Saturday, November 23, 2024
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जब सदाकांत जी मुझसे बोले अंडरवियर में देख लिया फिर पाजामा पहनने से क्या फायदा

मथुरा। बात कई दशक पूर्व उस समय की है जब सदाकांत जी मथुरा के जिलाधिकारी थे। दीपावली का दिन था और सुबह लगभग 11-12 बजे का समय रहा होगा। मैं अपने निवास “नवल नलकूप” पर फाटक के अन्दर अंडरवियर और बनियान पहने हुए खड़ा हुआ था, तथा वहां हो रही साफ-सफाई को देख रहा था। इसी दौरान जिलाधिकारी के मुख्य अर्दली सत्यप्रकाश मेरे पास आए और बोले कि गुप्ता जी साहब आए हैं। मैंने सड़क पर नजर डाली तो देखा कि बाहर गाड़ी खड़ी हुई है और सदाकांत जी उसमें बैठे हुए हैं।
     मैं थोड़ा सिटपिटा सा गया और अर्दली से बोला कि यार सत्तो तेरे साहब को कम से कम फोन करके तो आना था और फिर मैं यह कह कर ऊपर घर में तिड़ी लगाकर भागा कि रुक जा अभी आया दो मिनट में पाजामा पहन कर। उसके बाद मैंने झटपट पाजामा पहना और भागकर सदाकांत जी की अगवानी करने जा पहुंचा उनकी गाड़ी के पास। इसके पश्चात सदाकांत जी घर के अन्दर आए तथा सीढ़ियां चढ़ते हुए गलवहियां डालकर मस्ताने अन्दाज में बोले कि गुप्ता जी मैंने आपको अंडरवियर में तो देख ही लिया था अब पाजामा पहनने से क्या फायदा? मैंने भी नहले पर दहला जड़ते हुए उनसे कहा कि क्या अब इसे उतार दूं? इस पर वे खिलखिला कर हंसे और बोले कि नहीं नहीं अब पहन ही लिया है तो फिर इसे पहने ही रहो। दरअसल सदाकांत जी मुझसे बहुत स्नेह हम मानते थे तथा दिपावली के दिन बगैर सूचना दिए घर आने का उनका मंतव्य मुझे सरप्राइज देना यानि चौंकाना था। वे यारों के यार थे तथा जिससे मुहब्बत करते तो बेइन्तहां मुहब्बत करते तथा जिससे नफरत करते तो फिर उसकी तरफ देखना भी गवारा नहीं होता।
     अब बात अंडरवियर की चल रही है तो अंडरवियर से जुड़े अपने दो प्रसंग और बताने का मन है। यह घटना भी काफी पुरानीं है। रात के शायद नौ बजे का समय होगा किसी ने घंटी बजाई मैंने ऊपर पिंजर में से आवाज देकर पूछा कौन? इस पर नीचे सड़क पर खड़े हुए पवन चतुर्वेदी बृज बिहार वालों ने जवाबी आवाज दी कि गुप्ता जी मैं हूं पवन। इस पर मैं अपनीं उसी अंडरवियर बनियान वाली यूनिफॉर्म में नींचे गया और फाटक खोला। फाटक के खुलते ही मैं हतप्रभ रह गया क्योंकि जिला जज श्री जगमोहन पालीवाल और उनकी धर्मपत्नी भी पवन जी के साथ खड़े हुए थे। मैं जज साहब उनकी धर्मपत्नी तथा पवन जी को ऊपर घर में लाया तथा झटपट पाजामा पहन कर अपनी लाज रखी। जज साहब ने कहा कि गुप्ता जी अब हम मथुरा से जा रहे हैं और आपसे मिले बगैर भला कैसे जा सकते हैं? दरअसल जज साहब का प्रमोशन हाई कोर्ट में हो गया था तथा दूसरे दिन उन्हें इलाहाबाद के लिए रवाना होना था, वे भी मुझसे बहुत स्नेह मानते थे।
     इसी प्रसंग में तीसरी घटना भी आपको बताता हूं। यह बात तो बहुत ज्यादा पुरानीं है शायद चालीस वर्ष हो गए होंगे। जाड़े के दिन थे समय लगभग रात्रि के नौ बजे का रहा होगा, घंटी बजी तो मैंने ऊपर से आवाज दी कि कौन है? इस पर किसी ने कहा कि दरवाजा खोलो, मैं समझ नहीं पाया कि ठंड के दिनों में आखिर कौन आया है इतनी रात में, ऊपर से देखने पर एक जीप खड़ी दिखाई दे रही थी तथा चार पांच लोग थे। मैं अपनी उसी यूनिफॉर्म में सरपट नीचे दौड़कर गया और झटपट फाटक खोला। बाहर देखते ही मैं हतप्रभ रह गया क्योंकि मेरे सामने उस समय के जिला जज श्री गंगा शरण शर्मा उनकी धर्मपत्नी तथा परिवार के अन्य सदस्य खड़े हुए थे। मैंने कहा कि जज साहब इतनी रात में आप सब लोगों ने कष्ट किया। इस पर जज साहब बोले कि हमें देर इसलिए हो गई क्योंकि जीप रास्ते में खराब हो गई और उसे हम सभी लोगों ने बार-बार धक्का लगा लगाकर स्टार्ट कराया। बार-बार स्टार्ट होती और कुछ दूर चल कर फिर बंद हो जाती। मैंने उन सभी को घर में ऊपर लाकर बैठाया तथा हर बार की तरह इस बार भी पाजामा धारण किया। जज साहब ने कहा कि कल हम लोगों को जाना था मथुरा छोड़कर और आपसे मिलने का बहुत मन था।
     दरअसल बात यह थी कि जिस दिन जज साहब रिटायर हुए उसी दिन उन्होंने अपना सरकारी आवास खाली कर दिया तथा कचहरी स्थित हिन्दुस्तान होटल में ठहर गए। उन्होंने न सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल किया और ना ही किसी अन्य व्यक्ति की गाड़ी स्वीकार की तथा भाड़े पर एक खटारा सी जीप की और मन्दिरों के दर्शन करते हुए हमारे घर आए। जज साहब मूल रूप से हाथरस के रहने वाले थे तथा ईमानदारी की बेमिसाल नजीर थे। वे भी मुझसे बेहद स्नेह मानते थे, उनकी ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा की धमक हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक में थी। यही कारण था कि उन्हें रिटायर होने के बाद भी पूरे देश के एक न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। यह न्यायाधिकरण समूचे भारत के सरकारी नौकरी से संबंधित बड़े एवं विवादित मामलों के निस्तारण में अपना अन्तिम फैसला देता था। उनकी सादगी ईमानदारी और कर्तव्य परायणता को मैं भी सलाम करता हूं।
     यह मेरा सौभाग्य है कि मेरे जैसे फटीचर इंसान को भी इतने अच्छे और ऊंचे पदों पर बैठे लोगों का इतना स्नेह मिलता है शायद मेरे पूर्व जन्मों का कोई पुण्य बकाया चल रहा होगा।

विजय गुप्ता की कलम से

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