वृंदावन। कुंभ पूर्व वैष्णव बैठक के प्रथम स्नान से पहले शाही अंदाज में श्रीमहंत एवं संतों ने पेशवाई (शोभायात्रा) निकाली। कड़़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच निकली शाही पेशवाई में शामिल महंत एवं संतों का भक्तों ने जगह-जगह पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। वहीं खिलाड़ी संतों ने शस्त्रों से करतब दिखाए। वृंदावन में 12 वर्ष के अन्तराल में आयोजित होने वाले इस संत समागम में हर कोई भक्ति में रंग में रंगा नजर आया।
शनिवार पूर्णिमा तिथि को प्रात: श्रीपंच निर्मोही अनी के श्रीमहंत धर्मदास महाराज, श्रीपंच दिगम्बर अनी के श्रीमहंत किशन दास महाराज एवं श्रीपंच निर्मोही अनी के श्रीमहंत राजेन्द्र दास महाराज एवं अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत धर्मदास महाराज सहित अनी के 18 अखाड़ोें के अलावा कुंभ क्षेत्र में लगे खालसाओं के महंतजन चांदी, सोने से जड़े छत्रों में रथों, बग्घियों में विराजित होकर पेशवाई में चल रहे थे।
वहीं सजे-धजे घोड़ों और ऊंटों पर भी संत सवार होकर चल रहे थे। खिलाड़ी संत बनैटी, तलवार, लाठियां और अन्य शस्त्रों से करतब दिखा रहे थे। जिनके करतबोे को देख हर कोई चकित हो रहा था। भक्तजन भी भक्ति संगीत की धुनों पर भाव नृत्य करे हुए चल रहे थे। शाही पेशवाई में हजारों वैष्णवजन भी शामिल थे। जो कि इस कुंभ पूर्व वैष्णव बैठक के साक्षी बन रहे थे। वहीं शाही पेशवाई मे लंबे समय से के बाद एक साथ चल रहे श्रीमहंत एवं सतों के दर्शनों के लिए जगह-जगह भक्तों का जमावड़ा लगा।
शाही पेशवाई कुंभ क्षेत्र से शुरु होकर चुंगी चौराहा, अनाजमंडी, पुराना बजाजा, किशोरपुरा, विद्यापीठ चौराहा, बाँकेबिहारी मंदिरबाजार, अठखम्बा, वनखण्डी, लोई बाजार, प्रताप बाजार होते हुए पुन: कुंभ मेला क्षेत्र पहुंची। इस बीच जगह-जगह पेशवाई का इंतजार कर रहे भक्तों एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों ने पुष्प वर्षा कर उनका स्वागत किया। वहीं वैष्णवों ने श्रीमहंतों की आरती उतारी और पुष्प मालाओें से उनका स्वागत किया।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के ब्रज मंडल के अध्यक्ष हरिशंकर दास नागा ने बताया कि कुंभ महा पर्व हो या कुंभ पूर्व वैष्णव बैठक इस शाही पेशवाई का इनमें विशेष महत्व है। शाही अंदाज में पेशवाई निकलने के बाद ही कुंभ क्षेत्र में पहुंचने पर निशान स्नान उसके बाद तीनों अनी और उनके अखाड़ों, सम्प्रदायों के श्रीमहंत एवं संत जन शाही स्नान करेंगे। यह धर्म परंपरा अनादिकाल से चल रही है। वही परंपराओं को वैष्णव संत महंत एवं भक्तों द्वारा निर्वाह किया जा रहा है। यही भारतीय सनातन धर्म का मूल दर्शन है।