- जी.एल. बजाज के छात्र-छात्राओं को दिखाई कामयाबी की राह
- दो लाख मुंबईकर की भूख का समाधान पांच हजार डब्बावालों के हाथ
मथुरा। आंधी आए या तूफान या हो घनघोर बारिश हम लगभग दो लाख मुंबईकर को भूखा नहीं छोड़ सकते। हर कस्टमर को समय पर खाना पहुंचाना ही हमारा मकसद और कर्तव्य होता है। जिस शिद्दत और समर्पण के साथ लगभग पांच हजार मुम्बई डब्बावाला अपने काम को अंजाम देते हैं कुछ इसी तरह छात्र-छात्राओं को अध्ययनकाल में न केवल अपने लक्ष्य तय करने चाहिए बल्कि उन्हें हासिल भी करना चाहिए। यह संदेश बुधवार को जीएल बजाज ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस द्वारा आयोजित कार्यशाला में डब्बावाला मुंबई के सचिव अशोक कुम्बारकर तथा प्रवक्ता रितेश अन्द्रे ने छात्र-छात्राओं को दिया।
कार्यशाला का शुभारम्भ मां सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर किया गया। संस्थान की निदेशक प्रो. (डॉ.) नीता अवस्थी ने अतिथि वक्ताओं का स्वागत किया। कार्यशाला में सचिव अशोक कुम्बारकर ने छात्र-छात्राओं को बताया कि मुंबईकर को अपने कार्यस्थल में सुबह 9 बजे पहुंचने के लिए 6 बजे निकलना पड़ता है। यदि उसे टिफिन लेकर जाना है तो उसकी पत्नी को 5 बजे उठकर खाना बनाना पड़ेगा। इतनी सुबह पत्नी परेशान न हो इसके लिए वो बिना टिफिन लिए ही निकल जाते हैं। दूसरी बात, मुंबई की लोकल ट्रेनों में इतनी ओवरक्राउडेड है कि उसमें खाली हाथ चलना भी मुश्किल है ऐसे में टिफिन लेकर जाना तो और भी मुश्किल। बस यही दो परेशानियां हैं जिसका जवाब सिर्फ डब्बावाला के पास है।
डब्बावाला हर दिन अपने कस्टमर के घर से टिफिन लेता है, उसे ऑफिस तक पहुंचाता है, फिर लंच के बाद वापस उसके घर देकर आता है। सुनने में आसान सा लगने वाला यह काम बहुत कठिन है। हर कस्टमर को हर दिन बिना किसी गलती के उसके घर का खाना उस तक पहुंचाना बहुत मुश्किल है। इसे हम बिना किसी टेक्निकल सपोर्ट के रोजाना करते हैं। हर दिन 5 हजार डब्बावालों की मदद से दो लाख डब्बे डिलेवर करते हैं। वह भी समय पर। चाहे आंधी आए, तूफान आए पर भूख तो लगती है, यह बात हर डब्बेवाले के दिमाग में रहती है, इसीलिए वह बिना गलती समय पर रोज यह काम करता है।
प्रवक्ता रितेश अन्द्रे ने बताया कि डब्बावालों के कमिटमेंट का यह आलम है कि आज तक इन्होंने कोई स्ट्राइक नहीं की। 95 फीसदी डब्बेवाले अपने गले में विट्ठल मंदिर की तुलसी-माला पहनते हैं। इसे पहनने वाला किसी भी प्रकार का नशा नहीं कर सकता, न ही नॉनवेज खा सकता है। बाकी बचे पांच फीसदी में यदि कोई वर्किंग ऑवर में नशा करता हुआ मिला तो उसे एक हजार रुपए जुर्माना देना पड़ता है। इसी तरह बिना बताए ड्यूटी पर न आने पर भी इतना ही जुर्माना लगता है। मुंबई में जेबें बहुत कटती हैं। अपनी पगार भी जेब में रख घर ले जाने में डर लगता है। डब्बावालों की ईमानदारी पर मुंबईवासियों को इतना भरोसा है कि कई बार वह चोरी के डर से सैलरी भी डब्बे में रखकर भेज देते हैं। रितेश अन्द्रे ने बताया कि 1890 से डब्बावाला सफेद पोशाक तथा पारम्परिक गांधी टोपी धारण कर लगभग दो लाख लोगों को उनके घर का भोजन पहुंचाते हैं। जरूरतमंद व्यक्ति की भूख मिटाने को अब डब्बावालों द्वारा लंच शेयरिंग कॉन्सेप्ट भी लॉन्च किया गया है।