वृंदावन। वृंदावन में 12 साल के अन्तराल में यमुना तट पर हरिद्वार कुंभ से पहले होने वाली इस कुंभ पूर्व बैठक के आयोजन की परंपरा की शुरुआत देवकाल से चली आ रही है। वृंदावन में कुंभ से पहले वैष्णव संतों की इस बैठक की परंपरा क्योें, कैसे शुरु हुई। इन सभी सवालों के जवाब और कुंभ पूर्व बैठक के महत्व के बारे में महंत रामस्वरुप ब्रह़्मचारी ने नियो न्यूज से हुई एक खास मुलाकात में बताया। आइए जानते हैं कुंभ पूर्व बैठक के महत्व के बारे में।
अयोध्या कुंज के महंत रामस्वरुप ब्रह्मचारी ने वैदिक सनातन हिन्दू सस्कृति में कुंभ के अनादि कहा जाता है। दैत्यों और देवताओं के बीच अमृत कलश को लेकर संघर्ष हुआ था। गरुणजी जब दैत्यों से अमृत कलश को बचाने के लिए भागे। गरुणजी ने वृंदावन में कदमटेर के वृक्ष पर विश्राम किया था। इसके बाद हरिद्वार, उज्जैन, नासिक एवं प्रयागराज भी गए। तभी से कुंभ के आयोजन की परंपरा प्रारंभ हुई।
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उन्होंने बताया कि गरुणजी ने अमृत कलश को देवताओं से सुरक्षित रखा। इसकी खुशी में कुंभ के आयोजन की परंपरा का निर्णय लिया गया। यह किसी व्यक्ति विशेष द्वारा इस परंपरा की शुरुआत न करके यह एक सामूहिक निर्णय था। उस समय के तात्कालिक ऋषि मुनियों ने सामुहिक निर्णय लेकर इस परंपरा की शुरुआत की थी। कुंभ के आयोजनों का प्रथम निर्णय के लिए वृंदावन में संत महंतों की बैठक हुई। जिसमें कुंभ के आयोजन की परंपरा का निर्णय लिया गया। तभी से यह कुंभ की प्रथम भूमि है। इसलिए कुंभ पूर्व बैठक वृंदावन कुंभ को कहा जाता है।
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