Saturday, November 23, 2024
Homeविजय गुप्ता की कलम सेराष्ट्रपति प्रधानमंत्री आदि वीवीआईपी की सुरक्षा के नाम पर जनता पर अत्याचार...

राष्ट्रपति प्रधानमंत्री आदि वीवीआईपी की सुरक्षा के नाम पर जनता पर अत्याचार क्यों?

विजय गुप्ता की कलम से

     मथुरा। बहुत दिन पहले समाचार पत्रों में एक खबर प्रमुखता से छपी थी कि तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की सुरक्षा के नाम पर रोके गए यातायात में फंसकर एक महिला की जान चली गई। यह बड़ी शर्मनाक बात है कि आए दिन इस प्रकार की वारदातें होती रहती हैं। पुलिस वालों पर दिखावटी कार्यवाही का नाटक कर अपने कर्तव्य की इतिश्री करने का ड्रामा करके लीपापोती हो गई। जिसकी जान गई उसका क्या हुआ, उसे क्या मिला कोरी सहानुभूति?
     इस संबंध में एक बार मैंने तत्कालीन उप राष्ट्रपति स्व. शंकर दयाल शर्मा का ध्यान भी आकर्षित किया था, किंतु बजाय सहानुभूति पूर्वक मेरी बात को सुनने समझने के वे ऐसे उखड़ गए कि उन्होंने उसी समय प्रतिज्ञा कर ली कि मैं अब कभी मथुरा नहीं आऊंगा और अंत तक वे मथुरा आऐ ही नहीं। वे शायद मथुरा वृंदावन में राष्ट्रपति बनने की मनौती मांगने के लिए आऐ थे किंतु राष्ट्रपति बनने की मनौती पूर्ण होने के बाद भी उनकी गुस्सा नहीं गई और अपनी प्रतिज्ञा पर ही डटे रहे।
     घटनाक्रम इस प्रकार है, उस समय रविकांत गर्ग मंत्री थे। शंकर दयाल जी आगरा से हेलीकॉप्टर द्वारा मथुरा आऐ, उनके साथ रविकांत भी थे। हेलीकॉप्टर से उतरकर वे सीधे एम.ई.एस. के डाक बंगले पर गए वहां मैं तथा अन्य दो चार पत्रकार भी मौजूद थे। जब पत्रकारों ने उनसे मिलना चाहा तो वे सहर्ष तैयार हो गए और बातचीत शुरू हुई। उस दौरान जिलाधिकारी हरि कृष्ण पालीवाल तथा पुलिस अधीक्षक हरिश्चंद्र सिंह भी मौजूद थे। मैंने शंकर दयाल जी से पूंछा कि आपका मथुरा आना कैसे हुआ? इस पर उन्होंने कहा कि आया तो मैं आगरा था सोचा कि जब आगरा आया हूं तो फिर मथुरा वृंदावन भी होता चलूं। अतः ऐसे ही मथुरा वृंदावन आना हो गया कोई खास प्रयोजन नहीं था।
     मैंने उनसे कहा कि शर्माजी आपका तो ऐसे ही आना हो गया और इस चक्कर में जनता कितनी परेशान हो रही है? क्योंकि तीन दिन से जगह-जगह के रास्ते बंद करके (यातायात रोककर) रिहर्सल हो रही है। प्रोटोकॉल के नाम पर उत्पन्न हो रही इस स्थिति में आप कैसा महसूस करते हैं? बस मेरा इतना कहना था कि उन्होंने अपना हाथ माथे पर रखकर कहा कि मैंने मथुरा आकर ऐसा क्या गुनाह कर दिया? वे इतने व्यथित हुए कि उन्होंने प्रतिज्ञा कर ली कि अब मैं मथुरा कभी नहीं आऊंगा। पत्रकारों से भी उन्होंने फिर और कोई ज्यादा बात नहीं की।
     रविकांत जी ने मुझे बताया कि मथुरा से वृंदावन जाते समय गाड़ी में वे पूरे रास्ते पर उनसे इसी मुद्दे पर कहते रहे कि मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया, अब मैं मथुरा कभी नहीं आऊंगा। रविकांत जी पूरे समय उनके साथ रहे थे। इसके बाद बात आई गई हो गई किंतु एक रोचक बात यह हुई कि हमारे बड़े भाई सीताराम जी जो उन दिनों वृंदावन स्टेट बैंक के अधिकारी थे। उनके साथ गोवर्धन स्थित दान घाटी या मुखारविंद मंदिर के मुख्य सेवायत के पुत्र भी कार्यरत थे।
     भाई साहब ने कहा कि उनके साथी ने बैंक में सभी को बताया कि मेरे पिताजी गिर्राज जी की प्रसादी लेकर शंकर दयाल जी के राष्ट्रपति बनने के बाद दिल्ली जाकर उनसे मिले तथा गोवर्धन आने का न्योता दिया, क्योंकि शंकर दयाल जी से उनका बहुत पहले से ही परिचय था जब वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। न्योता मिलने पर शंकर दयाल जी ने कहा कि मैं एक बार मथुरा गया था तो वहां पर एक पत्रकार द्वारा मुझसे इस प्रकार की बेहूदा बात कही। अतः मेरा मन मथुरा आने का बिल्कुल नहीं है। और अंत तक वे मथुरा आऐ ही नहीं।
     मुख्य बात यह है कि वी.वी.आई.पी  की सुरक्षा के नाम पर जनता के साथ जो अन्याय व अत्याचार हो रहे हैं वे बड़े शर्मनाक हैं। सरकार को इस परंपरा को समाप्त कर देना चाहिए। मुझे तो यह आधुनिक प्रथा जो अंग्रेजों के समय से चली आ रही है सती प्रथा से भी ज्यादा बुरी लगती है।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments