आपबीती
विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। कोरोना महामारी लगते ही लोग किस प्रकार अपनों से मुंह मोड़ लेते हैं और उनका व्यवहार ऐसा गिरगिटी हो जाता है कि पूछो मत। इस प्रकार की अनेक खबरें समाचार पत्रों में पढ़ने तथा दूरदर्शन पर देखने को मिल रही है। एक खबरची होने के नाते मैंने भी कोरोना मरीज बनकर प्रेक्टिकल अनुभव किया इस आपबीती को साझा कर रहा हूं।
बात दो-चार दिन पहले की है। मैं अपने एक सुपरचित सज्जन मास्टर रामबाबू शर्मा जो सेठ बाड़ा में रहते हैं तथा एक विद्यालय के प्रबंधक हैं, के घर जा पहुंचा और दरवाजा खटखटाया। अंदर से मास्टर साहब की आवाज आई कौन? मैंने जवाब नहीं दिया और दो चार बार खांसने का उपक्रम किया, फिर दोबारा आवाज आई कौन है? और मास्टर साहब ऊपर अपनी बालकनी में से उझकने लगे। तब मैंने अपनी शक्ल चमका कर हाथ से इशारा कर दिया। इसके बाद मास्टर साहब तुरंत नीचे आऐ और दरवाजा खोला तथा बड़े प्रसन्नचित हो गए मुझे देखकर।
मैंने फिर दो-चार बार जोर से खांसा और धीरे-धीरे दीवाल पकड़कर अंदर बढ़ने लगा। मेरी स्थिति को देखकर मास्टर साहब एकदम विस्मित से हुए और जब तक वह कुछ बोलें। उससे पहले ही उनकी धर्मपत्नी श्रीमती विमलेश कुमारी शर्मा जो एक विद्यालय की प्रधानाचार्य हैं, एकदम बोलीं कि भाई साहब का बात है ऐसे कैसे चल रहे हो? का है गयो है तुमकूं? मैंने खांसते खांसते धीरे-धीरे बताया कि मेरी रिपोर्ट पाॅजिटिव आ गई है और फिर मैं धम्म से कुर्सी पर बैठ गया।
मेरे यह कहते ही मास्टर साहब और मास्टरनीं जी एकदम सकते में आ गए। पहले तो उन्होंने दिलासा दी कि कोई बात नहीं ठीक हो जाओगे चिंता मत करो बहुत लोग ठीक हो रहे हैं। इसके बाद मास्टरनीं जी बोली कि तुम ऐसी हालत में यहां क्यों आए? हमें फोन कर देते तो हम वहीं आ जाते आपसे मिलने। मास्टर साहब ने भी हां में हां मिलाई लेकिन वास्तविकता यह है कि यदि मैं सचमुच में कोरोना पाॅजिटिव होता और उन्हें फोन करके बुलाता तो शायद वह घर आना तो दूर इस रोड से गुजरने की जुर्रत भी नहीं करते।
इसी दौरान मैंने उन्हें बताया कि मुझे इस समय लगभग एक सौ चार बुखार होगा। मास्टर साहब थोड़े सीधे साधे हैं। उन्होंने ना समझी या सीधेपन में अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाया बुखार देखने को, तो मैंने तुरंत अपना हाथ पीछे खींच लिया, यह कहते हुए कि नहीं आप मुझे मत छुओ क्योंकि उनका हाथ लगते ही मेरी पोल खुल जाती, बुखार तो था नहीं और शरीर था एकदम ठंडा।
इसके बाद मैंने उनके बाथरूम में घुसकर दो चार बार खंगार कर नाली में थूका। थूकते समय मास्टर साहब और मास्टरनीं जी और भी परेशान हो गऐ तथा आपस में पता नहीं क्या फुसफुस करने लगे। फिर मैं धीरे धीरे चल कर वापस कुर्सी पर बैठ गया तथा उनसे कहा कि आप लोग मुझे बेहद स्नेह करते हो और मेरा भी मन आप में बहुत है इसलिए चला आया। यहां से जाने के बाद मैं केडी मेडिकल में भर्ती होने जाऊंगा। वह बोले कि काहे से आए हो, मैंने कहा कि ई रिक्शा से आया हूं तो बोले कि ई रिक्शा कहां है? मैंने कहा कि वह तो चला गया तो मास्टरनीं जी लपक कर बोलीं कि अब कैसे जाओगे? तो मैंने कहा कि चला जाऊंगा धीरे धीरे बस आपसे मिलने की दिली इच्छा थी। दर असल मैं स्कूटर से गया था और स्कूटर को उनके घर से दूर खड़ा करके आया था।
इसके बाद मैंने धीरे धीरे लम्बी लम्बी सांस लेनीं शुरू की और कहा कि अब तो मुझे सांस लेने में भी बहुत दिक्कत हो रही है और मैंने आंखें बंद कर लीं तथा निढाल होकर कुर्सी पर पसर गया। बस फिर क्या था अब तो मास्टरनीं जी बार-बार एक ही रटना लगाने लगीं कि तुम जाओ यहां से और अपने घर पर आराम करो और मास्टर साहब भी उनकी हां में हां मिलाते चल रहे थे। मैंने कुछ देर हांफने जैसी मुद्रा बनाई और फिर जब दोनों लोग बार-बार एक ही मंत्र का जाप करने लगे कि तुम जाओ, तुम जाओ, तुम जाओ। बस एक ही कसर बाकी रह गई कि लाठी लेकर मवेशियों की तरह नहीं खदेड़ा बाकी सब करम पूरे होने लगे। फिर मैं धीरे-धीरे उठा और मास्टरनीं जी, जो कुछ ज्यादा ही चतुर हैं, की ओर मुखातिब होकर बोला आप पूजा पाठी ब्राह्मणीं हैं और बुजुर्ग भी, मुझे आशीर्वाद दो कि मैं ठीक हो जाऊं और यह कहते हुए मैं उनके पैर छूने को आगे बढ़कर झुकने लगा तो फिर क्या था। वह ना ना ना कहते हुए एकदम उछलकर दूर भागीं और ऊपर सीढ़ियां चढ़ने लगीं तथा आधी सीढ़ी चढ़कर टुकटुकी लगाकर मेरी ओर देखने लगीं।
इसके बाद मैंने अंतिम हथियार का प्रयोग किया और मास्टर साहब जो चारपाई पर बैठे थे की ओर धीरे से बढ़ा और बोला कि मास्टर साहब कल क्या हो, कुछ पता नहीं। मेरी इच्छा आपसे गले मिलने की बहुत हो रही है और यह कहते हुए उनकी ओर बढ़कर जैसे ही हाथ फैलाऐ, ज्यादा चतुर मास्टरनीं जी एकदम जोर जोर से चिल्लाने लगीं कि अरे..अरे..अरे..जे का कर रहे हो, दूर.. दूर.. दूर.. और फिर बोलीं कि तुम यहां से जाओगे कै नांय। और फिर वही तुम जाओ तुम जाओ तुम जाओ का मंत्र चालू हो गया।
अब तक तो मैं जैसे तैसे अपनी हंसी को रोके रहा किंतु फिर तो मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैंने जोर से हंसते हुऐ कहा कि मुझे कोरोना वोरोना कुछ नहीं हुआ है। मैं तो आपका परीक्षण करने आया था कि कितना प्रेम है मेरे प्रति। बस फिर क्या था दोनों की स्थिति देखने लायक हो गई। मास्टरनी जी तो इतनी भाव विहल हो गईं कि उनकी आंखों में खुशी के आंसू छलकने लगे। इस खुशी में दो खुशियां थीं। एक मैं कोरोना पाॅजिटिव नहीं था दूसरी यह की उनके घर में कोरोना फैलने से बच गया। इसमें कौन सी खुशी की परसेंटेज ज्यादा थी यह मुझे पता नहीं। हां उनके मुंह से यह अवश्य निकला भाई साहब नाटक तौ तुमनैं नंबर वन कियौ।
दरअसल मैंने मास्टर साहब और मास्टरनीं जी को परीक्षण करने हेतु इसलिए चुना कि मास्टरनीं जी से जब भी फोन पर वार्ता होती तथा वह मेरे द्वारा नमस्कार करते ही स्नेह भरा लम्बा चैड़ा आशीर्वाद देर तक देती रहतीं। शुरुआत मुझसे होती और पूरे परिवार के बाद व्यवसाय अखबार और फिर हमारे नलकूप तक उनके आशीर्वाद की मूसलाधार वर्षा से तर बतर हो जाते। अतः मैंने सोचा कि कोरोना पाॅजिटिव कहने के बाद फिर क्या स्थिति होती है उसे भी तो परख लूं। खैर यह तो बात हास परिहास की हुई। सच्चाई यह है कि उन्होंने जो कुछ किया वह उचित था। उनकी जगह और कोई होता, वह भी यही करता। सावधानी बरतना कोई गलत नहीं। मास्टरनीं जी का एक अहसान तो मैं मानूंगा वह यह कि उन्होंने हाथ में लाठी नहीं ली वरना जो कुछ होता वह जिन्दगी भर याद रहता।