वृंदावन। 40 करोड़ की लागत से एक दशक पूर्व बने जिला संयुक्त चिकित्सालय में पर्याप्त संसाधन के अभाव में स्वास्थ्य सेवाएं दम तोड़ रही हंै। नर्सिग स्टाफ और डॉक्टरों की लंबे समय से झेल रहे अस्पताल की सरकार अनदेखी कर रही है। काबिलेगौर बात यह है कि रखरखाव के मामले में मंडल स्तर पर कई बार अवार्ड प्राप्त कर चुके सौ शैया अस्पताल में दूरदराज के सैकड़ों मरीज उपचार के लिए भटकने को मजबूर हैं।
प्रदेश के तत्कालीन प्रमुख सचिव नवनीत सहगल की देखरेख में करीब 40 करोड़ की लागत से अस्पताल का निर्माण कराया गया। अस्पताल के निर्माण से वृंदावन और आसपास के दर्जनों गांव के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा मिलने की उम्मीद जगी। लेकिन शुरुआत से ही डॉक्टर और अन्य स्टाफ की कमी झेल रहे अस्पताल की पिछले एक दशक से शासन एवं प्रशासन ने अनदेखी की है।

विभिन्न रोगों के करीब तीस चिकित्सकों की नियुक्ति समेत लैब टेक्नीशियन, नर्सिंग स्टाफ की तैनाती का प्रस्ताव शासन को भेजा गया। सरकारें बदल चुकी हैं। लेकिन नगर की स्वास्थ्य सेवाएं अभी भी बदहाल है। विशाल इमारत बनने के बाबजूद स्टाफ की भारी कमी के चलते अस्पताल अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पा रहा है। अस्पताल में प्रतिदिन दूरदराज के करीब 5 सैकड़ा से भी अधिक मरीज ओपीडी में इलाज के लिये आते है। लेकिन न तो चिकित्सक मौजूद है और न लैब टेक्नीशियन , विभिन्न जांच मशीनें स्टाफ के अभाव में धूल फांक रही है।
मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर संजीव जैन ने बताया कि इस समय अस्पताल में करीब आधा दर्जन चिकित्सक ही कार्यरत है। कई बार शासन से पत्राचार किया जा चुका है। कोविड 19 संक्रमण की जांच व वेक्सिनेशन की जिम्मेदारी भी है। लेकिन स्टाफ न होने से मरीजों को सुविधाएं उपलब्ध नही हो पा रही है।