Saturday, November 23, 2024
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जब भूत ने मेरा नाम रखा भोंपू

मथुरा। एक बार एक भूत ने मेरा नाम भोंपू रख दिया। बात लगभग चार दशक पुरानीं है। उन दिनों मैं पत्रकारिता से कोसों दूर था तथा अपने घर के निकट यमुना पर बने रेल के पुल पर पैदल चलने वालों के लिए रास्ता बनवाने का जुनून मेरे सर पर सवार था क्योंकि पुल पर आए दिन लोग रेल से कटकर मर जाते थे। इसी चक्कर में मेरा अखबार वालों से संपर्क होता रहता था और मैं अखबारों के कार्यालय ही नहीं संवाददाताओं के घरों तक पर दस्तक देता रहता था।
     इसी दौरान एक पत्रकार के यहां भी मैं अक्सर समाचार छपवाने के चक्कर में जाता रहता था। उनकी पत्नी के ऊपर अक्सर एक भूत महाशय सवार हो जाते थे। भूत जी जब उनकी पत्नी पर सवार होते तब उनकी पत्नी की आवाज मर्दानीं हो जाती तथा रूप स्वरूप भी एकदम परिवर्तित हो जाता था। भूत महाशय कहते थे कि यह मेरे पिछले जन्म की बीवी है। मैं इसे नहीं छोड़ सकता वे मुसलमान थे तथा पिछले जन्म की मुसलमान बीवी इस जन्म में हिंदू थी।
     खैर हमें इस बात से क्या लेना देना कि कौन हिंदू था और कौन मुसलमान। इस बात को तो हम लोग ही मानते हैं भूत प्रेत तो हिंदू मुसलमान वाली सांप्रदायिक भावना से कोसों दूर रहते हैं यदि भूत प्रेत इस बात को मानते तो वह भूत अपनी पूर्व जन्म की महबूबा के सर क्यों आता। उसे तो यह सोच लेना चाहिए कि अब तो तू हिंदुओं में जन्म ले चुकी है तो तेरा मेरा क्या वास्ता लेकिन उसने सांप्रदायिक भावना से दूर रहकर प्यार मोहब्बत वाली भावना का धर्म निभाया और अक्सर उसका सानिध्य पाने के लिए आता रहता था।
     खास बात यह है कि भूत भी मेरी तरह मजाकिया स्वभाव का था। उसने उक्त पत्रकार के यहां आने वाले लोगों के उपनाम रख रखे थे जिनमें मेरा नाम “भोंपू” कर रखा था तथा पुराने जमाने के ख्याति प्राप्त मोहन पहलवान के बेटे श्याम सुन्दर शर्मा के लिए वह लम्बू कहता था। श्याम सुंदर शर्मा की लंबाई बहुत अधिक थी तथा मेरी आवाज तो भोंपू जैसी है ही इसे तो सभी जानते हैं। खैर अन्य लोगों के क्या क्या नाम रखें यह मुझे ज्ञात नहीं।
     मेरी आवाज भोंपू जैसी है इस बात का मुझे तब पता चला जब रेल के पुल पर पैदल चलने वालों का रास्ता बना तब हमारे घर पर एक कार्यक्रम हुआ जिसमें जनप्रतिनिधि व अधिकारी भी शामिल हुए। उस समय टेप रिकॉर्डर का चलन कम था और हमारे घर पर नया नया टेप रिकॉर्डर आया था। अतः मैंने उस टेप को एक टेबल पर चालू करके रख दिया ताकि सभी के वार्तालाप को बाद में सुन सकें।
     जब कार्यक्रम खत्म हुआ तब मैंने उस टेप को चालू करके सुना तो मुझे अपनी खुद की फटे बांस जैसी कर्कश आवाज को सुनकर बहुत बड़ा सदमा सा लगा। क्योंकि इससे पहले मैंने अपनी आवाज टेप के द्वारा नहीं सुनी थी। अपनी बेसुरी आवाज के कारण मुझे कभी-कभी अजीब सा महसूस होता है किंतु उसके लाभ भी हैं क्योंकि मेरी आवाज फोन पर सुनते ही लोग तुरंत पहचान जाते हैं भले ही दस बीस साल बाद बात क्यों न हों।
     कोई कोई तो मेरी आवाज को जनानीं भी समझने लग जाता है। अभी पिछले साल की बात है। मैंने सुप्रसिद्ध कवि पत्रकार एवं साहित्यकार स्व. देवकीनंदन कुम्हेरिया का मोबाइल मिलाया तो उनकी पत्नी ने उठा लिया मैंने कहा कि कुम्हेरिया जी से बात करा दो इस पर उनकी पत्नी ने कुम्हेरिया जी को फोन दे दिया। कुम्हेरिया जी ने फोन लेकर मेरी आवाज सुनते ही कहा कि अरे गुप्ता जी आप हैं। इस पर उनकी पत्नी को समझ आ गई कि यह कोई आदमी बोल रहा है, तो वे कुम्हेरिया जी के बात करते-करते में ही बीच में जोर से चिल्लाईं कि “जे आदमी है कै बाइयर है”। ग्रामीण भाषा में औरत को बइयर कहते हैं। इतना सुनते ही कुम्हेरिया जी ने अपनी पत्नी को डपटा कि चुप रह का बक बक कर रई है। उस समय मेरा हंसते-हंसते बुरा हाल हो गया।
     चलते चलते एक और रोचक किस्सा बताने का मन है। लगभग तीस वर्ष पहले की घटना है मैंने एक बड़े अधिकारी शायद ए.डी.एम.थे के घर पर फोन मिलाया फोन उनकी पत्नी ने उठा लिया उनके हलो कहते ही मैंने पूछा साहब हैं क्या? इस पर वह बोलीं कि क्या काम है? मैंने कहा कि काम उन्हीं से है आपके मतलब की बात नहीं है। असल में वह मुझे महिला समझ बैठी थीं, फिर उन्होंने कहा कि अरे हमें भी तो बता दो ऐसा क्या खास काम है साहब से। मैंने कहा कि आप उन्हें फोन दे दीजिए मुझे जरूरी काम है। इस पर वह बोलीं कि मैडम साहब से ही सारी बात करोगी क्या? हमसे भी कुछ बात कर लो यानीं वह मुझसे चुहलबाजी करने लगी तब मुझे एहसास हुआ कि यह तो मुझे औरत समझ रही हैं। उसके बाद मैंने अफसर पत्नी से कहा कि आप मुझे गलत समझ रहीं हैं। मैं आदमी हूं औरत नहीं मेरा नाम विजय कुमार गुप्ता है तथा फंला अखबार से बोल रहा हूं।
     इतना सुनते ही उस बेचारी पर घड़ौं पानी पड़ गया और यह कहकर फोन काट दिया कि साहब इस समय बाथरूम में हैं बाद में बात कर लेना।

विजय गुप्ता की कलम से

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