Friday, October 18, 2024
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छात्र-छात्राओं के प्रति सहानुभूति रखें शिक्षकः डा. आर.आर. मिश्रा


राजीव एकेडमी में बुद्धिलब्धि, रुझान, रुचि एवं व्यक्तित्व पर हुआ आनलाइन व्याख्यान


मथुरा। राजीव एकेडमी फार टेक्नोलाजी एण्ड मैनेजमेंट के शिक्षा संकाय (बीएड) द्वारा बुधवार को एक आनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान का विषय था बुद्धिलब्धि, रुझान, रुचि एवं व्यक्तित्व के संन्दर्भ में बच्चे को कैसे समझें। मुख्य वक्ता पूर्व डिप्टी डायरेक्टर श्रम मंत्रालय भारत सरकार एवं मनोवैज्ञानिक डा. आर.आर. मिश्रा ने कहा कि एक शिक्षक को हमेशा छात्र-छात्राओं के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए तथा एक-दूसरे की तुलना नहीं करनी चाहिए क्योंकि सभी की बौद्धिक क्षमता भिन्न होती है।


मनोवैज्ञानिक डा. मिश्रा ने कहा कि सूचना क्रांति के इस युग में विद्यार्थियों को मानसिक मजबूती के साथ अपने ज्ञान को परिमार्जित रखना बहुत आवश्यक है। डा. मिश्रा ने भावी शिक्षकों को सफलता के कई तरह के टिप्स बताए तथा कहा कि अध्यापक को चाहिए कि वह कभी भी एक बच्चे की तुलना दूसरे बच्चे से न करे क्योंकि इस संसार का प्रत्येक बच्चा भिन्न है। सभी बच्चों में कुछ अच्छाई होती है तो कुछ भिन्नताएं होती हैं इसलिए बौद्धिक स्तर पर कोई निर्णय ले पाना कठिन होता है।

प्रथम विश्व युद्ध के एक सैनिक का उदाहरण देते हुये डा. मिश्रा ने कहा कि वह व्यक्ति जो सैनिक के पद से उन्नति करते हुए कर्नल के पद तक पहुँचा, वह बाल्यकाल से मन्दबुद्धि बालक था। शिक्षक के व्यवहार और कार्य पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि एक शिक्षक को हमेशा स्वयं को संयमित रखते हुए छात्र-छात्राओं के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाना चाहिए। इतना ही नहीं उन्हें मनोवैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करते हुए छात्र-छात्राओं के कार्य व्यवहार और अध्ययन को परिष्कृत करते रहना जरूरी है।

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डा. मिश्रा ने विद्यार्थियों के प्रश्नों का उत्तर देते हुए तीन ‘ए‘ अर्थात एक्सेप्टेंस, अफेक्शन और अप्रूवल पर प्रकाश डालते हुए कहा कि एक शिक्षक को विद्यार्थियों की स्वीकरण क्षमता, उनके प्रति स्नेह और उनकी बौद्धिक क्षमता की पहचान करना महत्वपूर्ण है। उन्हें पता लगाना चाहिए कि बालक चिड़चिड़ा क्यों है, उसका परिवेश जान कर ही उसे आगे का कार्य देना चाहिए। अपने विद्यार्थी को पूरी तरह से जाने बिना शिक्षक को कोई फैसला नहीं लेना चाहिए। उन्होंने बताया कि वैदिककालीन गुरुकुलों में आचार्य बालक के परिवेश का अध्ययन करने के बाद ही उसको गुरुकुल के उत्तरदायित्व सौंपते थे। गुरुकुलों में सर्वप्रथम आचार्य द्वारा नए विद्यार्थियों को सबसे सरल कार्य सौंपे जाते थे।

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आर.के. एज्यूकेशन हब के चेयरमैन डा. रामकिशोर अग्रवाल ने कहा कि आदर्श शिक्षक वही है जो बालक को देखते ही पढ़ ले और उसकी समस्या का तत्काल समाधान कर दे। प्रो. एस.सी. यादव ने वक्ता डा. आर.आर. मिश्रा का आभार माना।

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