सामान्य तौर पर दुनियाभर के हिन्दू मंदिरों में सुबह- शाम होने वाली आरतियों और पर्वों के दौरान घंटे,घड़ियाल, शंखध्वनि बजाकर अपने भगवान को भक्त प्रसन्न करते हैं। सनातन धर्म में घंटे बजाने का अपना विशेष महत्व है। कुछ मंदिरों में तो बगैर घंटे और झांझ मंजिरों की करतल ध्वनि के बिना भगवान की सेवा ही अधूरी मानी जाती है। जी हां, लेकिन भारत में भगवान कृष्ण की लीला भूमि में ऐसा मंदिर भी हैं जहां भगवान को शोर पसंद नहीं है। यही कारण है कि मंदिर में आरतियां के समय तो क्या बड़े-बड़े पर्वों पर भी घंटे, झांझ- मंजिरे नहीं बजाए जाते हैं। आज आपको बता दें कि क्यों कि ऐसा कौन सा मंदिर है और घंटे न बजने के पीछे रहस्य क्या है।
आपको बता दें कि विश्व के हिन्दू मंदिरों में सनातन धर्म के अनुसार आरती और भगवान की प्रत्येक सेवा में घंटी, घंटे, झांझ-मंजीरा बजाने की परंपरा है। लेकिन भारत में भगवान कृष्ण की लीला भूमि बृज के मंदिरों के बीच ठाकुर बाँकेबिहारी मंदिर ऐसा है जहां आरती के समय तो क्या किसी भी पर्व और उत्सवों पर भी घंटे नहीं बजाए जाते। 150 साल से भी अधिक पुराने इस मंदिर में देश-विदेश से आने वाले करोडों दर्शनार्थियों ने कभी घंटे की आवाज नहीं सुनी होगी। सुबह, दोपहर और शाम के समय होने वाली भगवान बाँकेबिहारी की आरती भी शांति के साथ बगैर किसी शोरगुल के होती है।
आपको बता दें कि मंदिर में कभी न घंटे बजने के पीछे बजने का रहस्य मंदिर में विराजमान भगवान बाँकेबिहारी की लीला और उनके नाम में छिपा है। बाँकेबिहारी मंदिर के सेवायत आनन्द वल्लभ गोस्वामी ने बताया कि मंदिर में घंटे, शंख या किसी तरह का शोर पूरी तरह प्रतिबंधित है। इसके पीछे दो कारण है कि पहला ये कि मंदिर में निकुंज की उपासना है। यानि प्रिया यानि राधा और प्रियतम यानि कृष्ण नित्य विहार में रहते है। नित्य विहार से आशय है कि एक सघन वन में लीलाओं मेंं निमग्न रहते हैं। ऐसे में किसी तरह का शोर भगवान को पसंद नहीं है। इसलिए मंदिर में घंटे तो क्या ताली और चुटकी भी बजाने पर प्रतिबंध है। सेवायत आनन्द वल्लभ गोस्वामी ने दूसरा कारण बताया कि मंदिर में विधि निषेध से परे सेवा है। अर्थात जिससे भी अगाध प्रेम हो वहां संबंधों के बीच नियम, कायदे नहीं आते। इसलिए भी मंदिर में घंटे नहीं बजाए जाते हैं।