वृन्दावन। रँग मन्दिर दिव्यदेश के ब्रम्होत्सव में अष्टम दिवस ठाकुर रंगनाथ भगवान सोने के घोड़े पर सवार भक्तों को कृतार्थ करने निकले। ठाकुरजी के स्वागत में आकर्षक आतिशबाजी का भक्तों ने जमकर लुत्फ उठाया। सवारी के रंगजी के बगीचा पहुंचने पर आतिशबाजी की गई।
रँगमन्दिर दिव्यदेश के दस दिवसीय ब्रम्होत्सव में सोमवार को ठाकुर जी पारम्परिक लीलानुसार ठाकुर रंगनाथ भगवान सोने के घोड़े पर सवार हुए। बहुमूल्य स्वर्णाभूषण, रेशमी जरी की पोशाक में सजे धजे ठाकुर जी की हाथ मे रजत निर्मित भाला लिये अद्भुत छवि श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। इससे पूर्व निज मन्दिर में ठाकुर जी का सुगन्धित जल द्रव्य से तिरुमन्जन किया गया।
स्वर्ण निर्मित अश्वारूढ़ ठाकुरजी की सवारी जैसे ही विश्रामस्थल बड़ा बगीचा पहुंची। वहाँ भगवान कुछ देर मंडप में विश्राम कर बड़े बगीचा के मुख्य द्वार पर पहुंचे तो वहां स्वागत में भव्याकर्षक आतिशबाजी की गई। रंगबिरंगी रोशनी से सम्पूर्ण बड़ा बगीचा जगमग हो उठा। भक्तो ने आतिशबाजी का जमकर लुत्फ उठाया। सवारी पुन: मन्दिर परिसर पहुंची तो भील लूटन लीला का आयोजन किया गया।
परकाल स्वामी वैष्णव सम्प्रदाय में उच्च कोटि के भक्त हो गये । वह अपने जीवन में श्रीवैष्णव तदीयाराधन (वैष्णवों को भोजन कराना) को अत्यधिक महत्व देते थे । इस कार्य हेतु वह भगवान की परवाह किये बगैर धनिकों को लूटकर भी इस परोपकार कार्य का संचालन करते थे । एक बार कोई धनिक हाथ नही लगा तो स्वामी जी वैष्णव सेवा हेतु बहुत चिंतित हो गए, तभी अकस्मात योद्धा के वेश में लौटते हुए प्रभु उन्हें दिखाई दिए।
उन्होंने जंगलों में निवासी अपने साथी भीलों के साथ झुण्ड बनाकर प्रभु को घेर लेते है और उनके वस्त्र एवं सारे आभूषण उनसे छीन लेते है जब उनको बाद में ज्ञात होता है के यह साक्षात बैकुण्ठनाथ है तो उनसे क्षमा याचन करते है । इस सवारी के दर्शन से दारिद्र, दु:ख और भय से मुक्ति मिल जाती है। निर्भयता प्राप्त होती है।