विजय गुप्ता की कलम से
मथुरा। बात उन दिनों की है जब संत शैलजा कांत मिश्र मथुरा में पुलिस कप्तान थे। शायद तीन साढ़े तीन दशक पुरानीं हैं। मैं किसी कार्यवश चौकी बाग बहादुर क्षेत्र से गुजर रहा था, तभी देखा कि एक महिला जिसकी गोद में एक दो साल का बच्चा था, बदहवास हालत में इधर उधर भाग रही थी। मैंने उससे पूछा कि क्या बात है? इस पर उसने बताया कि एक युवक मेरे थैले को छींनकर भाग गया है।
घटना पुलिस चौकी के पास की थी। मैंने उससे कहा कि तुमने पुलिस वालों से शिकायत की? इस पर उसने बताया कि चौकी पर गई किंतु वहां किसी ने मेरी बात सुनीं तक नहीं और भगा दिया। महिला ने बताया कि उस थैले में मेरा कीमती सामान तथा रुपयों का बटुआ भी था। इतना कहते-कहते वह रोने लगी तथा बोली कि अब मैं कैसे घर जाऊंगी? मेरे पास तो किराए के पैसे तक नहीं है तथा बच्चे को क्या खिलाऊंगी पिलाऊंगी? मैंने उसे तसल्ली बंधाई तथा उस युवक का हुलिया व कपड़े आदि की जानकारी की और पूंछा कि वह किस ओर भागा है?
मैंने उस महिला से कहा कि तू यहीं रहना कहीं जाना मत। मैं तलाशता हूं, शायद मिल जाय। इसके बाद मैं अपने स्कूटर से उस ओर भागा तथा इधर-उधर चारों ओर कई चक्कर लगाये किंतु उस हुलिया का कोई भी युवक नजर नहीं आया। हां एक हलवाई की दुकान पर काम करता हुआ एक लड़का जरूर मिलता जुलता सा मिला। मुझे उस पर शक हुआ तथा कहा कि कहां है वह थैला? इस पर वह हतप्रत सा रह गया और बोला कि कैसा थैला? मैंने कहा कि जो तू छीन कर लाया है। वह बोला कि मेरा थैले वैले से कोई मतलब नहीं मैं तो यहां काम करता हूं। फिर मैंने उस महिला को ले जाकर शिनाख्त कराई तो उसने कहा कि नहीं यह नहीं है।
इसके बाद मैंने उस महिला को कुछ रुपए देकर कहा कि तू अपने बच्चे को दूध लेकर पिला तथा खुद भी कुछ खा पी ले और भरतपुर जाने का किराया भी इसमें हो जाएगा, पर अभी जाना मत यहीं रहना। इसके बाद मैंने चौकी पर जाकर इंचार्ज से बात की तो उसने क्या कहा यह तो पूरा ध्यान नहीं किंतु इतना जरूर ध्यान है कि टालू मिक्सर पिला दिया। मैंने महिला से उसका पूरा पता ठिकाना पूंछ कर अपनी डायरी में लिख लिया तथा घर आकर फोन द्वारा (क्योंकि उस समय मोबाइल नहीं थे) पूरे घटनाक्रम से उस समय के पुलिस कप्तान शैलजाकांत जी को अवगत कराकर अनुरोध किया कि मिश्रा जी जैसे भी हो उस अबला की मदद कराओ तथा उसके थैले व पैसों की बरामदगी कराओ।
मुझे पूरा विश्वास था कि इस प्रकार की वारदातें पुलिस की मिलीभगत से होती हैं और इलाका पुलिस की जानकारी में रहता है कि कौन-कौन लोग ऐसा करते हैं। जब मिश्रा जी ने भावुक होकर मेरे द्वारा बताई उस महिला की व्यथा सुनीं तो उन्होंने चौकी इंचार्ज से क्या कहा यह तो पता नहीं किन्तु इतना जरूर मालूम है कि वह एकदम घबरा गया और उस महिला को तलाशा किंतु महिला नहीं मिली। मैंने भी उसे तलाशा पर वह मिली नहीं, संभवत: वह चली गई होगी।
इसके बाद चौकी इंचार्ज ने मिश्रा जी को बताया कि वह महिला कहीं नहीं मिली तथा मुझे उसका पता ठिकाना भी नहीं मालुम। मिश्रा जी ने मुझे यह बात बताई तब मैंने उन्हें उसका पूरा पता बताया। इसके बाद मिश्रा जी ने चौकी इंचार्ज को बुलाया और उस महिला का पता ठिकाना बताकर कहा कि तू खुद जा और कार्यवाही करके सामान की बरामदगी करके मुझे रिपोर्ट दे वरना तेरी खैर नहीं। उस कार्यवाही से भी मुझे तसल्ली नहीं हुई। इस प्रकरण की चर्चा मैंने वरिष्ठ एवं बुजुर्ग पत्रकार स्व० श्री मुरारी लाल चतुर्वेदी से की। चतुर्वेदी जी उस समय मेरे साथ ही आज अखबार में थे।
हम दोनों की सलाह मिली कि चलो हम खुद ही भरतपुर चलें। उसी दौरान चतुर्वेदी जी के पुत्र मनोहर लाल चतुर्वेदी जो रिफाइनरी में कार्यरत थे, का नया स्कूटर आया था। अत: वे मुझसे बोले कि विजय बाबू हमारे स्कूटर को ही ले चलो। नेकी और पूंछ-पूंछ मैंने कहा ठीक है आपके स्कूटर से ही चलते हैं। इसके बाद मैं और मुरारी लाल जी दूसरे दिन स्कूटर से भरतपुर चल दिए। हम लोग भरतपुर की सीमा में प्रवेश कर ही रहे थे कि सामने से मथुरा पुलिस की एक जीप आती दिखाई दी। उसने चौकी बाग बहादुर का इंचार्ज तथा अन्य पुलिस वाले दिखाई दिए। हमने उन्हें पहचान लिया तथा उन्होंने भी हमें देख लिया तथा जीप रोक कर बोले कि वह महिला अपने घर पर नहीं मिली, अतः आपका जाना बेकार है।
हमें दरोगा की बात पर विश्वास नहीं हुआ। अतः हम दोनों उस महिला के बताए ठिकाने पर पहुंच गए। वहां पर महिला नहीं मिली तथा उसका आदमी काम पर गया हुआ था। अन्य पड़ौसिन महिलाओं ने बताया कि वह मथुरा से लौटी ही नहीं है। संभवतः कहीं और चली गई होगी, खैर हमें बड़ी निराशा हुई। और महिलाओं ने बड़ी जिज्ञासा से पूंछा कि आखिर बात क्या है? तुम लोग मथुरा से क्यों आए हो अभी पुलिस भी पूछताछ करके गई है अतः मैंने उन्हें सारी बात बताई किंतु एक अधेड़ सी महिला के गले मेरी बात नहीं उतरी और उसने मुझसे जो कहा उसे सुनते ही मैं हक्का-बक्का सा रह गया और ऐसा लगा कि मैं काफी ऊंचाई से धड़ाम से नींचे आ गिरा।
महिला बोली कि “तेरौ का बासै कोई लवर है जो मथुरा सै भरतपुर तक भागौ चलौ आयौ है” आप कल्पना कर सकते हैं कि उस समय मेरे ऊपर क्या बीती होगी। जले पर नमक का काम मुरारी लाल जी ने और कर दिया वह यह कि बजाय उस महिला को डांटने के उल्टे वे बड़े जोर से हंस पड़े। इसी को कहते हैं “होम करते हाथ जलना”। महिला के व्यंग भरे तंज से मैं बड़ा आहत हुआ और मैंने महसूस किया कि हद से आगे जाकर यानी पागलपन की सीमा तक जाकर किसी की मदद करने का अर्थ क्या होता है? इस पूरे मिशन में मुझे असफलता तो मिली ही ऊपर से इनाम भी ऐसा मिला जो ताजिंदगी याद रहेगा।