Saturday, November 23, 2024
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जब मैं सील लगे बंद मकान में नसैनीं लगाकर खिड़की के रास्ते घुसा

विजय गुप्ता की कलम से

मथुरा। घटना लगभग तीन दशक से भी ज्यादा पुरानीं है किंतु मेरे सनकी पन का एक बड़ा रोचक किस्सा है। एक बार की बात है कि मुझे किसी ने सूचना दी कि छत्ता बाजार के अंदर बारी गली के एक बंद मकान जिसे पुलिस ने सील कर रखा है, के अंदर पिंजरे में बंद एक तोता भूखा प्यासा छटपटा रहा है।
बस फिर क्या था इतना सुनते ही मेरा मन भी छटपटाने लगा और यह लगा कि कैसे भी हो उस तोते की जान बचाऊं। मैंने तुरंत अपने एक सहयोगी यदुवंश मणि पावस को बुलाया और स्कूटर पर बैठाकर जा पहुंचा बारी गली के उसी मकान पर। उस मकान में रहने वाले सभी लोगों को पुलिस ने दहेज हत्या के मामले में कई दिन पूर्व जेल भेजकर मकान के दरवाजे पर ताला लगाकर सील कर दिया था।
वहां पर लोगों ने बताया कि एक दिन पहले तक तोते की टैं-टैं की आवाज आ रही थी किंतु उस दिन सुबह से ही आवाज बंद थी। मैंने तुरंत कोतवाली प्रभारी को फोन किया तथा वस्तुस्थिति से अवगत कराया। जहां तक मुझे याद है उस समय कोतवाल धर्मचंद्र थे। उन्होंने कहा कि गुप्ता जी अब हम सील तो तोड़ नहीं सकते और कोई दूसरा रास्ता है भी नहीं।
मैंने कहा कि दूसरा रास्ता यह है कि आप पुलिस को भेज दो उसकी उपस्थिति में हम लोग एक नसैनीं लगाकर खिड़की के रास्ते घर के अंदर प्रवेश कर जाएंगे तथा तोते को सकुशल बचा लेंगे। थोड़ी देर बाद एक दरोगा वहां पहुंच गए इसी दरम्यान हमने एक नसैंनीं का इंतजाम किया और हम सभी नसैनीं लगाकर खिड़की के रास्ते घर के अंदर प्रवेश कर गए।
हमने पूरा घर छान मारा किंतु तोता कहीं नहीं मिला और हम सभी वापस बाहर आ गये। बाद में पता चला कि बीती रात्रि में मुहल्ले के कुछ लोग नसैनीं लगाकर घर के अंदर प्रवेश करके तोते को चुपचाप निकाल लाये थे। खैर जो भी हो तोते की जान बच गई यही बहुत अच्छी बात रही।
चली बात पर इतना जरूर कहना चाहूंगा कि जो लोग अपने शौक और मनोरंजन के लिए तोते या अन्य पक्षियों को कैद करके पूरे जीवन भर घोंट घोंट कर मारते हैं, उनका दर्जा तो कसाईओं से भी ज्यादा बड़ा होता है क्योंकि कसाई तो एक बार ही मारता है किंतु ये निर्दयी तो पूरी जिंदगी उन्हें तिल तिल कर मारते रहते हैं।
ये लोग इंसान नहीं शैतान होते हैं। अगर इन्हें या इनके बच्चों को कोई पूरे जीवन भर एक कमरे में बंद रखे और वही खाना दे दिया जाय तथा कह दिया जाए कि यहीं खाओ और यही हंगो, तो इन्हें कैसा महसूस होगा? अरे निर्दयी लोगो आसमान के इन परिंदों को मत सताओ इनकी आह तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ेगी।
प्रदीप का यह गाना “पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द न जाने कोय, ऊपर से तू खामोश लगे हैं भीतर भीतर रोये, विधि ने तेरी कथा लिखी आंसू में कलम डुबोय” सुनते ही मेरा मन रोने लगता है। धन्य हैं प्रदीप और धिक्कार है इन निर्दईयों को।

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