जी.एल. बजाज में हुई स्वास्थ्य संगोष्ठी
मथुरा। कोई भी बीमारी हो हमें उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि आज जो छोटी समस्या है वह कल विकराल रूप धारण कर सकती है। थायरॉयड को ही लें हमारा समाज इस समस्या को गम्भीरता से नहीं लेता जबकि तितली के आकार की थायरॉयड ग्रंथि शरीर की अधिकांश मेटाबॉलिक प्रोसेस को नियंत्रित करती है। थर्मोरेग्यूलेशन, हार्मोनल फंक्शन और वजन नियंत्रण इस ग्रंथि के कुछ महत्वपूर्ण कार्य हैं। उक्त बातें जानी-मानी मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. मंजू पांडेय ने जी.एल. बजाज ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस, मथुरा के महिला प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित स्वास्थ्य संगोष्ठी में प्राध्यापकों और छात्र-छात्राओं को बताईं।
डॉ. पांडेय ने बताया कि ज्यादा या कम मात्रा में हार्मोन बनने पर थायरॉइड की समस्या पैदा होती है। वैश्विक स्तर पर पुरुषों से ज्यादा महिलाएं इस बीमारी से जूझती हैं। उन्होंने बताया कि थायरॉइड फंक्शनिंग को अच्छा बनाए रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि नियमित रूप से व्यायाम किया जाए। इस समस्या के निजात में दवाएं और प्राकृतिक उपचार तो ठीक हैं, लेकिन इसे उचित व्यायाम के साथ भी जोड़ा जाना चाहिए। नियमित व्यायाम हार्मोनल संतुलन के साथ ही वजन नियंत्रण में भी काफी कारगर है। नियमित व्यायाम थायरॉइड की समस्या से निपटने में काफी मददगार है।

स्वास्थ्य संगोष्ठी में प्राध्यापकों और छात्र-छात्राओं को थायरॉयड की जानकारी देतीं डॉ. मंजू पांडेय।
संगोष्ठी में डॉ. पांडेय ने ओवरएक्टिव थायरॉइड के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ओवरएक्टिव थॉयराइड एक ऐसी बीमारी है जिसमें थायरॉइड ग्रंथियां बहुत अधिक थॉयराइड हार्मोन का निर्माण करने लगती हैं। इस रोग को हाइपरथॉयराइडिज्म भी कहा जाता है। थॉयराइड गर्दन के सामने पाया जाता है। यह हार्मोन का निर्माण करता है जो हृदय गति और शरीर के तापमान जैसी चीजों को प्रभावित करता है। जब ये हार्मोन अधिक मात्रा में बनने लगते हैं, तो इनके कारण कई गंभीर समस्याएं पैदा होने लगती हैं। जिन्हें समय पर इलाज कराने की जरूरत पड़ती है।
ओवरएक्टिव थायरॉयड किसी को भी प्रभावित कर सकता है लेकिन यह पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए अधिक घातक है। यह आमतौर पर 20 से 40 वर्ष की उम्र के बीच शुरू होता है। डॉ. पांडेय ने कहा कि थायरॉइड समस्या से ग्रसित व्यक्ति को आयोडीन या अन्य खनिजों के अतिरिक्त सेवन की आवश्यकता नहीं है बल्कि उसे उचित आहार बनाए रखने की आवश्यकता होती है। डॉ. पांडेय ने प्राध्यापकों और छात्र-छात्राओं द्वारा पूछे गए प्रश्नों का भी समाधान किया। संगोष्ठी के अंत में संस्थान की निदेशक प्रो. (डॉ.) नीता अवस्थी ने डॉ. पांडेय को स्मृति चिह्न भेंटकर बेशकीमती समय देने के लिए उनका आभार माना। संगोष्ठी का संचालन मेधा खेनवार ने किया।