- संस्कृति विवि में मनाई गई महर्षि चरक जयंती
मथुरा। संस्कृति आयुर्वेदिक कालेज एवं अस्पताल के शिक्षकों और विद्यार्थियों द्वारा बड़े सम्मान और उत्साह के साथ जयंती मनाई गई। इस मौके पर संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलपति डा. तन्मय गोस्वामी ने महर्षि चरक के योगदान और आयुर्वेद में चरक सहिंता की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महर्षि चरक का रचा हुआ ग्रंथ चरक संहिता आज भी वैद्यक का अद्वितीय ग्रंथ है। आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है।
संस्कृति आयुर्वेदिक कालेज के सभाकक्ष में आयोजित कार्यक्रम में कुलपति डा. तन्मय ने कहा कि चरक एक महर्षि एवं आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात हैं। वे कुषाण राज्य के राजवैद्य थे। इनके द्वारा रचित चरक संहिता एक प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ है। इसमें रोगनाशक एवं रोगनिरोधक दवाओं का उल्लेख है तथा सोना, चाँदी, लोहा, पारा आदि धातुओं के भस्म एवं उनके उपयोग का वर्णन मिलता है। आचार्य चरक ने आचार्य अग्निवेश के अग्निवेशतन्त्र में कुछ स्थान तथा अध्याय जोड्कर उसे नया रूप दिया जिसे आज चरक संहिता के नाम से जाना जाता है । चरक की शिक्षा तक्षशिला में हुई । इन्हें ईसा की प्रथम शताब्दी का बताते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि चरक कनिष्क के राजवैद्य थे परंतु कुछ लोग इन्हें बौद्ध काल से भी पहले का मानते हैं। आठवीं शताब्दी में इस ग्रंथ का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ और यह शास्त्र पश्चिमी देशों तक पहुंचा।
संस्कृति आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज एवं अस्पताल के प्राचार्य डा. सुजित कुमार दलाई ने कहा कि चरक संहिता में व्याधियों के उपचार तो बताए ही गए हैं, प्रसंगवश स्थान-स्थान पर दर्शन और अर्थशास्त्र के विषयों की भी उल्लेख है। उन्होंने आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थों और उसके ज्ञान को इकट्ठा करके उसका संकलन किया । चरक ने भ्रमण करके चिकित्सकों के साथ बैठकें की, विचार एकत्र किए और सिद्धांतों को प्रतिपादित किया और उसे पढ़ाई लिखाई के योग्य बनाया ।
महर्षि चरक की जयंती पर आयोजित इस कार्यक्रम का शुभारंभ उनकी प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन एवं माला पहनाकर हुआ। मंच पर आसीन अतिथियों का स्वागत असिस्टेंट प्रोफेसर डा. मीना ने किया। धन्यवाद ज्ञापन असिस्टेंट प्रोफेसर सुधिष्ठा ने किया।