नई दिल्ली। बंगाल के बल्लेबाज अभिमन्यु ईश्वरन को इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज के लिए स्टैंड बाय ओपनर के तौर पर टीम में शामिल किया गया है। लेकिन उन्हें लेकर टीम मैनेजमेंट और सेलेक्शन कमेटी के बीच तनातनी की स्थिति है। दरअसल, कप्तान विराट कोहली चोटिल शुभमन गिल की जगह पृथ्वी शॉ और देवदत्त पडिक्कल को इंग्लैंड बुलाना चाहते हैं। लेकिन सेलेक्टर्स और बीसीसीआई नए ओपनर को इंग्लैंड भेजने के मूड में नहीं है।
उनका मानना है कि भारत के पास इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज के लिए चार ओपनर पहले से ही हैं। साथ ही ईश्वरन भी ओपनिंग के लिए बेहतर विकल्प हो सकते हैं। इस विवाद के केंद्र में अभिमन्यु हैं और उनके नाम को लेकर काफी चर्चा हो रही है। आइए जानते हैं कि कैसे उन्होंने बंगाल से टीम इंडिया तक का सफर तय किया।
बंगाल के कप्तान अभिमन्यु ईश्वरन पिछले कुछ सालों से घरेलू क्रिकेट में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। पहली बार 2018-19 सीजन में ईश्वरन का नाम चर्चा में आया था। तब उन्होंने रणजी ट्रॉफी के 6 मैच में 95.66 की औसत से 861 रन बनाए थे। इसमें पंजाब के खिलाफ एक दोहरा शतक और दो पारियां 180 रन से ज्यादा की थी। अगले सीज़न की शुरुआत तक, उन्होंने दिलीप ट्रॉफी फाइनल में शतक बनाया, और बेंगलोर में भारत का दौरा करने आई श्रीलंकाई टीम के खिलाफ एक दोहरा शतक ठोका था।
अभिमन्यु की कप्तानी में बंगाल ने रणजी ट्रॉफी फाइनल खेला
घरेलू क्रिकेट में दमदार प्रदर्शन की वजह से ईश्वरन को 23 साल की उम्र में ही बंगाल की क्रिकेट टीम की कप्तानी सौंप दी गई थी। 2019-20 के रणजी ट्रॉफी में अभिमन्यु बल्ले से तो कुछ खास नहीं कर पाए. उन्होंने 10 मैच में 258 रन बनाए। लेकिन बतौर कप्तान वो हिट रहे और उनकी अगुवाई में बंगाल लंबे अर्से बाद रणजी ट्रॉफी का फाइनल खेला। हालांकि, टीम को सौराष्ट्र के हाथों हार झेलनी पड़ी।
अभिमन्यु के नाम के पीछे की है दिलचस्प कहानी
अभिमन्यु ने खुद हाल ही में हमारी सहयोगी वेबसाइट क्रिकेट नेक्स्ट को दिए इंटरव्यू में इस एकेडमी और इसके नाम के पीछे की कहानी बताई थी। तब उन्होंने बताया था कि मेरी मां पंजाबी और पिता तमिल हैं। जब मैं पैदा हुआ था तो मेरा नाम तय करने को लेकर माता-पिता कन्फ्यूज थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या नाम रखें। काफी सोचने के बाद उन्होंने मेरा नाम अभिमन्यु रख दिया। क्योंकि यह एक ऐसा नाम था जो दोनों तरफ काम कर जाता। तो सिर्फ मेरे कारण ही एकेडमी का ये नाम नहीं पड़ा। तब किसी ने भी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ होगा और पिताजी इतनी बड़ी एकेडमी और स्टेडियम बना देंगे। बस ये हो गया।