तीर्थ नगरी मथुरा के प्राचीन मन्दिरों में से एक दीर्घ विष्णु मन्दिर में विराजमान भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी का विग्रह स्थापना और मन्दिर निर्माण की तिथि को लेकर हालांकि शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख नहीं हैं। बताया जाता है की मथुरा के घीया मण्डी क्षेत्र में टीले पर हवेलीनुमा बने दीर्घ विष्णु मन्दिर में विराजित भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का विग्रह सतयुग काल में स्वयं प्रकट हुआ था । दीर्घ विष्णु मन्दिर को प्रकाश में लाने का कार्य आज से लगभग 4500 वर्ष पहले भगवान कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने गर्गाचार्य ऋषि मार्गदर्शन में किया था।
वराह पुराण,गर्ग संहिता, नारद पुराण और श्रीमद भागवत में भी दीर्घ विष्णु मन्दिर का उल्लेख किया गया है, इन धर्म पुराणों में यमुना के तट पर विष्णु घाट पर मन्दिर के होने का प्रमाण मिलता है।
बताया जाता है मुगल शासक ओरङ्ग्जेब से अहमद शाह अब्दाली तक के शासन काल में शाही सेना ने मन्दिर पर 8 बार मन्दिर को क्षति पहुंचायी। इसके बाद संवत 1865 में बनारस के राजा पटनीमल मथुरा आकर दीर्घ विष्णु मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया। कई बार हुये जीर्णोद्धार के बाद प्राचीन दीर्घ विष्णु मन्दिर का बाहरी और आन्तरिक स्वरूप में स्वरूप बदल गया है।
इस प्राचीन मन्दिर की हवेलीनुमा इमारत के 2 प्राचीन द्वारों के बाद एक संगमरमर से बना चौक है। पूर्वी द्वार के ठीक सामने मन्दिर के चौक के बाद ऊंचे बरामदे के बाद गर्भ गृह बना है, जिसमें भगवान दीर्घ विष्णु की आदमकद के विग्रह है। भगवान विष्णु गर्भ गृह में विराट स्वरूप में विराजित हैं। भगवान दीर्घ विष्णु अपनी चार भुजाओं में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये हुये हैं। दीर्घ विष्णु के विग्रह के बायीं ओर नीचे की ओर देवी लक्ष्मी का विग्रह विराजित है। सामान्य तौर पर देवी लक्ष्मी कमल पुष्प पर विराजित होती हैं। जबकि प्राचीन दीर्घ विष्णु मन्दिर में कमल पुष्प के नीचे विराजित हैं।
भगवान ने जब जब किया दीर्घ स्वरूप धारण
भगवान कृष्ण के दीर्घ स्वरूप धारण करने की कथा चर्चित है की द्वापर युग के अन्त में भगवान कृष्ण जब गोकुल से कंस के आमंत्रण पर रँग भूमि के लिए आ रहे थे तो भगवान कृष्ण के सखा और ग्वाल बल ने कृष्ण से कहा कि तुम छोटे से बालकृष्ण होकर कंस का वध कैसे करोगे। कृष्ण द्वारा बलशाली कंस का मुक़ाबला करने को लेकर सखा और ग्वाल बाल में सन्देह था। इसी सन्देह के कारण बालकृष्ण के साथ गोकुल से मथुरा में कंस की रँग भूमि में आने को कोई सखा और ग्वाल बाल तैयार नहीं हुआ। भगवान कृष्ण ने अपने बाल सखाओं के सन्देह को दूर करने के लिए विराट रूप धारण दर्शन दिये। भगवान कृष्ण के विराट स्वरूप में दर्शन करने के पर सभी सन्देह दूर हो जाने पर सखा और ग्वाल बाल के साथ भगवान बालकृष्ण कंस से युद्ध करने के लिए मथुरा आये थे।
बताया जाता है की सतयुग में भगवान ने पृथ्वी को मथुरा में लाने के लिए विराट वराह स्वरूप धारण किया, जो कि 84 योजन का विराट स्वरूप धारण किया था। त्रेता युग में रावण से युद्ध के समय भगवान ने सहस्त्र भुजाओं वाला दीर्घ स्वरूप धारण किया था।
मन्दिर के सेवायत कांतानाथ चतुर्वेदी ने बताया कि दीर्घ विष्णु मन्दिर का पाटोत्सव यानि भगवान दीर्घ विष्णु का विग्रह स्थापना दिवस वैशाख शुक्ल द्वादशी को मनाया जाता है। विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने दीर्घ अवतार कार्तिक शुक्ल द्वादशी को धारण किया था। उनहोंने बताया की विष्णु स्वामी मतानुयायी सम्प्रदाय के अनुसार मन्दिर में विराजित दीर्घ विष्णु भगवान की पूजा सेवा पद्दती से की जा रही है। मन्दिर में बृज की भाव लीला और सनातन वैष्णव परम्पराओं के अनुसार उत्सव मनाये जाते हैं।
मन्दिर की मान्यता
इस मन्दिर को लेकर भक्तों में मान्यता है कि जो भी कन्या इस मन्दिर में गुरुवार के दिन दीर्घ विष्णु का दर्शन और पूजन करेगी। उस कन्या को सुंदर वर प्राप्त होता है और सन्तान की प्राप्ति होती है।