मथुरा। व्यासपीठ से प्रवचन करते हुए भागवतकिंकर पंडित श्रीकृष्ण गौर शास्त्री गौर ने कहा कि भागवत कथा को श्रवण कर मननचिन्तन करने से व्यक्ति जिस दिन भागवतमय हो जायेगा, उस दिन श्रीकृष्ण-बलराम व्यक्ति के हृदय मन्दिर में विराजमान हो जायेंगे। भाव ही प्रभु का भोग है ! प्रीत की डोर से अपने ठाकुर को झुलाओ।
पंडित श्रीकृष्ण गौर शास्त्री हनुमान नगर स्थित हनुमान मंदिर पर चल रही भागवत कथा में पांचवें दिन श्रोताओं को प्रवचन दे रहे थे। इस अवसर पर जीएलए यूनिवर्सिटी, मथुरा के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर नीरज अग्रवाल ने भागवत का पूजन किया और व्यास जी का माला पहनाकर भव्य स्वागत किया। व्यास जी ने भी जीएलए के सीईओ का पटुका पहनाकर व भगवान की छवि भेंटकर अभिनंदन किया।
श्रोताओं को कथा रस से मंत्र मुग्ध करते हुए शास्त्री जी ने बताया कि दुखः में यदि सुख से रहना चाहते हो तो प्रभु का चिंतन निरन्तर बना रहना चाहिए। भगवान को भूल जाना ही संसार की सबसे बड़ी विपत्ती है और प्रभु का सर्वदा स्मरण बने रहना ही जीवन का सफल होना है।
व्यासपीठ से श्रोताओं को बताया कि दान करने से धन बढ़ता है और धन पवित्र होता है। राजधर्म-मोक्ष धर्म की व्याख्या वाणों पर पड़े जब पितामह भीष्म ने की तो वहीं खड़ी द्रोपती हंस गयीं। यह देखकर पितामह भीष्म को आश्चर्य और दुखः हुआ। तब द्रोपती ने अपना मौन तोड़ते हुये कहा कि आप जिस राजधर्म की व्याख्या कर रहे हैं उस समय आपने अपनी आँखों से उस महापाप को क्यों होने दिया।
इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सार्थक चतुर्वेदी, भारतीय जनता पार्टी छावनी मंडल के पूर्व उपाध्यक्ष तपेश भारद्वाज एवं भक्तगण उपस्थित रहे।
जीएलए के सीईओ ने किया भागवत पूजन और व्यास जी का भव्य स्वागत
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