर कालेज में प्रधानाचार्य पद पर रह कर आंदोलन की अगुवाई के कारण अनुपस्थित दिनों की वेटन कटौती हुई थी जिससे आगे उनकी पेंशन में रूकावट पैदा हुई। इसलिये श्री गुप्त ने उच्चाधिकारियों को लिखापढ़ी की। इसकी पुनः जांच हुई जिसमें पाया गया कि श्री गुप्त ने अपने कार्यकाल में जितने भी अवकाश लिये, उससे ज्यादा निर्धारित समय से अतिरिक्त कक्षायें चलाकर अध्यापन कार्य किया है। अतः इस मामले में सत्य की विजय रही और उच्चाधिकारियों को शार्मिंदा होना पड़ा। वृंदावन में टीवी सेनेटोरियम स्थापित करने की बात थी। धार्मिक नगरी में टीवी के मरीजों के इलाज और उससे होने वाली अपवित्रता को लेकर नगरवासियों ने इसका विरोध किया। सेठ हरगुलाल ने इस पुनीत कार्य को सम्पन्न कराने का दायित्व कन्हैयालाल गुप्त को सौंप दिया। श्री गुप्त इसमें पूरी लगन के साथ लग गये। एक तरफ वृंदावनवासियों का विरोध तो दूसरी ओर एक मात्र कन्हैयालाल गुप्त थे। अंततः विजय श्री गुप्त को मिली। आज यह अस्पताल अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त देश का सबसे बड़ा अस्पताल है।
मथुरा में छोटी लाइन के रेलवे पुल पर सैंकड़ों लोग रेल से कटकर काल के गाल में समा जाने की घटना थी। पुल पर गैलरी की मांग चल रही थी। इसमें श्री गुप्त ने भागदौड़ कर गैलरी का निर्माण कराने में महती भूमिका निभाई। इस प्रकार श्री गुप्त ने समाज सेवक, शिक्षक, विधायक सभी भूमिकाओं में सत्य का मार्ग नहीं छोड़ा और पूरी तरह गांधीजी के आदर्शों को अपनाया। अपने व्यक्तित्व व कृतित्व के आधार पर श्री गुप्त मथुरा-वृंदावन के गांधीजी के रूप में जाने जाते थे।
जीवन के अंतिम पड़ाव पर श्री गुप्त आध्यात्म की ओर उन्मुख हो गये। उनका जीवन संत समान हो गया। वह ब्रज के प्रमुख संत गया प्रसाद जी के शिष्य थे। ब्राह्मण का सदैव सम्मान करते थे। आध्यात्मिक चिंतन मनन कर मानव कल्याण की विचारधारा में लीन रहे। वृद्धावस्था के बावजूद देव भाषा संस्कृत का अध्ययन अपने गुरु (संस्कृत शिक्षक) के घर पर बालक की तरह नित्यप्रति जाना और उनकी दैनिक क्रिया में शुमार हो गया और अंत तक विद्यार्थी बने रहे।
सत्य, ईमानदार, कर्तव्यपरायण और अनुशासन प्रेमी श्री कन्हैयालाल गुप्त के आदर्श प्रेरणास्प्रद हैं। उत्तर प्रदेश सरकार को चाहिये कि श्री गुप्त के जीवन, व्यक्तित्व व कृतित्व को पाठ्य पुस्तकों में सम्मिलित करें जिससे की आगामी युवा पीढ़ी उनके आदर्शों से प्रेरणा ले सकें।