श्रवण कौशल अध्ययन की आधारशिलाः त्रिभुवन दास
मथुरा। जी.एल. बजाज ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस के मैनेजमेंट विभाग द्वारा शुक्रवार को आयोजित कार्यशाला में इस्कान मंदिर से आए वक्ता त्रिभुवन दास ने छात्र-छात्राओं को श्रवण कौशल में सुधार के मंत्र दिए। उन्होंने छात्र-छात्राओं को व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में ध्यान के महत्व से भी रूबरू कराया।
वक्ता त्रिभुवन दास ने कहा कि एक शिशु अच्छी प्रकार से सुनने के कारण ही ध्वनियों के सूक्ष्म अन्तर को समझ पाता है। उन्होंने कहा कि श्रवण कौशल ही अन्य भाषायी कौशलों को विकसित करने का प्रमुख आधार बनता है। इससे ध्वनियों के सूक्ष्म अन्तर को पहचानने की क्षमता विकसित होती है। सच कहें तो श्रवण कौशल ही अध्ययन की आधारशिला भी है।
श्री दास ने प्राध्यापकों का आह्वान किया कि वे श्रवण कौशल के विकास हेतु छात्र-छात्राओं को सुनने, बोलने की प्रक्रिया में सतत रूप से सक्रिय रखें क्योंकि श्रवण कौशल ही शुद्ध उच्चारण और बोलने की पृष्ठभूमि तैयार करता है। उन्होंने बताया कि सस्वर वाचन स्वरोच्चारण श्रवण विधियों के द्वारा श्रवण कौशल का विकास किया जा सकता है। इसमें आवश्यकता सिर्फ अभ्यास की होती है। श्री दास ने कहा कि श्रवण कौशल का अर्थ छात्र-छात्राओं में ऐसी क्षमता का विकास करने से है, जिससे वह किसी कथन को ध्यान से सुनकर उसका सही अर्थ समझ सके तथा सुनी हुई बात पर चिंतन-मनन कर उचित निर्णय ले सके।
श्री दास ने बताया कि बोलने में विचार और भाषा की स्पष्टता होना जरूरी है। सुनने और बोलने को अलग-अलग करके देखने की कल्पना भी नहीं की जा सकती क्योंकि सुनना और बोलना एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। श्री दास ने कहा कि श्रवण कौशल तभी कार्य करता है जब कोई वाचन कौशल का उपयोग कर रहा हो। जब कोई स्वयं बोल रहा हो तो भी श्रवण कौशल साथ-साथ चलता रहता है। श्री दास ने छात्र-छात्राओं को श्रवण कौशल में सुधार करने के उपाय भी सुझाए।
संस्थान की निदेशक डा. नीता अवस्थी ने वक्ता त्रिभुवन दास का स्वागत करते हुए छात्र-छात्राओं का आह्वान किया कि कार्यशाला में उन्होंने जो भी सीखा है, उस पर सतत मनन-मंथन करें। इस अवसर पर विभागाध्यक्ष मैनेजमेंट प्रो. जीतेन्द्र सिंह, प्रो. गजल सिंह, डा. रचित गुप्ता तथा प्रो. प्रज्ञा द्विवेदी आदि भी उपस्थित रहे।
चित्र कैप्शनः छात्र-छात्राओं को श्रवण कौशल से रूबरू कराते वक्ता त्रिभुवन दास।