दुनिया में इस वक्त इक्के दुक्के खिलाड़ी हैं जो टेस्ट स्पेशलिस्ट माने जाते हैं। ऐसे खिलाड़ियों को बड़े नुकसान भी हैं। वो सुर्खियों में नहीं रहते। उन्हें आईपीएल और इसके जैसी तमाम दूसरी टी-20 लीग में बहुत मामूली रकम मिलती है। लिमिटेड ओवर टीम में उन्हें जगह नहीं मिलती। वो विज्ञापनों की चकाचौंध से भी दूर ही रह जाते हैं। उनके पास कुछ होता है क्रिकेट फैंस का सम्मान। क्रिकेट के दिग्गज खिलाड़ियों की तारीफ।
भारत के पास ऐसे ही एक खिलाड़ी हैं-चेतेश्वर पुजारा। वो फैंसी शॉट्स नहीं खेलते। उन्हें कई साल बाद इस साल बड़ी ही मामूली रकम पर आईपीएल में खरीदा गया था बावजूद इसके चेतेश्वर पुजारा के होने का मतलब विराट कोहली जानते हैं। मुश्किल से मुश्किल विकेट और जटिल परिस्थितियों में क्रीज पर टिककर बल्लेबाजी करनी हो तो पूरी भारतीय टीम चेतेश्वर पुजारा की तरफ ही आंख उठाकर देखती है। वो आज भी ‘फ्रंटफुट डिफेंस’ वाले बल्लेबाज हैं लेकिन फिलहाल मुश्किल दूसरी है।
मुश्किल ये है कि पिछले काफी समय से चेतेश्वर पुजारा टेस्ट क्रिकेट में अपनी उस तरह की पारी नहीं खेल पाए हैं जिसके लिए वो जाने जाते हैं। उनका प्रदर्शन औसत रहा है। इंग्लैंड में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ वल्र्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल और उसके बाद मेजबान टीम के खिलाफ लंबी टेस्ट सीरीज में बतौर बल्लेबाज विराट कोहली के बाद सबसे बड़ा इम्तिहान चेतेश्वर पुजारा का ही है।
काफी समय से खामोश है पुजारा का बल्ला
चेतेश्वर पुजारा भारत के सबसे अनुभवी टेस्ट खिलाड़ियों में शुमार हैं। उन्हें टेस्ट क्रिकेट में एक दशक से ज्यादा का तजुर्बा है। वो भारत के लिए 85 टेस्ट मैच खेल चुके हैं। उनके खाते में 18 टेस्ट शतक हैं। 46 से ज्यादा की औसत है। 6 हजार से ज्यादा रन हैं लेकिन वल्र्ड टेस्ट चैंपियनशिप में वो अपने रंग में नहीं हैं। बल्कि अपने करियर रिकॉड्र्स के आस-पास भी नहीं हैं। वल्र्ड टेस्ट चैंपियनशिप में चेतेश्वर पुजारा ने भारत के लिए सभी 17 मैच खेले हैं। इन 17 मैचों में उन्होंने सिर्फ 818 रन बनाए हैं। उनकी औसत 29.21 की है। इन 17 टेस्ट मैच में उन्होंने एक भी शतक नहीं लगाया है। चौंकाने वाली बात ये है कि पुजारा ने 9 बार अर्धशतक लगाया है लेकिन वो उसे शतक में तब्दील नहीं कर पाए हैं।