आज के आधुनिक युग में भारत में एक ऐसा गांव जहां देवी-देवताओं को खुश करने के लिए सभी सीमाओं को पार कर जाते हैं। जहां तक कि अपनी जान की भी परवाह नहीं करते हैं। जी हां, मध्य प्रदेश के बैतूल में एक बेहद ही हैरान कर देने वाला खेल खेला जा रहा है। यहां पर खुद को पांडवों का वंशज कहने वाले रज्जड़ समाज के लोग देवी को खुश करने के लिए कांटों की सेज पर लेटते हैं। अपनी मन्नत पूरी कराने और देवी को खुश करने के लिए खुशी-खुशी कांटों की सेज पर लेटते हैं। रज्जड़ समाज के लोगों की मानें तो ऐसा करने से देवी प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं।
साल में एक बार अगहन मास में होता परंपरा का निर्वाह
इस मामले के सामने आने से हर कोई हैरान है। बता दें कि बैतूल जिला स्थित सेहरा गांव में हर साल अगहन मास में रज्जड़ समाज के लोग इस परंपरा को निभाते हैं। इन लोगों का कहना है कि हम पांडवों के वंशज हैं। पांडवों ने कुछ इसी तरह से कांटों पर लेटकर सत्य की परीक्षा दी थी। इसलिए रज्जड़ समाज इस परंपरा को सालों से निभाता आ रहा ह। इन लोगों का मानना है कि कांटों की सेज पर लेटकर वो अपनी आस्था, सच्चाई और भक्ति की परीक्षा देते हैं। ऐसा करने से भगवान खुश होते हैं और उनकी मनोकामना भी पूरी होती है।
काटों पर नंगे बदन लेटने के पीछे मान्यता
रज्जड़ समाज के ये लोग अगहन मास के दिन पूजा करने के बाद नुकीले कांटों की टहनियां तोड़कर लाते हैं। फिर उन टहनियों की पूजा की जाती है। इसके बाद एक-एक करके ये लोग नंगे बदन इन कांटों पर लेटकर सत्य और भक्ति का परिचय देते हैं। इस मान्यता के पीछे भी एक कहानी, जो काफी रोचक है. दरअसल, पानी के लिए भटक पांडवों को जंगल में नाहल समुदाय का एक व्यक्ति दिखाई दिया।
पांडवों ने उस नाहल से पूछा कि इन जंगलों में पानी कहां मिलेगा, लेकिन नाहल ने पानी का स्रोत बताने से पहले पांडवों के सामने एक शर्त रख दी। नाहल ने कहा कि, पानी का स्रोत बताने के बाद उनको अपनी बहन की शादी नाहल से करानी होगी।
ये है मान्यता
यह बात किसी से छुपी नहीं है कि पांडवों को कोई बहन नहीं है। इस पर पांडवों ने एक भोंदई नाम की लड़की को अपनी बहन बना लिया और पूरे रीति-रिवाजों से उसकी शादी नाहल के साथ करा दी। विदाई के वक्त नाहल ने पांडवों को कांटों पर लेटकर अपने सच्चे होने की परीक्षा देने को कहा। इस पर सभी पांडव एक-एक कर कांटों पर लेट गए और खुशी-खुशी अपनी बहन को नाहल के साथ विदा किया। हालांकि, इस आस्था का पौराणिक कथाओं से कितना संबंध है, यह कहना मुश्किल है।