Saturday, October 19, 2024
Homeन्यूज़न्यूज़महाभारत काल में महिला सशक्तिकरण, समाज को दिया धर्म, सत्य, न्याय के...

महाभारत काल में महिला सशक्तिकरण, समाज को दिया धर्म, सत्य, न्याय के पथ पर चलने का संदेश

वृन्दावन। वृन्दावन शोध संस्थान में महाभारत काल में महिला सशक्तिकरण विषय पर ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार में शिक्षक एवं लोक संस्कृति से जुड़े कलाकारों ने विचार व्यक्त किए।


व्याख्यान के आरम्भ में डॉ. नीतू गोस्वामी ने महाभारत की पात्र द्रौपदी के विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि द्रौपदी महाभारत की नायिका के रूप में हमारे सामने उपस्थित होती है। द्रौपदी का सम्पूर्ण जीवन दु:ख और संताप में ही व्यतीत हुआ। उन्होंने धर्म, सत्य, न्याय का दामन नहीं छोड़ा। द्रौपदी के चरित्र को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो सम्पूर्ण नारियों का जीवन संघर्ष एक नारी पात्र में समेट दिया गया हो।

डॉ. सीमा शर्मा ने गांधारी के विषय पर बताया कि उन्होंने समस्त नारी जाति को संदेश दिया कि विपरीत परिस्थिति होने पर हमें संयम और धैर्य रखना चाहिए। अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखते हुए परिस्थिति के अनुरूप निर्णय लेना चाहिए। उन्होंने अपनी पति भक्ति के आदर्श के साथ-साथ अपने ही सिद्धान्तों पर चलकर जीना सीखा तथा सदैव अपने पति तथा अपने पुत्रों को अधर्म व कुमार्ग पर जाने से रोका।

ब्रज की प्रसिद्ध लोक कलाकार डॉ. सीमा मोरवाल ने महारानी कुन्ती के विषय में अपने वक्तव्य देते हुए कहा कि महाभारत की आधारशिला में कुन्ती का बड़ा योगदान है। यदि कुन्ती न होती तो पांडुपुत्र न होते। पांडुपुत्र संस्कारित न होते तथा अधर्म के प्रति, अन्याय के प्रति आवाज उठाने वाले न होते तो महाभारत होने का कोई औचित्य नहीं होता। कुन्ती ने मातृ सत्तात्मक परिवार को प्रमुख रूप से बल दिया है। धैर्य, धर्म तथा अनेकों कठिनाईयों का पालन करते हुए कुन्ती ने अपने पुत्रों का पालन-पोषण किया तथा अपनी पुत्रवधू द्रौपदी के अपमान का बदला लेने के लिए अपने पुत्रों को कृष्ण के माध्यम से धर्म युद्ध के लिए प्रेरित किया। इस प्रकार एक उत्तम सास तथा बहू के सम्बन्धों को कुन्ती ने बहुत मधुर सम्बन्धों के रूप में समाज के सामने प्रस्तुत किया।

वंदनाश्री ने महाभारत की पात्र सुभद्रा के विषय में बताया कि सुभद्रा के चरित्र को ठीक उसी भाँति समझा जा सकता है। जैसे कि अयोध्या में श्रुतिकीर्ति जी वनवास काल में राम-सीता, लक्ष्मण के वन जाने के बाद उर्मिला जी विरह वियोग में जीती रहती हैं। द्रौपदी के पाँचों पुत्रों और अभिमन्यु का लालन पोषण किया।
उन्होंने बताया कि हमारे ब्रज में जब नारियां श्रीकृष्ण को गालियां देती हैं तो सुभद्रा के बारे में कहती हैं ‘‘बहन तुम्हारी सुभद्रा कहिऐ कहिऐ रूप अपार, क्वारी अर्जुन संग सिधारी निकरी ए सौति छिनार’’ महाभारत की पात्र नारियों में सुभद्रा सम्मुख कम दिखलाई पड़ती हैं। सुभद्रा की कर्तव्यपरायता, नि:स्वार्थ सेवा के कारण ही आज भी जगन्नाथ पुरी, उड़ीसा में श्रीकृष्ण, तथा बलराम के साथ सुभद्रा जी विराजित हैं। जिसके चमत्कार संसार प्राणियों को विस्मृत करते हैं।

डॉ. लक्ष्मी गौतम ने महाभारत की पात्र उत्तरा के यशस्वी चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि देवी उत्तरा का प्रसंग अभिमन्यु की वीरगति के पश्चात एक गर्भस्थ शिशु की रक्षा और पांडव कुल के वंश बीज की रक्षा करने वाली एक करूणामयी माँ के रूप में आता है। उत्तरा का सम्पूर्ण चरित्र एक ऐसी वीरांगना पत्नी का है जिसका पति मात्र 16 वर्ष की अवस्था में युद्ध मैदान में वीरगति को प्राप्त हो गया और अपनी गर्भवती पत्नी को छोड़ गया। उन्होंने बताया कि हर स्त्री का माँ के स्वरूप में अपने गर्भस्थ शिशु की रक्षा करना नैतिक कर्तव्यों की श्रेणी में आता है। उत्तरा ने एक उदाहरण प्रस्तुत कर सृष्टि की समस्त मातृशक्ति को संदेश दिया है। देवी उत्तरा को सृष्टि की उस माता होने का भी गौरव प्राप्त है जिसके गर्भ में परीक्षित जैसे भक्त और भगवान श्रीकृष्ण ने एक साथ स्थान पाया हो।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में ममता कुमारी तथा प्रगति शर्मा के द्वारा सभी विदुषियों को दुपट्टा ओढ़ाकर स्वागत किया गया। वेबिनार का संचालन डॉ. ब्रजभूषण चतुर्वेदी तथा धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के निदेशक सतीश चन्द दीक्षित द्वारा दिया गया। कार्यक्रम में सुकुमार गोस्वामी, रजत शुक्ला, श्रीकृष्ण गौतम, रेखारानी, रामप्रताप, महेन्द्र सिंह, रमेश चन्द, अशोक दीक्षित आदि उपस्थित रहे। तकनीकी सहयोग उमाशंकर पुरोहित, भगवती प्रसाद तथा जुगल शर्मा ने दिया।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments