लखनऊ। उत्तरप्रदेश के राज्यपाल की जिम्मेदारी संभालने से पहले आनंदीबेन पटेल गुजरात की सीएम रह चुकी हैं। इसलिए सरकार और राजभवन के बीच संवाद की दोनों भूमिकाओं का उन्हें अनुभव है। उनका कहना है कि राज्यपाल का काम सरकार को गलत-सही बताना है। यह बताने का तरीका है, सरकार से सीधे संवाद करना। आइए जानते हैं राजनीतिक बयानों में राज्यपाल की भूमिका पर उनके विचार।
सवाल- राज्यपालों की सक्रियता को लेकर सवाल उठते हैं। पश्चिम बंगाल, केरल सहित कई राज्यों में राजभवनों पर राजनीतिक होने के आरोप हैं। आपका क्या अनुभव है?
पश्चिम बंगाल की स्थितियां अलग हैं। अगर राज्यपाल को सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाने और संवाद करने से रोका जाएगा तो उन्हें मुखर होना होगा। सामान्य स्थितियों में राज्यपाल को अपना दायित्व समझना चाहिए और राजनीति से दूर रहना चाहिए।
सवाल- राजभवन तक पक्ष-विपक्ष दोनों आते हैं। ऐसे में क्या वैचारिक पृष्ठभूमि काम में बाधा नहीं बनती?
हमारी भूमिका स्पष्ट है। सबको सुनना और उसे सही जगह तक पहुंचाना मेरा काम है। विपक्ष के लोग जो सवाल या समस्याएं लेकर आते हैं, मैं उसे सरकार तक पहुंचाती हूं। लेकिन, लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका भी रचनात्मक होनी चाहिए। ध्यादेश लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं हैं। कानून लाने से पहले उस पर सदन में विचार-विमर्श होना चाहिए। सदन में भी सामान्य स्थितियों में विधेयकों पर चर्चा के दौरान वॉकआउट का प्रचलन बढ़ गया है। लोकतंत्र में यह चलन भी ठीक नहीं है। यह जरूर है कि जरूरी मुद्दों के समाधान के लिए अध्यादेश लाना पड़ता है।
सवाल- गुजरात में आपने शिक्षा में काफी कम किया है। यूपी को इस अनुभव का क्या लाभ मिल रहा है?
शिक्षा और स्वास्थ्य सरकारों की प्राथमिकता में होना चाहिए, लेकिन इसे अब भी वह स्थान नहीं मिल रहा। यहां के प्राथमिक विद्यालयों और आंगनबाड़ी केंद्रों का मैंने दौरा किया है। यहां के बच्चे बहुत स्मार्ट हैं। बाकी, दशकों से पिछड़ी व्यवस्था को ठीक करने में वक्त लगेगा। नियुक्तियों की प्रक्रिया कोर्ट में लंबी खिंच जाती है। कुछ बुनियादी बदलावों के लिए मैंने सुझाव भी दिए हैं।