विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। भले ही हेमा मालिनी दो बार से सांसद बनी हुई हैं किंतु राजनीति के सांचे में कतई फिट नहीं बैठतीं। वर्तमान समय में राजनीति का परिवेश बदल चुका है। यदि सफल राजनेता बनना है तो छुट्ट भलाई के सभी गुंण होने चाहिए, जो हेमा में दूर-दूर तक नहीं है।
राजनीति में ऐसे लोग सफल हो रहे हैं जिन्हें जेल के अंदर होना चाहिए किंतु उनके दिन मौज मस्ती में बीत रहे हैं यानी खूब फल फूल रहे हैं और ऊंचे ऊंचे पदों पर बैठकर गुलछर्रे उड़ा रहे हैं। मथुरा में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिस पार्टी का दबदबा देखा उसी में घुस आते हैं। यानी “जहां पै देखी भारी परात वहीं पर जागे सारी रात।
अब रुख करता हूं हेमा की ओर ये न तो मर्डर कराती हैं, न किडनैप कराती हैं, न लूटपाट न डकैती डलवाती हैं, न काले तेल का व्यापार करती हैं, न शराब पीती है ना मांसाहार करती हैं, न इन्होंने अपने कुनवे को राजनीति के मैदान में उतार रखा है, ना ही ये कमीशन खाती हैं। लोगों का काम कर कर मोटी रकम डकार ने से भी एकदम दूर रहती हैं। पेशेवर अपराधियों को संरक्षण से भी इनका कोई लेना-देना नहीं है।
कृष्ण भक्ति और आध्यात्मिकता में लीन रहकर ब्रज को संवारने की दिशा में ही उनकी रुचि रहती है। भला यह भी कोई राजनीति के लक्षण हैं? मेरी नजर में तो यह एकदम फिसड्डी सांसद है जो राजनीति की एबीसीडी भी नहीं जानतीं। अब आप ही सोचें कि इन्हें तीसरी बार सांसद बनाना चाहिए या नहीं? यदि कोई मुझसे पूछे तो मेरा उत्तर होगा नहीं, नहीं, नहीं कतई नहीं।
राजनीति के सांचे में कतई फिट नहीं बैठतीं हेमा
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