मथुरा : जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा के कैमिस्ट्री (रसायन) विभाग के प्रोफेसरों और रिसर्चर ने कैंसर से पीड़ित मरीजों के उचित उपचार के लिए एक एल्ब्यूमिन नैनो पार्टिकल बनाया है। इस नैनो कॅरियर से मरीज के कैंसर सेल पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। इसका पेटेंट भी ग्रांट हो चुका है।
यह देखा जाता है कि कैंसर की दवा लेने के बाद मरीजों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसी परेशानी को मद्देनजर रखते हुए जीएलए रसायन विभाग के प्रोफेसर डाॅ. पंचानन प्रमाणिक, एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ. अभिषेक श्रीवास्तव और रिसर्चर डाॅ. अंजलि प्रजापति ने एक नए प्रकार के एल्ब्यूमिन नैनो पार्टिकल का निर्माण किया है। एल्ब्यूमिन नैनो पार्टिकल काॅर्बोक्सिलिक समूह से जोड़कर तैयार किया गया है।
रसायन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अभिषेक श्रीवास्तव ने बताया कि कैंसर जैसी भयावह बीमारी के उपचार में वर्तमान में रेडिएशन थैरेपी व कीमोथेरेपी की सहायता ली जाती है, जिसके भारी दुष्परिणाम मानव शरीर पर देखे जाते हैं। जिन्हें टारगेट ड्रग डिलीवरी तकनीकि के माध्यम से बहुत कम किया जा सकता है और विभिन्न प्रकार के कैंसर का उपचार शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित किए बिना किया जा सकता है। कैंसर के मरीजों के लिए ये तकनीक बहुत फायदेमंद होगी। क्योंकि टारगेटेड ड्रग डिलीवरी सिस्टम में दवा का असर सीधे कैंसर सेल पर ही होगा, दवा के असर से हेल्दी कोशिकाओं को नुकसान नहीं पहुंचेगा।
प्रोफेसर ने यह भी बताया कि मानव शरीर में कैंसर मेडिसिन की टारगेट डिलीवरी हेतु एल्ब्यूमिन बहुत ही आकर्षक वाहक के रूप में कार्य करता हैं। क्योंकि यह बायोकम्पेटेबिल व नॉन टॉक्सिक हैं। संश्लेषित एल्ब्यूमिन नैनोपार्टिकल्स पर कार्बोक्सिलिक समूह जुड़ने के कारण संश्लेषित एल्ब्यूमिन नैनो पार्टिकल की ड्रग लोडिंग क्षमता बढ़ जायेगी और वह कैंसर मेडिसिन के टारगेटिड ड्रग डिलीवरी में उत्तम नैनो कॅरियर के रुप में कार्य करेगा। दरसल टारगेटिड ड्रग डिलीवरी में नैनो कॅरियर का उपयोग करते हैं। यह नैनो कॅरियर कैंसर मेडिसिन के अणुओं को अपने में समाहित कर मेडिसिन के चिकित्सीय सूचकांक को अपने लक्ष्य विशिष्ट क्रिया के माध्यम से बढ़ा देगा।
फंक्शनलाइज़्ड एल्ब्यूमिन नैनो कॅरियर के पेटेंट ग्रांट होने पर विभागाध्यक्ष प्रो. दीपक दास ने बताया कि कैंसर एक भयावह बीमारी है, जिसका नाम सुनते ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं, लेकिन जीएलए का रसायन विभाग काफी लंबे समय से इसी बीमारी के इलाज हेतु नए अनुसंधान करने में जुटा हुआ है। इससे पहले भी मिथाइल ग्लायऑक्जल नामक प्रोडक्ट पर जीएलए की डिस्टींग्यूस्ड प्रोफेसर डाॅ. मंजू रे ने रिसर्च किया। प्रो. दास कहते हैं कि रसायन विज्ञान का ज्ञान कोई भी छात्र अगर ठीक तरीके से हासिल कर ले, तो भारत देश के विकास में नए अनुसंधान जुडेंगे
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डीन रिसर्च डाॅ. कमल शर्मा ने बताया कि आने वाले समय में विश्वविद्यालय अनुसंधान का हब बनकर उभरेगा। 14 से अधिक रिसर्च सेंटर जिनमें सोलर एनर्जी, माइक्रो नेनो डेवलपमेंट, बेंटले लैब ऑफ़ एक्सीलेंस, सस्टेनेबल इनवायरनमेंट एंड एग्रीकल्चर, एडवांस्ड कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग, सेंटर फाॅर कम्प्यूटर विजन एंड इंटेलीजेंट सिस्टम, लैबव्यू एकेडमी, टेक्सास इंस्टूमेंट इनोवेशन, सेंटर फाॅर काउ साइंस, आईपीआर रिसर्च सेंटर के माध्यम से 4400 से अधिक पब्लिकेशन, 400 से अधिक पेटेंट पब्लिश एंड 35 से अधिक पेटेंट ग्रांट कराने में विश्वविद्यालय अग्रणी रहा है।