मथुरा। ब्रह्मलीन तपोमूर्ति राष्ट्रसंत स्वामी गीतानंद जी महाराज सोलह वी पुण्यतिथि गीता आश्रम वृंदावन में मनाई जाएगी इस अवसर पर देशभर के प्रमुख धर्माचार्य महामंडलेश्वर संत एवं उनके अनुयाई उद्योगपति राजनेता अधिकारीगण भाग लेंगे। राधारानी की नगरी वृन्दावन में गीता के प्रकाण्ड विद्वान, परोपकार का आदर्श उपस्थित करने वाले ऐसे परम तपस्वी, ब्रम्हलीन संत स्वामी गीतानन्द महाराज की षोडस पुण्य तिथि 22 नवम्बर को मनाई जा रही है जिनके द्वारा गीता आश्रम वृन्दावन में शुरू किया गया अन्न क्षेत्र कोरोनावायरस के संक्रमण के दौरान भजनानन्दी साधुओं और तीर्थयात्रियों के लिए वरदान बन गया है।
वैसे तो लगभग तीन दशक से अधिक समय से इस आश्रम में भजनानन्दी साधुओ के लिए अन्न क्षेत्र चलाकर उनके नित्य भोजन की व्यवस्था लगातार की जा रही है पर लाक डाउन के समय से तो यह तीर्थयात्रियों के लिए भी उदरपूर्ति का सहारा बना हुआ है।
इतिहास साक्षी है कि वृन्दावन की पावन धरती तपस्वी संतो के लिए चुम्बक का काम करती रही है। स्वामी हरिदास, प्रभु बल्लभाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, देवरहा बाबा, आनन्दमई मां, बाबा चन्दमादास, श्रीपाद बाबा, स्वामी वामदेव महाराज, हरिमिलापी जी महाराज, स्वामी लीलानन्द ठाकुर जैसे महान तपस्वियों ने यहां आकर विभिन्न प्रकार के कार्य किये। किसी ने धर्म क्षेत्र चुना तो किसी ने दान का क्षेत्र, किसी ने चिकित्सा का क्षेत्र चुना तो किसी ने शिक्षा का क्षेत्र चुना किंतु स्वामी गीतानन्द महराज ने इन सभी क्षेत्रों में कार्य कर समाज के हर क्षेत्र की सेवा कर स्वयं ’’भिक्षु ’’ कहलाना ही पसन्द किया।
सामान्यतया आश्रमों के महन्त भक्तों के दान को आश्रम के वैभव एवं सुविधाओं में लगाते हैं पर इस सन्त ने उससे ऊपर उठकर भी ऐसा कार्य किया जिससे प्रभावित होकर पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 अटल बिहारी वाजपेयी के मुंह से बरबस ही निकल पड़ा था कि ’’काश देश के प्रति यही भाव देश के अन्य संतों में आ जाय’’। इस प्रसंग का जिक्र करते हुए स्वामी गीतानन्द महराज के परम शिष्य एवं गीता आश्रम वृन्दावन के प्रमुख महामण्डलेश्वर डा0 अवशेषानन्द महाराज ने बताया कि कारगिल यु़द्ध के समय इस महान संत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्रीय रक्षा कोष के लिए जब 11 लाख की थैली भेंट की थी तो भावुक होकर पूर्व प्रधानमंत्री के मुंह से उक्त शब्द निकल पड़े थे।
उन्होंने अपने इस शिष्य के अन्दर भी वैसे ही संस्कारो का बीजारोपण किया जिसके कारण इस शिष्य ने कोरोनावायरस के संक्रमण के दौरान भी अपने गुरू के द्वारा प्रारंभ किये गए ’’अन्न क्षेत्र’’प्रकल्प को अपने जीवन को भी खतरे में डालकर बिना किसी रूकावट के जारी रखा और आज भी जारी है। ब्रम्हलीन संत स्वामी गीतानन्द महाराज ने जहां वृद्ध लोगों के लिए वृद्धाश्रम की स्थापना की तो विद्यार्थियों के लिए संस्कृत पाठशालाओं की स्थापना की , गरीबों की चिकित्सा के लिए औषधालय खोले तो लोगों को गो सेवा के लिए प्रेरित करने के लिए आदर्श गोशालाएं स्थापित की। हरिद्वार, वृन्दावन, कुरूक्षेत्र , उज्जैन जैसे तीर्थस्थानो समेत एक दर्जन से अधिक स्थानों में आश्रम बनवाए जिससे धार्मिक लोग यदि तीर्थाटन पर जाएं तो उन्हें ठहरने की सुविधा मिल सके तो विद्यार्थी यदि पर्यटन पर जाएं तो उन्हें कुल्लू जैसे स्थान में भी ठहरने के लिए भटकना न पड़े।
दिल्ली में भी उन्होंने आश्रम की स्थापना इसलिए की कि विशेष चिकित्सा के लिए बड़े अस्पतालों में भर्ती मरीजों के तीमारदार वहां ठहर सकें । ठंढ के मौसम में भजनानन्दी साधुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो इसलिए हर साल जाड़े के दस्तक देने के साथ ही साधुओं में जाड़े के वस़्त्र, कम्बल, बड़ा कोट, टोपा आदि का वितरण किया जाता है। इस अवसर पर आनेवाले दीन दु:खी और आर्थिक रूप से विपन्न लोगों को भी निराश न कर उन्हें कंबल और टोपा दिया जाता है। कुल मिलाकर इस महान ब्रम्हलीन संत ने जीवन पर्यन्त ’’वर दो भगवन हर मानव में तेरे दर्शन पाएं मानवता अपनाएं’’ व्रत का मनसा, वाचा कर्मणा से अनुपालन कर लोगों की पीड़ा को बटाने का ऐसा आदर्श उपस्थित किया जो संत व्रत अपनानेवाले युवा संतो ंके लिए नजीर बन गया है।