Saturday, November 23, 2024
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एक शख्स जिसने बृजवासी शब्द के मायने ही बदल दिये

विजय कुमार गुप्ता

एक शख्स जिसने बृजवासी शब्द के मायने ही बदल दिये

विजय कुमार गुप्ता

 मथुरा। बृजवासी का मतलब है जो बृज में वास करता हो किंतु एक शख्स ने बृजवासी शब्द का अर्थ ही बदल कर रख दिया। साधारण से दिखाई देने और विलक्षण प्रतिभा वाले इस इंसान का नाम है सतीश चंद्र अग्रवाल। 
 अगर कोई व्यक्ति कहीं बाहर जाए और किसी से कहे कि हम ब्रजवासी हैं तो सामने वाले के मुंह से यह निकलता है कि क्या आप बृजवासी मिठाई वालों के परिवार से हैं? इसी प्रकार किसी के नाम के आगे बृजवासी लगा हो तो लोग अनुमान लगाकर पूंछने लग जाते हैं कि क्या आप बृजवासी मिठाई वाले हैं? ऐसे किस्से मैंने सुन रखे हैं। चाहे कोई राजनीतिक हस्ती हो या फिल्म स्टार मथुरा के पेड़ों का नाम आते ही बृजवासी शब्द सभी की जुबान पर स्वतः ही आ जाता है।
 जिस प्रकार कोई व्यक्ति मथुरा आकर जन्मभूमि, बांके बिहारी तथा द्वारकाधीश आदि प्रमुख मंदिरों के दर्शन करने की अभिलाषा नहीं छोड़ता उसी प्रकार मथुरा के पेड़ों और वह भी बृजवासी के, ले जाने की लालसा भी पूरी किए बगैर नहीं रहता। ऐसा भी नहीं कि केवल बृजवासी की मिठाई बिकती हों और बाकी के सभी हलवाईयों की दुकानों पर मक्खी भिनकती हों। और भी अच्छे-अच्छे मिठाई वाले हैं, किंतु सिक्का बृजवासी का ही चलता है।
 अब मैं बृजवासी मिठाई वालों के साथ-साथ लगेज में अपने को भी जोड़ कर खुद ही अपनी पीठ ठोकने या फिर यौं कहिए कि मुंह मियां मिट्ठू बनने का आनंद भी ले लेता हूं। जैसे बेसन तो मथुरा में जगह-जगह और अच्छे से अच्छा भी मिलता है किंतु सिक्का हमारे बेसन का ही चलता है। इसी प्रकार पानी तो और जगह भी मिल जाएगा किंतु हमारे पिताजी के लगाए नलकूप के पानी की शोहरत बुलंदी पर है जो एक बार पी लेता है फिर इसी पानी का पियक्कड़ बन जाता है।
 अब आगे बढ़ता हूं ब्रजवासी की मिठाई की ओर। कहने को तो बृजवासी मिठाई वालों के नाम से सतीश बाबू ने प्रसिद्धि पाई है किंतु तरह-तरह की नमकीन भी इनके यहां की बेजोड़ हैं। जब इनकी क्वालिटी रंग लाने लगी तो फिर इन्होंने मिठाई के बाद नमकीन ही नहीं बल्कि पचासों तरह की खाने पीने की चीजों को बेचने का पिटारा सा खोल दिया है। इनके यहां गुलकंद से लेकर गुलाबजल और दूध से लेकर गजक रेवड़ी तथा टोस्ट बिस्कुट पेस्ट्री तक न जाने क्या-क्या पचासों तरह का सामान मिलता है।
 कभी-कभी मैं सोचता हूं कि आखिर इन्हें इतनी डिड्डया क्यों सवार हो रही है? मुझे लगता है कि आगे चलकर कहीं खाने-पीने के साथ-साथ पहनने ओढ़ने और खेलने कूदने यानी कपड़े लत्ते जूते मोजे और पतंग डोर यहां तक कि सुई धागा तक भी न बेचने लग जांय। मेरे मन में यह विचार भी आता है कि शायद इन्हें डिड्डया नहीं बल्कि तरह-तरह की खाने पीने की वस्तुओं की श्रेष्ठ क्वालिटी बनाकर बेचने का शौक चर्राता है।
 बहुत से लोगों का तो व्यापार में केवल नामा बनाने का लक्ष्य रहता है और इनका पहला लक्ष्य नाम कमाने का है। जब नाम होता है तो फिर नामा तो स्वत: ही खिंचा चला आता है। अब आता हूं असल मुद्दे पर कि सतीश बाबू मिठाई के राजा कैसे बने? दरअसल बात यह है कि विश्राम घाट पर बृजवासी के नाम से इनकी दूध की पुश्तैनी दुकान थी, जो बाद में मिठाई की भी हो गई उस पर इनके बाबा और बाद में पिताजी स्व० केशव देव जी बैठा करते थे तथा सतीश बाबू भी हाथ बंटाते थे।
 एक बार सतीश बाबू मद्रास गए जहां उनके चाचा द्वारका प्रसाद जी की मिठाई की दुकान थी चूंकि दुकान पर मिठाई बहुत बढ़िया क्वालिटी की बनती थी अतः ग्राहकों की भीड़ लगी रहती। इस बात को देखकर सतीश बाबू के मन में विचार आया कि ग्राहक जो पैसे देता है वह अच्छी क्वालिटी के लिए देता है न कि कंडम क्वालिटी के लिए। इसके बाद जब ये मथुरा लौटे तो फिर इन्होंने विश्राम घाट वाली पुरानी दूध वाली दुकान पर क्वालिटी का ध्यान रखते हुए बढ़िया से बढ़िया मिठाइयों को बनाना व बेचना शुरू किया जिसमें सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मलाई के लपेटा को मिली। फिर तो इनका उत्साह तीव्र गति से बढ़ने लगा और उन्होंने सबसे पहले होली गेट पर अपनी लंबी चौड़ी दुकान खोली। उस दुकान ने ऐसी धूम मचाई कि होली गेट के बाद शहर भर में दुकानों का मानो जाल सा बिछ गया। शहर ही नहीं जिले में भी इन्होंने दुकानें खुलवा कर धूम मचा दी।
 एक सज्जन की कही हुई बात मुझे याद आ रही है कि बृजवासी ने मथुरा के हलवाईयों को बढ़िया मिठाई बनाना सिखा दिया। ऐसा नहीं कि इनके अलावा और कोई मैदान में नहीं उतरा लेकिन एक से बढ़कर एक आते और जाते रहे तथा चलते रहे और आज भी हैं किंतु अखाड़े में कंधे पर गदा लिए हुए सतीश बाबू ही डटे हुए हैं यानी सिक्का बृजवासी के नाम का ही चलता है।
 बृजवासी की एक रोचक घटना जो मेरे साथ घटित हुई को, बताता हूं। शायद पांच सात साल पुरानीं बात है हमारी भांजी कविता जो कलकत्ते में रहती है ने अपने पुत्र की शादी दिल्ली आकर की थी, का मेरे पास फोन आया कि मामा जी शादी में सभी को मिठाई व नमकीन के डिब्बे देने के लिए मथुरा में बृजवासी के यहां से व्यवस्था करानी है। आप गाड़ी करके किसी को साथ भिजवा कर यह कार्य करा दो क्योंकि बृजवासी का सामान बहुत अच्छा होता है। मुझे अपनी भांजी की बात बड़ी अजीब सी लगी और मैंने कहा कि क्या दिल्ली में बढ़िया मिठाई नहीं मिलती? दिल्ली में तो एक से बढ़कर एक सभी कुछ मिलता है क्यों बेकार गाड़ी का खर्चा और करती है।
 इस पर उसने कहा कि नहीं मामा जी बृजवासी जैसी मिठाई यहां नहीं मिल पाएगी भले ही गाड़ी का खर्चा लग जाए तब भी उसकी मिठाई के डिब्बे सस्ते पड़ेंगे और चीज भी बढ़िया मिलेगी। खैर मैंने उसको अपना कुतर्क करके समझा बुझा दिया। इसके बाद शादी का डिब्बा हमारे घर आया तो डिब्बे का सामान कोई बुरा तो नहीं था किंतु वह बात नहीं थी जो बृजवासी की होती है। इसके अलावा महंगा भी बहुत था क्योंकि दिल्ली की फेमस दुकान से खरीदा गया था। तब कहीं जाकर मेरी समझ में आई कि बृजवासी का मतलब क्या होता है।
 इस सबके पीछे राज क्या है? यह भी बताता हूं। पहली बात तो यह है कि ये दिल के राजा हैं नींयत इनकी शीशे की तरह साफ रहती है। किसी से लेना है उसके बाद में सोचते हैं किंतु जिसका देना है उसे पहले घर बैठे भेजना इनकी विशेषता है यानीं हिसाब किताब बड़ा खरा। इधर माल पहुंचा उधर पेमेंट टन्न। दूसरी बात जो मैंने देखी वह यह कि अपने कर्मचारियों के लिए यह जान लड़ा देते हैं यानी तन, मन, धन से चौबीसों घंटे हर बात के लिए तैयार रहते हैं अर्थात पुत्रवत व्यवहार और हर दुख सुख में साथ। यदि कोई दीन, दुखी, असहाय और जरूरतमंद इनके द्वार पहुंच जाए तो वह खाली हाथ नहीं लौटेगा इनकी इस विलक्षणता से ही ईश्वर ने इनका हाथ पकड़ रखा है।
 इनका कारखाना तो ऐसा है जैसे कोई मुहल्ला हो। सैकड़ों लोगों को अपने अपने काम में तल्लीन देखा जा सकता है कभी-कभी तो इन्हें कर्मचारियों के साथ बैठकर पेड़े बनाने या अन्य परिश्रम का कार्य करते भी देखा जा सकता है। नजर भी इनकी बड़ी तेज है। अपने कार्यालय में बैठकर सीसीटीवी कैमरों से पूरे कारखाने के हर नजारे पर नजर रखते हैं। जब कभी मैं इनकी दुकानों के आगे से गुजरता हूं और त्योहारों के समय लगी भीड़ व राशन से भी अधिक लंबी लंबी लाइन को देखता हूं तो सोचता हूं कि क्या मूर्ख लोग हैं ये, जो पैसे भी भरपूर दे रहे हैं और धक्के भी खा रहे हैं पर खाएंगे बृजवासी की ही मिठाई। रक्षाबंधन पर तो घेवर के लिए बड़े-बड़े दिग्गज भी रिरियाते देखे जा सकते हैं। मुझे तो ऐसे लोगों पर बड़ी गुस्सा भी आती है कि एक दिन ब्रजवासी की मिठाई नहीं खाएंगे तो क्या मर तो नहीं जाएंगे? पर मेरी सुने कौन यहां तक कि अपने घर में नहीं चल पाती इसीलिए घेवर एक दिन पहले ही मंगा कर रख लिया जाता है।
 लिखने को तो इनके बारे में बहुत है किंतु न मेरे पास अब समय है और लोग भी लंबा लेख पढ़ने में दुखी होते हैं। एक बात जो मुझे पहले लिखनी थी वह अभी अभी याद आई है कि इनके परिवार में पित्रों को विशेष श्रद्धा व सम्मान दिया जाता है। सतीश बाबू के बच्चों की शादी में एक बात ने मुझे बहुत प्रभावित किया। वह यह की शादी समारोह में प्रवेश करते ही इनके पिताजी स्व० केशव देव जी व माता जी स्व० श्रीमती कटोरी देवी के विशालकाय चित्रों के दर्शन सबसे पहले होते हैं। जो लोग पित्रों को पूजते हैं उन्हें पित्र ही नहीं ईश्वर भी बहुत प्यार करते हैं। धन्य हैं वे माता-पिता जिन्होंने सतीश बाबू जैसा लाल जना।

सतीश बाबू के संपर्क नंबर 9837035557
7055500393

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