Monday, November 25, 2024
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आज कोयला घाट पर भारतीय सांस्कृतिक समाज के द्वारा छठ पूजा का आयोजन बड़े धूम धाम से किया जा रहा है

महापर्व छठ

लोक आस्था के महा-पर्व छठ के चार दिवसीय अनुष्ठान की तैयारी की जाती है। यह पर्व सभी के लिए एक भाव और विश्वास रखता है जिस तरह सूरज की रोशनी किसी के साथ कोई भेद-भाव नहीं करती।

पहले दिन नहाय-खाय,दूसरे दिन खरना खीर का प्रसाद, तीसरे दिन पहला अर्घ्य डूबते सूर्य को नमन ,चौथे और आखिरी दिन उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ यह महापर्व संपन्न होता है।इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता इसकी पूजा विधि में इस्तेमाल होने वालीसामग्रीहै। दूध, चावल,गेहूं सूप,फल-फूल दीया-बत्ती, नारियल,इत्यादि मानव श्रम के परिणाम के विविध रुप हैं जो इस सूर्य की उपासना में संकलित हैं। ऐसी मान्यता है कि दूसरे अनुष्ठानों की तरह इसमें किसी ब्राह्मण अथवा पंडित की आवश्यकता नहीं होती,सबकुछ व्रती व्रत रखने वाले ही करते हैं। इसमें मंत्र उच्चारण की जगह छठी मईया एवं सूरज देव को समर्पित विशेष रुप से गाए जाने वाले गीत शामिल हैं।उग हे सूरज देव भइले अरघ के बेरिया…,दर्शन देहु ना हे छठी मइया…जैसे पारंपरिक लोक गीतों को सामुहिक रुप से गाया जाता है।

इस व्रत को रखने वाले बिना अन्न-जल ग्रहण किए सारा अनुष्ठान करते हैं इस पूजा के लिए लोग निस्वार्थ भाव से व्यवस्था करते हैं तथा असमर्थ लोगों को पूजा सामग्री दान करतें हैं।


भारतीय सांस्कृतिक समाज के मीडिया प्रभारी शशी भूषण दुबे ने बताया की
इस पर्व में घर के सभी सदस्य जो नौकरी और व्यवसाय को लेकर विभिन्न जगहों पर बिखरे होते हैं विशेष रुप से घर आते हैं और परिवार की कड़ी मजबूत होती है।परिजनों के साथ इस पर्व में शामिल होने की खुशी उन्हें खींच लाती है।

सूर्य की आराधना का यह पर्व वास्तव में जीवन और जगत के अस्तित्व को समर्पित है।यह पर्व प्रकृति के उस रुप को भी समर्पित है जो संघर्ष और समन्वय को चित्रित करता है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य इस धरती को प्रकाशमान् करने के लिए सतत् संघर्षशील है।
सुमन दुबे और अनिता पाठक ने बताया कि छठी माता का ब्रत करने से संतान प्राप्ति के लिये और अपने सुहाग की रक्छा ,घर मे सुख शान्ति के लिऐ होती है पूजा।
सुमन दुबे ने बताया कि आप की किसी प्रकार की मनोती है छठी माता की पूजा करने से वह जरूर पूरा करती है और आपकी झोली खुशियो से भर देगी
आज सुबह से माता के लिऐ ठेकुआ,पूड़ी,बनाया गया और सभी प्रकार का सिजनी फल ,गन्ना से छठी माता को चढ़ाया जाता है
उग हे सूरज देव भइले अरघ के बेरिया…,दर्शन देहु ना हे छठी मइया…जैसे पारंपरिक लोक गीतों को सामुहिक रुप से गाया जाता है
भारतीय सांस्कृतिक समाज के मीडिया प्रभारी शशी भूषण दुबे ने बताया की दीपावली के बाद से ही छठ पूजा को लेकर सभी उत्साहित हो जाते है
पूजा में किसी भी कोई गलती न हो जाये इस लिये बिशेष रूप से धयान रखा जाता है
कार्यकर्म को सफल बनाने में भारतीय सांस्कृतिक समाज के मीडिया प्रभारी शशी भूषण दुबे, महेश शर्मा नंद किशोर, ,एस एन दुबे,प्रेम ,नन्द किशोर शाह, नितेश राहुल योगेश राय, रमन जी,जितेंद् नाथ झा ,हरेराम राय, दिनेश लाल क्रड,भारत महतो, कामेश्वर पाठक, रविन्द्र सिंह, पीयूष आदि का विशेष सहयोग रहा

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