Saturday, November 23, 2024
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एक अद्भुत चमत्कार का दूसरा स्वरूप थीं सती हरदेवी

मथुरा। गत दिवस मैं अखबार पढ़ रहा था तो एक समाचार देखकर मैं एकदम स्तब्ध रह गया। आगरा की एक महिला ने आठवीं शादी करने के लिए अपने पति की, प्रेमी के साथ मिल कर हत्या कर दी। हे भगवान यह समय तो कलयुग नहीं बल्कि घोर कलयुग का भी बाप है। इसी बात की सोचा बिचारी करते-करते मुझे लगभग साढ़े चार दशक पुरानीं सती हरदेवी की अद्भुत व चमत्कारिक घटना याद आ गई जो अविश्वसनिय सी लगती है।
     गोवर्धन के गांव पलसों में एक सच्ची पतिव्रता महिला थी, जो हर समय अपने बीमार पति की सेवा में तल्लीन रहती। दिन भर असाध्य रोग से पीड़ित अपने पति की सेवा और फिर उससे बचे समय में अपने चार पांच बच्चों का लालन-पालन। बस यही उस पतिव्रता का धर्म था, नाम था हरदेवी। उसका मायका  बरसाना के खायरा गांव में था। शादी के बाद से ही वह अपने पति में ही ईश्वर का भाव रखती थी यानी कि “पति परमेश्वर”।
     एक दिन पति ने बीमारी के चलते अपने प्राण त्याग दिए। हरदेवी पति के वियोग में एकदम विक्षिप्त सी हो गई और अपने छोटे बच्चों के मोह को भी त्याग दिया तथा घरवालों से कह दिया कि मैं भी अपने परमेश्वर की चिता के साथ जल कर प्राण त्यागूंगी। घरवालों ने बहुतेरा समझाया और फिर गांव वालों तक ने मनामने किए छोटे-छोटे बच्चों की दुहाई भी दी किंतु वह नहीं मानी और अपनी जिद पर अड़ी और डटी रही। जैसे ही पति की चिता लगाई गई वह उस पर जा बैठी तथा पति का सिर अपनी गोद में रख लिया।
     चारों तरफ हल्ला मच गया और जिला प्रशासन भी सतर्क हो उठा। उस समय जिलाधिकारी बी.डी. माहेश्वरी थे। उन्होंने सख्त निर्देश दिए कि कहीं हरदेवी सती न होने पाऐ क्योंकि सती होना कानूनन जुर्म था। खैर पूरे जमघट ने जिसमें अफसरों के अलावा पुलिस भी भारी संख्या में मौजूद थी। हरदेवी को जबरदस्ती उठाकर चिता में आग लगा दी। हरदेवी चिता स्थल के पास बने मंदिर में बैठा दी गई। उसके बाद उसे जबरदस्ती जिला अस्पताल लाकर भर्ती कराया गया ताकि उसका मानसिक इलाज हो किंतु उसे तो वही राम धुन सवार कि मैं तो अपने परमेश्वर के पास जाऊंगी। फिर उसे वापस लाया गया।
     चमत्कार की बात यह कि शरीर का जो भाग हरदेवी की गोद में रखा था वह जला ही नहीं। खूब प्रयास किए किंतु नतीजा ढाक के तीन पात। फिर यह तय हुआ कि शरीर के उस अधजले हिस्से को गंगा जी में विसर्जित कर दिया जाय। उस हिस्से को लेकर घरवाले गंगा जी पहुंचे और तेज धारा में छोड़ दिया किंतु उससे भी बड़ा चमत्कार यह हुआ कि वह हिस्सा तेज धार में बहे ही नहीं और बार-बार किनारे पर लौट आऐ।
     इसके पश्चात उस अधजले हिस्से को वापस गांव लाया गया तथा यह तय हुआ कि चिता को दोबारा लगाया जाय और उस पर उसी हिस्से को लेकर हरदेवी बैठ जांय किंतु उसमें आग नहीं लगाई जाय। फिर यही प्रक्रिया अपनाई गई सती हरदेवी श्रृंगार करके चिता पर बैठ गईं। फिर क्या हुआ कि एक बाबा  कहीं से अचानक आऐ और उन्होंने हरदेवी को सती होने के नियमों की कुछ जानकारी दी और पता नहीं कि अचानक गायब भी हो गए।
     उसी दौरान हजारों लोगों की भारी भीड़ ने देखा कि आसमान से केसर की वर्षा हुई और हरदेवी ने अपने हाथों को रगड़ा और तुरंत अग्नि प्रकट हुई तथा देखते ही देखते सती अपने पति के साथ जलकर भस्म हो गई। लोग बताते हैं कि सती ने भस्म होने से पूर्व जोर-जोर से कुछ कहा भी किंतु सती माता की जय हो, सती हरदेवी अमर रहे आदि के जयकारों के मध्य कोई सुन समझ नहीं पाया। जिलाधिकारी बी.डी. माहेश्वरी स्वयं मौके पर गये तथा उन्होंने सती स्थल पर माथा टेका।
     जब हरदेवी सती हुईं थीं। उन दिनों कांतिचंद्र अग्रवाल अमर उजाला के जिला प्रतिनिधि थे उनके आदेशानुसार एक-दो दिन बाद चिता स्थल को देखने मैं भी गया तथा वहां देखा कि चिता स्थल पहाड़ जैसी ऊंचाई बनी हुई थी तथा लोग हवन सामग्री आदि उस पर डाले जा रहे थे और सती हरदेवी के जयघोषों का सिलसिला जारी था। यह सब बातें बहुत पुरानीं हो गईं जितना मुझे याद था वह तथा कुछ सुनी हुई बातों के आधार पर लिखा है क्योंकि मैं हर समय मौके पर तो मौजूद था नहीं हो सकता है कुछ उन्नीस बीस हो गया हो। यह मामला कांतिचंद्र जी ने अमर उजाला में खूब लिखा तथा देश भर के समाचारों की सुर्खियां भी बना। वहीं कुछ नास्तिक लोग भी तिलमिलाऐ और उन्होंने इसे गप्प और अंधविश्वास करार दिया।
     जहां तक नास्तिकों की बात है मैंने बड़े-बड़े नास्तिक देखे जो अंत समय पर माला जपते नजर आऐ। अब मैं आगे बढ़ता हूं पलसों गांव में सती हरदेवी की याद में एक भव्य मंदिर बना हुआ है तथा पिछले लगभग दस वर्षों से श्रावण मास की अष्टमी को एक मेला भी लगता है। उस मेले में दूर-दूर के लोग आकर माथा टेकते हैं।
     कहते हैं कि गोबर गिरता है तो साथ में मिट्टी लेकर उठता है। सती हरदेवी की कथा तो समाप्त हो गई किंतु इसी प्रसंग के साथ मैं अपनी एक लघु कथा को भी अटैच किए दे रहा हूं। क्योंकि अब मुझे अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने का चस्का जो लग चुका है। यह किस्सा भी रोचक है। दरअसल जब मैं सती के गांव पलसों गया था तब उसी स्थान पर एक किशोर उम्र के बालक ने मुझे पहचान लिया और अदब से नमस्कार करके घर चलने को कहा चूंकि मैं जल्दी में था और वापस लौटने के साथ-साथ शायद परिक्रमा भी देनी थी। वह लड़का मेरे मना करते ही अपने घर की ओर भागा शायद माता-पिता को बुलाने के लिए किंतु मैं रुका नहीं और तुरंत लौट लिया।
     अब इस लघु कथा को भी बताता हूं सती वाली इस घटना से कुछ दिन पहले गिरिराज जी की बड़ी परिक्रमा में एक अधेड़ महिला इधर-उधर भागते हुए दहाड़ मार मार कर रो रही थी उसके साथ चार पांच बच्चे भी थे। मैंने पूंछा कि क्या बात है? इस पर उसने बताया कि बंदर मेला झोला ले गया है उसमें खाना था तथा बहुत सारे रुपए भी थे। मैंने पूंछा कितने? तो जहां तक मुझे याद है शायद ढाई तीन सौ के मध्य थे। उन रुपयों से वह गोवर्धन में खरीददारी करने आई थी।
     इसके बाद मैंने लगभग आधा या पौन घंटा थैले को ढुढ़वाने में भागदौड़ की किंतु वह नहीं मिला। उस गरीब महिला का रो-रोकर बुरा हाल उसे पैसों के खोने से अधिक अपने पति की गुस्सा का भय ज्यादा लग रहा था। वह ऐसे रोऐ जा रही थी जैसे कोई मर गया हो। मैंने कहा कि जो हो गया सो हो गया तू किसी बात की चिंता मत कर। इसके बाद मैंने अपनी जेब में से पैसे निकाले (शायद पचास साठ रुपए होंगे) और बस किराए के लिए कुछ रुपए रखकर कहा कि ले, और अपने आदमी से कह देना कि बाकी के पैसे भी आ जाएंगे। वह भौचक्की सी रह गई। मैंने उससे पता ठिकाना पूंछा तो वह बोली कि सी पलसौं की हूं तथा मेरे आदमी का नाम यह है। सी पलसौं पलसौं गांव से ही सटा हुआ है।
     मैं घर आया तथा पिताजी को पूरा किस्सा बताया और उनसे पैसे लेकर उसके गांव के पते पर मनी ऑर्डर कर दिया। एक सप्ताह बाद मनी ऑर्डर मिलने की रसीद भी मेरे पास आ गई। उस लड़के ने मुझे पहचान कर इसीलिए घर चलने और न जाने पर शायद मां बाप को बुलाने हेतु दौड़ लगाई होगी। पहले सती की कथा और फिर अपनी लघुकथा बताकर ऐसा ही चैन मिल रहा है जैसे मनी आर्डर करके मिला था।

विजय गुप्ता की कलम से

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