सुहागिनों का सबसे बड़ा पर्व करवा चौथ रविवार, 24 अक्टूबर 2021 को मनाया जाएगा। इस दिन शादीशुदा महिलाएं पूरे दिन बिना कुछ खाए और पीए निर्जला व्रत रखती हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, करवा चौथ का व्रत रखने से सुहागिन महिलाओं के पति की आयु लंबी होती है। अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद पाने के लिए करवा चौथ के दिन महिलाएं पूरे विधि-विधान से करवा माता और भगवान शिव देवी पार्वती के साथ गणेश जी की की पूजा करती हैं। सभी उपवास रखने वाली महिलाएं रात में चांद को अघ्र्य देकर अपने पति के हाथ से पानी पीकर ही अपना व्रत खोलती हैं।
करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त
करवा चौथ की तिथि- 24 अक्टूबर 2021 रविवार सुबह 3 बजकर 1 मिनट पर शुरू होगी
करवा चौथ समापन- 25 अक्टूबर को सुबह 5 बजकर 43 मिनट पर समाप्त होगी
करवा चौथ का शुभ मुहूर्त-24 अक्टूबर 2021 को शाम 06:55 से लेकर 08:51 तक
चांद दिखने का समय- रात 8 बजकर 11 मिनट
करवा चौथ पूजा विधि-
करवा चौथ के दिन सुबह सुबह स्नान कर के साफ सुथरे वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद भोर में सरगी खाएं, जिसमें मिठाई, फल, पूड़ी खीर, सेंवई शामिल होता है। सरगी में प्याज लहसन न खाएं। इसके बाद पूरा दिन निर्जला व्रत रखें। फिर शाम में दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा बनाएं। अब आठ पूरियों की अठारवीं बनाएं।
मां गौरी को लकड़ी के सिंहासन पर स्थापिक कर के लाल रंग की चुनरी पहनाएं और सुहाग के श्रृंगार की चीजें अर्पित करें। फिर उनके सामने जल से भरा कलश रखें। अब पूरे विधि विधान के साथ करवा माता, कार्तिक जी,गणेश जी और माता पार्वती, भगवान शिव की पूजा करें। उन्हें रोली, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य आदि चीजें अर्पित करें। व्रत के समापन से पहले करवा चौथ व्रत की कथा जरूर पढ़ें। अब चंद्रमा को अघ्र्य देकर अपने पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत खोलें।
करवा चौथ की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक ब्राह्मण के सात पुत्र और इकलौती पुत्री वीरावती थी। सात भाईयों की अकेली बहन होने के कारण वीरावती बहुत ही लाडली थी। सभी भाई उससे अपार प्रेम करते थे और बहन की आंखों में एक आंसू नहीं देख पाते थे। कुछ सालों बाद वीरावती का का विवाह एक ब्राह्मण युवक से हो गया। विवाह के बाद जब वीरावती मायके आई तो उसने अपनी सातों भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा लेकिन शाम होते-होते वो भूख और प्यास से व्याकुल हो उठीं। अपनी बहन की ऐसी हालात देखकर सभी भाई उससे खाना खाने के लिए मनाने लगे। इसके बाद वीरावती ने कहा वो खाना या पानी नहीं पी सकती है क्योंकि उसका करवा चौथ का व्रत है। वो चंद्रमा को अघ्र्य देने के बाद ही अन्न और पानी को हाथ लगा सकती है।
चंद्रमा के जल्दी नहीं दिखने पर भाईयों ने एक तरकीब खोजा और एक भाई पीपल के पेड़ पर चढ़कर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा लगा की चांद निकल आया है। फिर एक भाई ने आकर वीरावती को कहा कि चांद निकल आया है, तुम उसे अघ्र्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी-खुशी जाकर चांद को देखा और उसे अघ्र्य देकर खाना खाने बैठ गई। उसने जैसे ही पहला टुकड़ा मुंह में डाला है तो उसे छींक आ गई। दूसरा टुकड़ा डाला तो उसमें बाल निकल आया। इसके बाद उसने जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश की तो उसके पति की मृत्यु की खबर आ गई।
इसके बाद वीरावती की भाभी ने सारा माजरा बताया कि उसके साथ ये सब क्यों हुआ है। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। फिर एक बार इंद्र देव की पत्नी इंद्राणी करवा चौथ के दिन धरती पर आईं और वीरावती उनके पास गई और अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना की। तब देवी इंद्राणी ने वीरावती को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करवा चौथ का व्रत करने के लिए कहा। इंद्राणी की बात सुनकर वीरावती ने वैसा ही किया और फिर पूरी श्रद्धा के साथ करवा चौथ का व्रत रखा। उसकी पूजा और भक्ति देख कर भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंनें वीरावती को अखंड सौभाग्यवती भव: का आशीर्वाद देते हुए उसके पति को जीवित कर दिया।