मथुरा। एक कहावत है कि पूत के पांव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं। ये जो हमारे डी.एम. साहब हैं इनके पांव तो तभी दिखाई दे गए थे, जब ये दो दशक पहले मथुरा में सिटी मजिस्ट्रेट हुआ करते थे। उस समय भी इन्होंने ऐसी जबरदस्त छाप छोड़ी थी कि इनके जाने के बाद भी लोग बहुत याद करते रहते। शायद मथुरा के लोगों की याद ही इन्हें पुनः खींच लाई होगी।
शैलेंद्र कुमार सिंह जी को मैं शैलजा कांत जी की फोटो कॉपी क्यों कह रहा हूं? यह बताने की जरूरत नहीं है। महीनों पहले की बात है मुझे इनकी हुड़क सी आई और मैंने बिना किसी वजह के फोन मिला दिया। समय था रात सवा नौ बजे का। बातचीत के दौरान इनके मुंह से किसी से मिस्सी रोटी जैसा शब्द कहने का आभास हुआ, तो मैंने कहा कि मुझे नहीं मालूम था कि आप खाना खा रहे हैं। अब आप भोजन कीजिए बस हमारी आपकी दुआ सलाम हो गई फिर बात करेंगे।
इतना सुनते ही शैलेंद्र जी बोले कि नहीं नहीं अभी खाना कहां। अभी तो मैं परिक्रमा देकर तुरंत ही आकर बैठा हूं। मैंने कहा कि गोवर्धन की परिक्रमा देकर आए हो? उन्होंने कहा कि हां। इसके बाद उन्होंने बताया कि आधी परिक्रमा लगा आया दो घंटे में बाकी आधी फिर किसी दिन लगाऊंगा। उनका कथन था कि जब-जब मौका मिलता है आधी आधी करके परिक्रमा लगा लेता हूं। उस दिन रविवार था और ठंड के दिन थे। यह तो एक छोटी सी बानगी है। इनके बारे में सरलता, सादगी, विनम्रता, ईमानदारी, सच्चाई बल्कि यों कहूं कि संतत्व वाले सभी गुण विद्यमान हैं। यही कारण है कि मुझे इनके अंदर संत शैलजा कांत की झलक दिखाई देती है।
जब ये आऐ ही आऐ थे तब शैलजा कांत जी ने इनसे पहली मुलाकात के बाद मुझसे कहा था कि शैलेंद्र जी में सज्जनता और कर्मठता दोनों ही भरपूर हैं। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति में सज्जनता होगी तो कर्मठता का अभाव होगा और यदि कोई कर्मठ होगा तो सज्जनता की मात्रा कम होगी किंतु शैलेंद्र जी तो सज्जनता और कर्मठता के मिश्रण हैं। मात्र एक मुलाकात के बाद उन्होंने तुरंत जच कर लिया कि शैलेंद्र कुमार सिंह क्या हैं? शैलजा कांत जी की पहली नजर ने क्षण भर में सब कुछ भांप लिया।
आधी रात तक फाइलें निपटाना व अन्य जरूरी कार्यों का निस्तारण करना और फिर निढाल होकर निद्रा देवी की गोद में पहुंच जाना। ये सब बातें यह सोचने के लिए मजबूर करती हैं कि ये अफसरी करने आये हैं या ब्रज वासियों की चाकरी। ईश्वर चिंतन में लगे रहकर ब्रज वासियों की सेवा में तत्पर रहना बड़ी बात है। मुझे तो लगता है कि इनको पूज्य देवराहा बाबा महाराज ने अपने परम प्रिय शिष्य संत शैलजा कांत के कार्यों में हाथ बंटाने के लिए बुलवाया है। शैलजा कांत जी से बाबा कहते थे कि शैलेश भगत तुमको रिटायर होने के बाद फिर दोबारा यहां आकर यहां की मिट्टी में लोटपोट होना है और ब्रजभूमि की सेवा करनीं है।
ठीक इसी प्रकार शैलेंद्र कुमार जी भी पहले सिटी मजिस्ट्रेट और अब डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट होकर दोबारा आये हैं। मिश्रा जी भी तो पहले पुलिस कप्तान और अब उ. प्र. ब्रज तीर्थ विकास परिषद की कमान संभाले हुए हैं। यह बात भी पक्की है कि संत शैलजा कांत शैलेंद्र जी को रिटायर होने तक नहीं छोड़ेंगे। इन्हें रिटायर होने में लगभग दो वर्ष बचे हैं। मुझे तो लगता है कि रिटायर होने के बाद भी शैलेंद्र जी कहीं ब्रज तीर्थ विकास परिषद में कोई सम्मान जनक कुर्सी न संभाल लें। यह बात में इसलिए कह रहा हूं कि शैलेंद्र जी के ऊपर बाबा महाराज की कृपा के बाद सूबे के मुखिया योगी महाराज की विशेष कृपा है और फिर तीसरी कृपा योगी महाराज की नाक के बाल शैलजा कांत महाराज जी की भी तो है। कहते हैं कि एक और एक मिलकर ग्यारह होते हैं। यह तो ग्यारह से भी तीन गुने हो गये। अब भला कौन सी ताकत इन्हें ब्रजभूमि से पलायन करने देगी।
परमपिता परमात्मा और देवराहा बाबा महाराज की कृपा ब्रजभूमि पर ऐसी बरसे कि शैलजा और शैलेंद्र की जोड़ी दीर्घकाल तक ब्रज रज में लोटपोट होती रहे।
विजय गुप्ता की कलम से