नई दिल्ली। स्थितियों को लेकर कोई शक न हो तो प्रत्यक्षदर्शी यानि चश्मदीद गवाह का बयान किसी भी घटना का सबसे अच्छा सुबूत होता है। लेकिन चश्मदीद का बयान अन्य सुबूतों के मिलान न करता हो तो उसकी स्थिति बदल जाती है। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने हत्या मामले में चार दोषियों की उम्रकैद की सजा को बहाल करते हुए कही है।
सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में हाईकोर्ट का आदेश पलटा
सर्वोच्च अदालत के जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा, यह इकलौता मामला है जिसमें मेडिकल सुबूतों और प्रत्यक्षदर्शी के बयान में फर्क है। ऐसे में प्रत्यक्षदर्शी के बयान को अविश्वसनीय माना जा सकता है। सामान्य स्थितियों में प्रत्यक्षदर्शी का बयान सबसे बड़ा सुबूत होता है लेकिन जब स्थितियां संदेहास्पद हों और बयान विरोधाभासी हो तो वह सबसे बड़ा सुबूत नहीं माना जा सकता। इस मामले में भी प्रत्यक्षदर्शी के बयान की सत्यता को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट ने चारों आरोपियों को हत्या, साजिश रचने और अन्य आरोपों से बरी कर दिया था
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह बात गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला सुनाते हुए कही। गुजरात हाईकोर्ट ने प्रत्यक्षदर्शी गवाह के बयान पर भरोसा करते हुए चारों आरोपितों को हत्या, साजिश रचने और अन्य आरोपों से बरी कर दिया था। हत्या अक्टूबर 2003 में हुई थी जब शिकार हुआ व्यक्ति मोटरसाइकिल पर सवार होकर जा रहा था।