बहुत से भक्तों की जिज्ञासा है कि यह डल क्या होते हैं। मां भगवती जागरण को करने से पूर्व माता के निमंत्रण को डल के रूप में बांधा जाता है जिसमें सवा मीटर लाल कपड़े में चावलों को हल्दी केसर से रंग कर और माता जी की अरदास के साथ बांधकर महंत जनों को दिया जाता है यह दल 9 दिन 5 दिन 7 दिन इत्यादि के हो सकते हैं।

पोटली में चावलों को बांधने के बाद माताजी के नाम की कुछ दक्षिणा एवं नारियल भेंट के रूप में निकाल कर अपने मंदिर में रखा जाता है, कन्या के द्वारा ग्रहण किया जाता है। उपरांत कन्या के द्वारा ही उसे महंत जन लेते हैं। जिसमें नवरात्रों की तरह नियम पालन किया जाता है। यह डल जागरण की नीव होते हैं। बिना डल लिए जागरण करना एवं कराने का कोई सार्थकता नहीं है। क्योंकि बिना तारा रानी की कथा के जागरण संपूर्ण नहीं होता और बिना डल के तारा रानी की कथा होती नहीं है।

प्रातः काल तारा रानी की कथा होने पर जब तारा रानी रुक्मणी के यहां जागरण करने जाती हैं। उन दलों को मां के चरणों में चढ़ाती है। तब वह डल खोले जाते हैं। मां के चरणों में चढ़ाए जाते हैं तथा उसमें प्राप्त होने वाली दक्षिणा को श्री ज्वालामुखी जी दरबार में हवन एवं भंडारे इत्यादि प्रयोग में लाना चाहिए। श्री ज्वालामुखी देवी जी माता रानी जी का मुख् है एवं जागरण में बंधने वाले डल माता ज्वालामुखी जी के नाम से ही बांधे जाते हैं। इसलिए उन दक्षिणा का प्रयोग किसी ना किसी रूप में ज्वाला जी दरबार में जरूर करना चाहिए। यही उस दक्षिणा की सार्थकता है। किसी कारण से यदि वह दल जिस तिथि के लिए बांधे जाते हैं, उस स्थिति में उस ज्योत पर नहीं चढ़ाई जा सके हो। इसलिए यह कड़ा नियम है। फिर संपूर्ण ढल ज्वाला जी दरबार लाकर हवन में चढ़ाए जाते हैं एवं दक्षिण का प्रयोग दरबार में किया जाता है। तब जाकर उन दलों की सार्थकता उस यजमान तक पहुंचती है।