मथुरा। संस्कृति स्कूल आफ साइकोलाजी द्वारा ‘वर्ल्ड सोसाइड प्रिवेंशन डे’ के अवसर पर विद्यार्थियों के साथ अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए। इन कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं को सकारात्मक और खुशहाल जीवन जीने के लिए प्रेरित किया गया। इस अवसर पर आयोजित ‘क्रिएट थ्रू’ थीम पर हुई संगोष्ठी में वक्ताओं ने आत्महत्या के विचार को कैसे हतोत्साहित किया जाय, इसपर अपने व्याख्यान दिए।
संगोष्ठी की मुख्य वक्ता डा. मोनिका अबरोल ने अपने वक्तव्य में कहा कि आत्महत्या एक बहुत ही गंभीर विषय है। इधर देखने में आया है कि विद्यार्थियों में आत्महत्या के मामले अधिक हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षकों और अभिभावकों का यह दायित्व है कि वे तुरंत सचेत हों और युवाओं को इस तरह से प्रोत्साहित करें कि उनमें सकारात्मकता बढ़े। उन्होंने कहा कि युवाओं को जागरूक करने की आवश्यकता है। शिक्षक, अभिभावक युवाओं से निरंतर संपर्क बनाएं और उनकी समस्याओं के बारे में खुलकर बात करें। बच्चों से जब हम लगातार संवाद करते रहते हैं तो उनके अंदर छिपी असफलता से उत्पन्न निराशा, अकारण दुखी रहने और बेवजह स्वयं को कोसने की आदतों का खुलासा होता है। इसको हम शिक्षक, अभिभावक आसानी से दूर कर सकते हैं और बच्चों को सकारात्मक सोचने की आदत डलवा सकते हैं। उन्होंने बताया कि आत्महत्या का विचार कुछ क्षणों के लिए आता है और ऐसे समय यदि सकारात्मक विचारों का संप्रेषण हो जाय तो नकारात्मकता समाप्त हो जाती है और एक अमूल्य जान बच जाती है।
प्रो. उर्वशी शर्मा और रिचा चौधरी ने अपने वक्तव्य में कहा कि विद्यार्थियों को इस दिशा में जागरूक करने की जरूरत है। उनको यह बताना हमारा कर्तव्य है कि जीवन को सकारत्मक तरीके से कैसे जिया जा सकता है। आज समस्याएं सबके सामने हैं लेकिन यह बताना जरूरी है कि समस्या का समाधान आत्महत्या नहीं बल्कि उस समस्या का सामना कर उसपर विजय प्राप्त करना है। संगोष्ठी में विद्यार्थियों ने भी बड़े सुंदर तरीके से उदाहरण देते हुए समझाया कि आखिर इस दिवस को मनाने की हमें जरूरत क्यों पड़ी। विद्यार्थियों ने इसके दुष्परिणामों के बारे में भी बताया। इस अवसर स्थानीय और विदेशी छात्र-छात्राओं नृत्य, गीतों और पोस्टर के माध्यम से भी अन्य साथियों को जागरूक करने जैसा उल्लेखनीय कार्य किया।
संस्कृति विवि में हुई ‘आत्महत्या पर रोक’ को लेकर गंभीर चर्चा
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