जब आप मंदिर जाते होंगे, तो भगवान की पूजा के बाद परिक्रमा जरूर करते होंगे। लेकिन क्या कभी आपने कभी अपने सोचा है कि भगवान के मूर्ति की परिक्रमा क्यों की जाती है? अगर आपने इसके बारे में कभी नहीं सोचा तो आज हम आपको बताएंगे कि आखिर देव मूर्ति की स्थापना क्यों की जाती है? आइए जानते हैं इससे जुड़े रहस्य।
दरअसल हिंदू धर्मशास्त्रों में ऐसा माना गया है कि जिस जगह पर देव मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होती है, उससे कुछ दूरी तक प्रभाव बना रहता है। इसलिए मंदिर में भगवान की मूर्ति के निकट परिक्रमा की जाती है, इससे दैवीय शक्ति की सहज ही प्राप्ति हो जाती है। ऐसे में मंदिर में परिक्रमा करने से एक विशेष ऊर्जा मिलती है, ये वो ऊर्जा होती है जो सभी प्रकार के नकारात्मक प्रभावों को दूर करती है और भक्त के मन में देवत्व का भाव प्रबल करती है।
जानिए मंदिर में कैसे करते हैं परिक्रमा
हिंदू धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि देवमूर्ति की परिक्रमा हमेशा दाएं हाथ से शुरू करनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि दैवीय शक्ति के आभामंडल की गति दक्षिणवर्ती होती है। इसके उलट अगर बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा शुरू की जाए तो हमारा तेज नष्ट हो सकता है, इसलिए कभी भी बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा शुरू नहीं करनी चाहिए।
सामान्यत: देवी-देवताओं की एक ही परिक्रमा की जाती है, लेकिन शास्त्रों में अलग अलग देवी-देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग अलग संख्या निर्धारित की गई है। इस बारे में ये कहा गया है कि भगवान की परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और इससे इंसान के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। बहरहाल, सभी देवताओं के परिक्रमा के संबंध में शास्त्रों में अलग अलग नियम बताए गए हैं।
वट वृक्ष
महिलाओं द्वारा वटवृक्ष की परिक्रमा करना सौभाग्य का सूचक माना जाता है। महिलाएं वट सावित्री व्रत पर वट वृक्ष की 108 परिक्रमाएं करती हैं। माना जाता है कि इससे पति की आयु लंबी होती है, जिससे महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार शिवलिंग की आधी परिक्रमा की जाती है। बताया जाता है कि शिवलिंग की परिक्रमा की जाए तो रात को बुरे सपने नहीं आते हैं। अगर आप भगवान शिव की परिक्रमा करते हैं तो ध्यान रखें कि अभिषेक की रेखा को न लांघें। भगवान शिव की आधी परिक्रमा करके वापस लौट आएं और फिर बाएं ओर से जाकर आधी परिक्रमा करें।
मां दुर्गा
अगर आप मां दुर्गा के मंदिर जाते हैं, तो हमेशा ध्यान रहे कि वहां एक परिक्रमा पूरी की जाए। खासकर नवरात्रों के समय में मां दुर्गा के मंदिर जाकर परिक्रमा अवश्य की जानी चाहिए।
भगवान गणेश
भगवान गणेश की परिक्रमा का भी एक विधान है। गणेश की मूर्ति की जब भी परिक्रमा करें, तो उनके विराट स्वरूप व मंत्र का जाप करते रहें। ऐसा करने से कामनाओं की तृप्ति होती है।
भगवान विष्णु
भगवान विष्णु हों या उनके कोई अवतार हों, इन सभी की 4 परिक्रमा करनी चाहिए। कहा जाता है कि विष्णुजी की परिक्रमा से हृदय परिपुष्ट होता है और सकारात्मक सोच में वृद्धि होती है।
भगवान सूर्य
भगवान सूर्य की 7 परिक्रमा की जानी चाहिए, ऐसा करने से मन पवित्र होता है। साथ ही साथ मन के बुरे विचारों का नाश भी होता है। ध्यान रहे, जब भी सूर्य मंदिर की परिक्रमा करें तो भास्कराय मंत्र का जाप जरूर करें। इससे कई रोगों का नाश होता है।
परिक्रमा के संबंध में कुछ जरूरी नियम
- परिक्रमा शुरू करने के पश्चात बीच में कहीं भी रूकना नहीं चाहिए।
- परिक्रमा जहां से शुरू की गई थी , वहीं खत्म करनी है
- परिक्रमा के दौरान आसपास मौजूद किसी से भी बातचीत न करें।
- बाएं हाथ की तरफ से कभी परिक्रमा ना करें।