मथुरा। ब्रज का राग-रंग निराला है। उसमें भी कृष्ण की यह नगरी, यहां तो सब कुछ तीनों लोकों से न्यारा है। ठाकुरजी से श्रद्धालुओं का प्रेम अनौखा है तो ठाकुरजी को रिझाने के अंदाज भी निराले हैं। यहां ठाकुरजी को प्रसन्न किया जाता है अपने मन के भावों से। भक्तों के मन में भाव आया तो ठाकुरजी रबड़ी खाएंगे, मन में भाव आया तो ठाकुरजी महकते हुए फूलों के बंगले में विराजेंगे, मन में भाव आया तो ठाकुरजी छप्पन भोग खाएंगे। ये भावों की भक्ति है, जहां हर वक्त भक्त अपने ठाकुर से भावभरा नाता जोड़े रखता है।
अषाढ़ का माह चल रहा है। श्री राधावैली में ठाकुर गोविंद देव जी श्रीजी के साथ विराजे हैं। एकादशी का दिन था और भक्तों में भाव उमड़ने लगे। तय हुआ कि आम का मनोरथ पूर्ण किया जाय। मंदिर के सेवायत पंडित गोपाल वल्लभाचार्य, पं.शरद शर्मा ने भक्तों की इच्छा पूरी करने का बीड़ा उठा लिया। कालोनी वासी सहयोग में जुट गए। मंडी से छंट-छट कर आमों से भरी सुगंध भरी डलियां मंदिर में पहुंचने लगीं। झालरों और रंग बिरंगी लाइटों की लड़ियां लगाई जाने लगीं। शाम होते-होते लगभग सभी तैयारियां पूर्ण हो गईं।
यांत्रिक उपकरणों पर मधुर भजन उच्च स्वरों में गूंजने लगे। उमसभरी गर्मी में राधावैली के रहने वालों के लिए ये वाकई सुकून देने वाले पल थे क्योंकि शाम होते ही मंद-मंद शीतल पवन मंदिर के प्रांगण से होकर बहने लगी थी। सब एकत्र हो गए तो बांकेबिहारीजी की एक स्वर में आरती उतारी गई। प्रसाद वितरण हुआ और आम मनोरथ पूर्ण हुआ। ठाकुरजी के दर्शन कर श्रद्धालु निहाल हुए।
इस अनूठे आयोजन में कालोनीवासियों सहित पंडित योगेश शर्मा, अशोक आढतिया, अनूप कपड़े वाले, विनोद कपड़ा वाले, संजय खंडेलवाल आदि ने विशेष सहयोग प्रदान किया।