- गांधी सदन की छात्राओं ने पेश किया नयनाभिराम लावणी नृत्य
मथुरा। बुधवार को राजीव इंटरनेशनल स्कूल परिसर भक्तिभाव से सराबोर रहा। गांधी सदन के नन्हें-मुन्ने छात्र-छात्राओं ने विघ्नहर्ता भगवान श्रीगणेश की जहां पूजा-अर्चना की वहीं छात्राओं ने नयनाभिराम लावणी नृत्य पेश कर हर किसी का मन मोह लिया। इस अवसर पर बच्चों ने भगवान श्रीगणेश के महात्म्य का सारगर्भित बखान भी किया।
श्रीगणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर सुबह से ही राजीव इंटरनेशनल स्कूल परिसर में विशेष चहल-पहल रही। गणेशोत्सव समारोह का शुभारम्भ गांधी सदन के नन्हें-मुन्ने छात्र-छात्राओं कर्षित अग्रवाल, अग्निका और अंगिका की पूजा-अर्चना के साथ हुआ। इस अवसर पर स्नेहा अग्रवाल ने कहा कि भगवान श्रीगणेश 33 कोटि देवताओं में से एक हैं इसीलिए भारतीय धर्म-संस्कृति में प्रत्येक शुभ कार्य को आरम्भ करने से पहले श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना की जाती है। ऋग्वेद और यजुर्वेद में गणेशजी को गणपति शब्द से सम्बोधित किया गया है। इतना ही नहीं हिन्दू धर्म में आदि देव भगवान शिवजी के परिवार में भी गणेशजी का अति महत्वपूर्ण स्थान है।

नयति गुप्ता और पार्थ अग्रवाल ने एंकरिंग के माध्यम से भगवान श्रीगणेश की महत्ता पर प्रकाश डाला। इसके बाद गांधी सदन की छात्राओं ने शिक्षिका एकता सिंह के कुशल मार्गदर्शन में लावणी नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति से गणेशोत्सव की गरिमा को चार चांद लगाए। शिक्षका एकता सिंह ने बताया कि लावणी महाराष्ट्र का लोक नृत्य है। इसे परम्परागत गीत और नृत्य का मिश्रण माना जाता है। जब कोई डांस हो रहा हो और पैर लय में स्वतः थिरकने लगें तो समझिए वह डांस लावणी ही है।
एकता ने बताया कि लावणी नृत्य के लिए जरूरी नहीं कि आप नृत्य कला के जानकार हों। लावणी नृत्य की विषय-वस्तु यानी थीम कहीं से भी ली जा सकती है। उन्होंने बताया कि ज्यादातर लोग सोचते हैं कि लावणी बस एक लोक नृत्य है जबकि ऐसा नहीं है। लावणी नृत्य दो प्रकार का होता है निर्गुणी लावणी और श्रृंगारी लावणी। निर्गुणी लावणी में जहां भक्ति यानी अध्यात्म का प्रदर्शन होता है वहीं श्रृंगारी लावणी श्रृंगार रस यानी सौंदर्य तथा प्रेम से सराबोर होता है, जिसे समूचे देश में खूब पसंद किया जाता है।

आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल तथा प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने सभी शिक्षकों तथा छात्र-छात्राओं को श्रीगणेश चतुर्थी की बधाई दी। डॉ. अग्रवाल ने कहा कि शिक्षा के साथ ही छात्र-छात्राओं को अपने धर्म, रीति-रिवाजों तथा भारतीय संस्कृति की जानकारी होना बहुत जरूरी है।