मथुरा को यूं ही तीन लोक से न्यारी नहीं कहा जाता मथुरा में बृजवासियों के समक्ष या बृजवासियों के बीच बहुत वर्षों तक भगवान श्री कृष्णा भी नहीं रहे उन्हें भी यहां से जाकर के द्वारका बसानी पड़ी आपको बताते चलें कि इस ब्रजभूमि ने जहां राजाओं को सर माथे पर बिठाया तो वही चुनाव में होने पटकने देने से भी बाज नहीं आए ब्रजभूमि से राजवंश से ताल्लुक रखने वाले तमाम राजनेताओं ने अपना भाग्य आजमाया है। इनमें से तीन राजवंशी ही राजपाट पाने में सफल हुए। पाँच राजवंशी सफल नहीं हो पाये । स्वतंत्र भारत के पहले लोकसभा चुनाव से ही यहाँ पर राजघरानों ने अपना भाग्य आजमाना शुरू कर दिया। पहले चुनाव के दौरान ही मुरसान के हाथरस राजघराने के राजा महेंद्र प्रताप ने 1951 में निर्दलीय चुनाव लड़ा था, लेकिन वो हार गए। दूसरी बार 1957 में एक बार फिर चुनाव मैदान में भाग्य आजमाने के लिए कूद गए। इस बार ब्रजवासियों ने उन पर भरोसा जताया और जीत का ताज राजा साहब के सिर सज गया। इस चुनाव ने राजा महेंद्र प्रताप ने कांग्रेस के चौधरी दिग़म्बर सिंह को हराया था। 1962 में हुए तीसरे चुनाव में राजा महेंद्र प्रताप हारे और चौधरी दिगंबर सिंह जीते। 1969 के उपचुनाव में मथुरा से भरतपुर की रियासत से ताल्लुख रखने वाले राजा बच्चू सिंह चुनाव मैदान में उतरे। उन्हें दिगंबर सिंह ने हरा दिया। 1984 में हुए चुनाव में कांग्रेस की सहानभूति के कारण मथुरा से कांग्रेस की टिकट पर अवागढ़ राजघराने से संबंध रखने बाले कुंवर मानवेन्द्र सिंह चुनाव लड़े और जीते । दूसरी बार फिर 1989 के आम चुनाव में कुँवर मानवेंद्र सिंह जनता दल के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे। राजघराने से ताल्लुक रखने वाले पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह को पराजित किया था। 1991 में हुए चुनाव के दौरान भरतपुर के राजा विश्वेन्द्र सिंह को भाजपा के सच्चिदानंद साक्षी ने करीब डेढ़ लाख वोटों से हराया था। 1998 के हुए चुनाव में कुंवर मानवेन्द्र सिंह ने तीसरी बार भाग्य आजमाया लेकिन भाजपा के तेजवीर सिंह ने हरा दिया था। 2004 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर मानवेन्द्र सिंह कांग्रेस की टिकट पर लड़े और जीते । 2009 के चुनाव में कांग्रेस के ही टिकट पर पांचवी बार मथुरा से चुनाव लड़ा लेकिन रालोद और भाजपा के गठबंधन प्रत्याशी रहे जयंत चौधरी ने उन्हें हरा दिया। 16 वीं लोकसभा के आम चुनाव में रालोद का गठबंधन कांग्रेस से हुआ लेकिन भाजपा से चुनाव मैदान में उतरी हेमा मालनी ने उन्हें करारी हार दी और हेमा यहाँ से रिकॉर्ड मतों से जीत कर संसद पहुंची, जो कि आजतक बरक़रार हैं।
रिपोर्ट रवि यादव