अरुण यादव की रिपोर्ट
वृंदावन। वंशीवट स्थित सिय पिय मिलन महोत्सव के छठवें दिन प्रभु राम का सीताजी से पुष्पवाटिका में मिलन हुआ। पिछले 51 वर्ष से संत निवास में ब्रज के कलाकारों ने प्रभु राम की कथा का सजीव मंचन किया। यह महोत्सव महंत सुतीक्ष्णदास महाराज के सानिध्य में आयोजित किया जा रहा है।
पुष्प वाटिका प्रसंग के दौरान पंडाल के बीचों-बीच फूलों से सजे तथा चलित मंच का अलौकिक नज़ारा सभी को मंत्रमुग्ध कर रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सभी कलयुग से त्रेता युग में पहुंच गए हैं। मंच के चारों ओर महिला, पुरुष, बच्चे, बूढ़े श्रद्धालु संत समाज के लोग बैठे हुए थे। सभी दर्शक एकाग्र चित्त होकर पुष्प वाटिका प्रसंग का आनंद ले रहे थे। सभी की निगाहें पंडाल के बीचो-बीच बने घूमते हुए मंच पर टिकी हुई थी। लोग इस जनप्रिय प्रसंग के साक्षी बनते हुए राम और सीता की एक झलक पाने को व्याकुल थे।
गुरु विश्वामित्र की आज्ञा पाकर पुष्प लाने निकले श्री राम-लखन
प्रसंग की शुरुआत होती है। वैदेही वाटिका के रखवाली करने वाले माली अपने कार्य पर लगे हुए हैं। इसी बीच श्री राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ फूल की डलिया लेकर पुष्प वाटिका पहुंचते हैं। गजब का नजारा दिख रहा है।चारों तरफ से श्रद्धालु भक्त की नजरें पंडाल के बीच में बने पुष्प वाटिका मंच पर ही है ताकि भगवान राम एवं सीता की झलक पाने का अवसर कहीं चूक ना जाए। जनकपुर पहुंचे दोनों राजकुमार गुरु विश्वामित्र के देशानुसार पूजन के लिए फूल लेने को राजा जनक नंदिनी की वैदेही वाटिका में पहुंचते हैं। राजा जनक के महल में अवस्थित पुष्पवाटिका की रखवाली में लगे माली अपनी चुस्ती दिखा रहे थे।
इसी बीच भगवान श्रीराम का पुष्प वाटिका के द्वार पर पदार्पण होता है। वाटिका के प्रमुख द्वार पर तैनात वाटिका के मुख्य माली ने श्री राम को वाटिका में प्रवेश से रोक दिया। इस पर श्रीराम ने माली से वाटिका में प्रवेश की अनुमति मांगते हुए कहा कि “बंधु माली हो हमके चाही कछू तुलसी दल और फूल..” परंतु माली तो प्रभु श्रीराम की बात भी सुनने को तैयार नहीं थे। इसके बाद मुख्य माली के साथ संवाद शुरू हुआ।
“कोमल-कोमल हाथन से कैसे आप फूल तोड़ब धनुषधारी हो ..”
माली भगवान श्रीराम से कह रहे हैं कि आपके हाथ कमल के फूल से भी कोमल हैं। इन हाथों से आप कैसे फूल तोड़ पाएंगे. हम माली ही फूल तोड़ कर आपको दे देते हैं. उधर प्रभु स्वयं ही अपने हाथों से फूल तोड़ने की बात कह रहे थे. उनका कहना था कि गुरु सेवा का धर्म उन्हें निभाना है ऐसे में वह अपने हाथों से फूल तोड़ेंगे. मालियों ने श्रीराम को वैदेही की जय कहने को कहा जिसे प्रभु ने रघुकुल की शान के विरुद्ध माना और ऐसा करने से इंकार कर दिया. हालांकि, बाद में कोई चारा नहीं चलता देख हार मानकर श्रीराम ने जनकपुर के निवासियों एवं जनक पुत्री के जयकारे लगाये. जयकारे के बाद मालियों ने प्रभु को वैदेही वाटिका में फूल तोड़ने को छूट दे दी. उधर मालियों ने मन ही मन श्री राम को वैदेही का वर मान लिया था.
पुष्पवाटिका में मन ही मन सीता ने श्री राम का किया वरण
संयोगवश उस समय सीता जी बागीचे में पूजन करने जा रही थीं. मालियों ने दोनों भाईयों को कहा कि आप दोनों भाई किसी पेड़ की आड़ में छुप जाइएगा, ताकि सीता जी की नजर आपलोगों पर न पड़े. मालियों की बात मानते हुए दोनों भाई पेड़ की आड़ में छिप जाते हैं. सीता जी को देखकर भगवान श्रीराम मुग्ध हो जाते हैं. उसी समय सीता जी भी अपनी सखियों के साथ गौरी पूजन को वाटिका में स्थित मंदिर जाती हैं. यहाँ वह लताओं की ओट से श्रीरामजी को देखती हैं और मन ही मन उनका वरण कर लेती हैं।
इस अवसर पर रसाचार्य स्वामी फतेह कृष्ण, स्वामी रामवल्लभ शर्मा, पंडित घनश्याम, स्वामी भुवनेश्वर, स्वामी वेद प्रकाश, देवकीनंदन श्याम सखा, स्वामी सीताराम, ब्राह्मण सभा के अध्यक्ष आचार्य राम विलास चतुर्वेदी आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे।