नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने एक व्यक्ति से मंगलवार को कहा कि वह अपनी पत्नी का तलाक दे सकता है, लेकिन अपने बच्चों को नहीं। अदालत ने इसके साथ ही उसे मामले के समाधान के लिए छह सप्ताह में चार कराड़ रुपए जमा करन के आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का भी इस्तेमाल किया और 1019 से अलग रह रहे पति-पत्नी को पारस्परिक सहमति से तलाश की अनुमति प्रदान कर दी।
न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा कि दोनों पक्षों को अपने बीच समाधान के लिए तय हुई शर्तों का समझौत के अनुरुप पालन करना होगा। सुनवाई के दौरान पति की ओर से पेश हुई वकील ने कहा कि मध्यस्थता कार्यवाही के तहत दोनों पक्षों के बीच समाधान सहमति बन गई है। लेकिन अलग हुई पत्नी को चार करोड़ रुपए देने के लिए उनके मुवक्किल को कुछ और समय चाहिए क्यों कि महामारी के चलते उसका कारोबार बहुत ही प्रभावित हुआ है। पीठ ने कहा कि आपने समाधान समझौते में खुद सहमति जताई है कि जिस दिन तलाश का आदेश मिलेगा, उसी दिन आप महिला को चार करोड़ रुपए दे देेंगे। अब वित्तीय बाधा की दलील ठीक नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि आप पत्नी को तलाक दे सकते हो लेकिन बच्चों को नहीं। आपको उनकी देखरेख करनी होगी। आपको छोटे बच्चों की देखभाल के लिए राशि देनी होगी। न्यायालय ने व्यक्ति को निर्देश दिया कि वह एक करोड़ रुपए एक सितंबर 2021 तक और शेष तीन करोड़ रुपए तीस सितंबर 2021 तक प्रदान करें। अदालत ने दोनों पक्षों द्वारा एक दूसरे के खिलाफ दर्ज कराए गए मामलों को भी खारिज कर दिया।