प्रयागराज। उत्तर प्रदेश में सपा शासनकाल में स्वास्थ्य मंत्री रहे अहमद हसन का वर्ष 2016 में यह बयान खूब चर्चित हुआ था कि ‘शिक्षक का बेटा पानी नहीं पिलाएगा।’ इसी उद्देश्य से शिक्षकों के मृतकाश्रितों को क्लर्क बनाने के लिए बेसिक शिक्षा परिषद ने प्रस्ताव भेजा लेकिन, अमल नहीं हुआ और वर्ष 2018 तक प्रदेश के बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में 13,193 मृतक आश्रित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हो गए। इनमें ऐसे आश्रितों की संख्या सबसे अधिक है, जो इंटर, स्नातक और भी अधिक योग्यता रखते हैं।
योगी सरकार में योग्यता के अनुसार शिक्षकों के आश्रितों को नियुक्ति देने की प्रक्रिया 20 महीने से चल रही है। अब जल्द ही शासनादेश भी जारी होने की उम्मीद है। इसका लाभ पहले से कार्यरत चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के साथ ही कोरोना संक्रमण में मृत शिक्षकों के आश्रितों को भी मिल सकेगा। यानी मृत शिक्षकों के आश्रितों में योग्यता रखने वालों को शिक्षक, स्नातक व इंटरमीडिएट उत्तीर्ण को लिपिक बनाया जा सकता है।
बेसिक शिक्षा परिषद में वर्ष 1997 के पहले किसी भी शिक्षक या शिक्षणेतर कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके आश्रित को इंटर की योग्यता पर अध्यापक पद पर नियुक्ति मिलती थी। उससे कम पढ़े लोग अनुचर पद पर नियुक्त होते थे, वर्ष 1997 के बाद अध्यापक पद पर नियुक्ति के लिए आश्रित का स्नातक होना जरूरी था। 26 जुलाई, 2011 को प्रदेश में शिक्षा अधिकार अधिनियम लागू हुआ और मृतक आश्रितों के लिए शिक्षक बनने की योग्यता स्नातक के साथ बीटीसी और टीईटी कर दी गई।