मथुरा। विगत दिवस मेरी डॉ. हरीकृष्ण पालीवाल से फोन पर बात हो रही थी, वे बोले कि पटनायक जी के बारे में आपने जो लिखा उसे मैंने भी पढ़ा, काश आप लिखने से पहले मुझसे भी पूंछ लेते।
उनकी इस बात से मेरा दिमाग घूम गया। मेरे मन में विचार आया कि शायद दाल में कुछ काला है। यानी कि सौत को देखकर सौत जलती है, हो सकता है इनको गोपबंधु पटनायक जी के प्रशंसात्मक लेख से चिढ़न हुई होगी और कहना चाहते होंगे कि गुप्ता जी आपने यह क्या ऊल जलूल लिख दिया। यह भी हो सकता है कि पटनायक जी की कुछ कमियां निकाल कर मुझे बताएं, किंतु मामला एकदम उल्टा निकला। पालीवाल जी को जलन नहीं बल्कि उसे पढ़कर तो आइसक्रीम जैसी तरावट महसूस हुई।
उन्होंने लगभग चालीस साल पुराना एक हैरतअंगेज किस्सा सुनाया। उस किस्से को सुनकर मैं भी अवाक रह गया और पटनायक जी के प्रति मेरा मन अत्यधिक श्रद्धान्वत हो उठा। घटनाक्रम देहरादून का था उस समय हरि कृष्ण पालीवाल जी गढ़वाल मंडल में संयुक्त निदेशक के पद पर नियुक्त हुए ही थे। अपनी नियुक्ति का चार्ज लेकर वे कमिश्नर से मिलने के लिए अपनी जीप से जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक नौजवान व्यक्ति तेजी से साइकिल से जाता हुआ दिखाई दिया।
पालीवाल जी बताते हैं कि दूर से देखने पर मुझे उस नौजवान की झलक पटनायक जी की सी लगी, और जब जीप उस साइकिल सवार के निकट से गुजरी तब मैंने गौर से देखा तो वह नौजवान और कोई नहीं सचमुच में पटनायक जी ही थे। इस पर मुझे बड़ी हैरत हुई तथा मैंने जीप रुकवाई और पटनायक जी को रोककर पूंछा कि पटनायक जी आप और साइकिल पर माजरा क्या है? कहां जा रहे हो दौड़े-दौड़े साइकिल से?
दरअसल उन दिनों पटनायक जी पौड़ी गढ़वाल मंडल में प्रबंध निदेशक के पद पर तैनात थे। पटनायक जी ने बताया कि मेरा ट्रांसफर मथुरा डीएम पद पर हो गया है और मुझे यहां का चार्ज छोड़कर मथुरा जाना है। अतः कमिश्नर से मिलने जा रहा हूं। इस पर पालीवाल जी ने कहा कि आप अपनी गाड़ी के बजाय साइकिल से क्यों जा रहे हो? तो पटनायक जी ने कहा कि इससे क्या फर्क पड़ता है। पालीवाल जी जो स्वयं एक दुर्लभ व्यक्तित्व के धनी हैं, पटनायक जी की अति दुर्लभता देखकर गदगद हो उठे।
पालीवाल जी ने मुझे बताया कि इसके बाद मैंने उनकी साइकिल को अपनी जीप में रखवाया और फिर हम दोनों साथ-साथ कमिश्नर से मिलने गए। मुझे लगता है कि गोप बंधु पटनायक जी के अंदर कुछ-कुछ परमहंस पन के से लक्षण हैं। इनके ऊपर इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कोई देखेगा तो क्या कहेगा। ये तो अपनीं अलग ही धुन के धुनीं हैं। इनके बारे में अब और क्या लिखूं। पहले लेख में जो कुछ मैंने लिखा, वह सब इस एक घटना के मुकाबले फीका सा पड़ गया।
बात भले ही छोटी सी है किंतु बजनी अधिक है। पता नहीं पटनायक जी इंसान के रूप में कौन सी दिव्यात्मा है। इनके इस भोले और लुभावने पन को मेरा सलाम।
विजय गुप्ता की कलम से