लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नज़दीक आते ही तेज़ी से सक्रियता बढ़ा रही कांग्रेस राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के साथ गठबंधन कर सकती है। ख़बरों के मुताबिक़, पार्टी इस विषय में रालोद के साथ बातचीत कर रही है। पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने हरियाणा से राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा को रालोद प्रमुख जयंत चौधरी से बात करने की जिम्मेदारी दी है।
दीपेंद्र और जयंत, दोनों ही जाट बिरादरी से आते हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट बिरादरी ताक़तवर और कई सीटों पर निर्णायक भी है। ऐसे में प्रियंका ने सोच-समझकर दीपेंद्र को यह जिम्मेदारी सौंपी है।
रालोद का आधार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही है। चौधरी चरण सिंह यहीं से निकलकर देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे और उनके बाद उनके बेटे चौधरी अजित सिंह और अब पोते जयंत चौधरी उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
2013 के सांप्रदायिक दंगे
रालोद के लिए साल 2013 तक सब कुछ ठीक था। वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक बड़ी ताक़त थी। लेकिन 2013 के सांप्रदायिक दंगों के बाद हिंदू मतों का जबरदस्त ध्रुवीकरण हुआ और जाट और मुसलमान- जो रालोद की ताक़त थे, वे उससे दूर चले गए। इसके बाद हुए चुनावों के नतीजे इस क़दर ख़राब रहे कि चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी को भी लोकसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। लेकिन किसान आंदोलन और लखीमपुर खीरी की घटना के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सियासी माहौल पूरी तरह बदल गया है।
बीजेपी नेताओं का विरोध
किसान कई बार बीजेपी नेताओं का विरोध कर चुके हैं और मुज़फ्फरनगर में महापंचायत भी हो चुकी है। इसमें किसानों ने एलान किया है कि वे उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए काम करेंगे।
किसान महापंचायत पिछले साल इस इलाक़े में किसानों के अलावा राजनीतिक दलों ने भी किसान महापंचायतें की थीं। इसमें रालोद की महापंचायतों में अच्छी-खासी भीड़ उमड़ी थी। निश्चित रूप से इन किसान महांपचायतों और किसान आंदोलन की वजह से रालोद एक बार फिर मजबूत होती दिख रही है। दूसरी ओर, हाथरस से लेकर लखीमपुर खीरी के मसले को कांग्रेस और प्रियंका गांधी ने जिस मजबूती के साथ उठाया है, उससे बीते दिनों में कांग्रेस का ग्राफ़ तेज़ी से ऊपर बढ़ा है।
प्रियंका ने 40 फ़ीसद टिकट महिलाओं को देने और कांग्रेस की सरकार बनने पर लड़कियों को स्मार्ट फोन और स्कूटी देने का वादा कर सियासत में हलचल मचा दी है। कांग्रेस आने वाले दिनों में कुछ और बड़े वादे कर सकती है।
दांव पर है राजनीतिक भविष्य
निश्चित रूप से कांग्रेस और रालोद, दोनों ही अपना सियासी वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं और दोनों के राजनीतिक भविष्य के लिए उत्तर प्रदेश का यह चुनाव बेहद अहम है। रालोद का पहले से ही समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन है।