Friday, December 27, 2024
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रेल के डिब्बे से मेरी अटैची हो गई पार और सब कुछ लुट गया

विजय गुप्ता की कलम से

मथुरा। एक बार मैं बाल बच्चों के साथ ससुराल में होने वाली एक शादी में शामिल होने के लिए महाराष्ट्र जा रहा था कि रेल के डिब्बे से हमारी एक अटैची पार हो गई, जिसमें सोने चांदी के काफी जेवरात व नकदी रखी हुई थी। इसके अलावा अन्य बहुमूल्य सामान व जरूरी कागजात आदि थे। मेरा कलेजा धक्क रह गया किंतु कर भी क्या सकता था अतः मैंने कलेजे पर पत्थर रख लिया इसके अलावा और कोई चारा भी तो नहीं था।
     यह घटना काल्पनिक है। न कोई मेरी अटैची पार हुई और ना ही मेरा सोना चांदी नकदी वगैरह कुछ भी गया। हां इस काल्पनिक घटना के पीछे एक रोचक दास्तान है, आज उसे बताता हूं। बात लगभग तीन दशक पुरानीं है नलकूप लगवाने के कुछ समय बाद पिताजी स्वर्ग सिधार गए। पानीं भरने वालों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही थी। जब बिजली चली जाती तो बड़ी परेशानी होती तथा यह भी पता नहीं रहता कि अभी पांच मिनट में आ जाएगी या पांच घंटे में अतः लोग इंतजार करते रहते और अधिक देर होने पर लौटने भी लगते।
     इससे मुझे बड़ी पीड़ा होती। इसके निदान के लिए फिर किराए का जनरेटर मंगा लिया जनरेटर वाला तीन सौ रुपए रोजाना लेता था, जो मुझे बड़ा अखरता था। मैंने सोचा कि तीन सौ रुपए रोजाना देने से अच्छा तो यह होगा कि हम एक नया जनरेटर ही खरीद लें। इस विचार को अमलीजामा पहनाने के उद्देश्य से मैं अपने मामाजी जमुना दास गुप्ता, जो बृज मशीनरी स्टोर के स्वामी हैं, की कोतवाली रोड स्थित दुकान पर गया तथा किर्लोस्कर कंपनी के जनरेटर को खरीदने की बात की।
     मामा जी बोले कि बेटा जनरेटर की तुझे क्या जरूरत पड़ गई? मैंने कहा कि पानीं भरने वाले दूर-दूर से आते हैं और बिजली के चले जाने पर निराश होकर लौटने लगते हैं जो मुझे अच्छा नहीं लगता। अतः इसी प्रयोजन के लिए जनरेटर चाहिए। कुछ क्षण रुककर वे बोले कि मेरी एक राय है मैंने कहा कि बताओ। इस पर उन्होंने कहा कि सेवा का भाव तो तेरा अच्छा है किंतु मैं जनरेटर खरीदने की सलाह नहीं दूंगा। मैंने मामा जी से पूंछा कि क्यों? इस पर उन्होंने कहा कि जरनेटर तो एक बार तू खरीद लेगा किंतु उसका डीजल और मेंटेनेंस सहन करना मजाक नहीं। आज तेरी हैसियत खरीदने और फिर चलाने की है किंतु भगवान न करें आगे तेरे बस की नहीं रही और फिर जरनेटर चलाना बंद करना पड़ा तो वह और भी बुरा होगा। उन्होंने कहा कि मेरा तो जरनेटर बिक रहा है मुझे तो लाभ है किंतु मेरी राय मान और जरनेटर का विचार त्याग दे।
     मैं तो ठहरा जिद्दी और सनकी मैंने उनसे कहा कि मामा जी एक बात बताओ कि जब घर में किसी को हार्ट अटैक पड़ जाए या और कोई बीमारी अथवा एक्सीडेंट हो जाए तो तुरंत अपोलो लेकर भागते हैं (उन दिनों अपोलो अस्पताल का बहुत जोर था) और बाद में पता चला कि लाखों रुपए भी गए और मरीज भी हाथ से निकल गया। या फिर रेल के सफर के दौरान अटैची पार हो जाए तथा उसमें सोना चांदी नकदी आदि यानीं कि जीवन भर की पूरी कमाई चली जाए तब हम लोग कलेजे पर पत्थर रखकर उसे बर्दाश्त करते हैं या नहीं? इस पर वे बोले कि वह तो मजबूरी है।
     मैंने उनसे कहा कि मामा जी मैंने सोच लिया कि रेल के सफर में मेरी अटैची पार हो गई और मैं लूट पिट गया किंतु जरनेटर तो मुझे खरीदना ही है। इस पर उन्होंने हथियार डाल दिए और बोले कि बेटा तू जीता और मैं हारा अब तू ले जा जरनैटर मेरा आशीर्वाद तेरे साथ है। इसके बाद हमारा जरनेटर आ गया। कुछ दिन ही बीते होंगे कि स्व. हरदेव चतुर्वेदी जो भारतीय जनता पार्टी के उस समय नगर अध्यक्ष थे, एक दिन मेरे पास आए और बोले कि विजय बाबू तुम यह क्या कर रहे हो? जरनेटर चला कर पानी बांट रहे हो। आज तो तुम यह सब सहन कर पा रहे हो किंतु आगे चलकर यदि यह झोक नहीं झेली गई तथा जनरेटर से पानी नहीं दे पाए और फिर बंद करना पड़ा तो यह और भी बुरी बात होगी, और चारों ओर जग हंसाई हो जाएगी।
     मैंने चतुर्वेदी जी से भी वही बातें कहीं तथा कहा कि आप मान लो कि मैं शादी में अपनी ससुराल जा रहा हूं और रास्ते में मेरी अटैची पार हो गई। हार्ट अटैक या एक्सीडेंट आदि वाली बात कहने का मेरा साहस नहीं हुआ क्योंकि कहते हैं कि चैबीस घंटे में कुछ क्षण ऐसे आते हैं कि मुंह से निकली बात सच हो जाती है। अटैची वाली बात इसलिए कही क्योंकि मैं कहीं आता जाता ही नहीं हूं रेल का सफर तो बहुत दूर की बात रही। मेरी बातों को सुनकर चौबे जी ने भी लगभग वही उत्तर दिया जो मामा जी ने दिया था। उन्होंने कहा के विजय बाबू हम हारे तुम जीते और आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा न कभी पंप बंद होगा और ना ही जरनेटर का चलना। ईश्वर तुम्हारा हमेशा साथ दें यह मेरी दुआ है।
     नलकूप और जनरेटर चलाने के मामले में सिर्फ इन दो लोगों ने मेरा विरोध किया वह भी मेरी भलाई के लिए किंतु नलकूप व जनरेटर के मामले में इनका आशीर्वाद भी मेरा संबल बना। ईश्वर की कृपा पिताजी व अन्य पूर्वजों तथा संत महात्माओं की अनुकंपा भी मेरे ऊपर भरपूर है। इसी का परिणाम है कि आज तीन पंप और तीन ही जरनेटर हैं। तीन जनरेटर इसलिए हैं कि पहले कभी एक जरनैटर खराब हो जाता तो दूसरा जनरेटर लाया गया। एक बार तो ऐसा हुआ कि आधी रात के समय एक-एक करके अचानक दोनों ही जरनैटर खराब हो गए।
     रात के समय दो बजे फोन करके सदर से मिस्त्री को बुलवाया तथा उसने एक जरनेटर तो हाथों-हाथ ठीक कर दिया। तभी मेरा सनकी पन और भी ताकतवर हो उठा। अतः तुरंत एक अन्य जनरेटर की व्यवस्था भी इन्हीं अदृश्य शक्तियों ने करा दी। ऐसा लगता है कि शायद मेरे पूर्व जन्मों के पुण्यों की पूरी किस्त एक ही साथ फलीभूत हो रही है। यही कारण है कि सारे बन्नक स्वत: ही बनते चले जाते हैं और मुझे कुछ करना भी नहीं पड़ता। सबसे ज्यादा सुंदर बात यह है पानीं न सिर्फ मीठा है बल्कि अत्यंत गुंणकारी भी है। लोग कहते हैं कि हम तो इस पानीं के बगैर रह ही नहीं पाते। कुछ तो बाहर जाते हैं तब भी अपने साथ पानीं ले जाते हैं।
     इस पानीं की जो खास बात है वह यह है कि पेट साफ रहता है और छोटे मोटे रोग स्वत: ही दूर हो जाते हैं। स्वाद मुझे वर्षा के जल जैसा लगता है। सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक बात यह है कि इस पानीं को एक शीशी में भरकर रख दो तथा दूसरे अन्य पानीं को भी एक अन्य शीशी में भरकर रख दो तो दूसरे पानीं का कुछ माह बाद स्वाद बदल जाता है तथा और ज्यादा दिन रखने पर बदबू आती है और कीड़े भी पड़ने लगते हैं तथा इस पानीं को वर्षों तक रखने पर भी न स्वाद बदलता है और ना ही दुर्गंध आती है और कीड़े पड़ने का तो मतलब ही नहीं। यह भी कहा जाता है कि जिस पानीं की खिंचाई ज्यादा होती है वह बढ़िया होता चला जाता है।
     यह बात मुझसे कई लोगों ने कही है। हालांकि मैंने न इसकी कभी जांच पड़ताल की न किसी लेबोरेटरी में टैस्ट कराया। सबसे दुर्लभ बात तो यह है कि लगभग तीन दशक होने को आए न कभी पानीं का स्रोत समाप्त हुआ और ना ही अर्थ की कोई दिक्कत आई। इसे मैं ईश्वरीय चमत्कार और पूर्वजों का पुण्य प्रताप ही मानता हूं। साथ ही साथ पानीं पीने वालों की दुआ भी।

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