विजय गुप्ता की कलम से
मथुरा। बात उस समय की है जब इंदिरा गांधी आपातकाल के बाद हुई पराजय के पश्चात पहली बार सार्वजनिक रूप से बाहर निकलीं। मौका था आगरा महापालिका के सामने का, उस समय वे महापालिका की ऊपरी मंजिल पर बनी खुली जगह से भाषण देकर उतरीं तथा अपनी खुली जीप पर खड़ी हो गईं और किसी अन्य स्थान पर जाने की तैयारी थी।
मैं उस समय वहीं पर मौजूद था।मैंने जो कुछ वहां देखा शायद उसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।उस समय इंदिरा गांधी के पास खड़ी एक अन्य जीप पर रिपब्लिकन पार्टी (जैसे आज बसपा है) का राष्ट्रीय अध्यक्ष बीपी मौर्या मौजूद था। अचानक किसी बात पर एक अन्य दूसरे नेता से बीपी मौर्य की जोरदार तड़का भड़की हो गई। इसी मध्य बीपी मौर्या ने इंदिरा गांधी के सामने ही दूसरे नेता को अश्लील गालियां बकने शुरू कर दीं। गालियां अत्यंत गंदी और भद्दी थीं यह सब देखकर मैं भौचक्का रह गया और इतना क्रोध आया कि पूंछो मत।
इंदिरा गांधी इस दौरान स्तब्ध रह गईं किंतु वे कुछ बोली नहीं सिर्फ चुपचाप खड़ी रहीं। उसी दौरान उनकी गाड़ी आगे बढ़ गई तथा बीपी मौर्या दूसरे नेता को गालियां बके जा रहा था। मैंने आव देखा न ताव और बीपी मौर्य से चिल्लाकर कहा कि मौर्या जी यह तुम्हारा दोष नहीं है यह तो तुम्हारी……….. का असर है। इतना सुनते ही वह अन्य नेता से उलझना छोड़ यह कहते हुए कि ठहर जा अभी बताता हूं तुझे, मेरी तरफ आक्रामक हुआ। उसको अपनी ओर लपकते हुए देख मैं तुरंत मुड़कर भीड़ में लोप हो गया
मुझे इस बात का बेहद सुकून है कि मैंने अनगिनत लोगों की भीड़ के मध्य उसे उसकी औकात बता दी। साथ ही इस बात का भी चैन है कि मैं उसके हाथ नहीं आया वरना मेरा कचूमर निकाले बगैर नहीं छोड़ता। क्योंकि मैं तो कच्ची उम्र का मरियल सा था और वह भैंसे जैसा संड मुस्टंड। हां एक बात का बेहद अफसोस है कि यदि यही बात मैं उससे इंदिरा गांधी के सामने कह देता तो मजा कुछ और ही होता। शायद मन ही मन इंदिरा जी को मेरी सच्ची बात बहुत अच्छी लगती। सबसे ज्यादा घ्रणित बात तो मुझे यह लगी कि एक महिला और वह भी प्रधानमंत्री रह चुकी विश्वविख्यात हस्ती, उनके सामने मौर्या ने इस प्रकार की नींच हरकत की। इस बारे में सैकड़ों वर्ष पूर्व सब कुछ तुलसीदास जी रामायण की चौपाई में कह चुके हैं। इंदिरा गांधी ने इसे अपनी पार्टी से इसलिए जोड़ लिया क्योंकि इमरजेंसी के बाद जगजीवन राम उनका साथ छोड़ गए थे और उनके विकल्प के रूप में यानी दलित वोटों के चक्कर में इसे पाल लिया। जिस समय यह घटना हुई उससे कुछ समय पूर्व ही इंदिरा गांधी ने इसे अपनी कांग्रेस (आई) का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया था।
आगरा की उस जनसभा के बाद ही इंदिरा गांधी राजनीति में पुनः सक्रिय हुईं क्योंकि इमरजेंसी में हुई देश की प्रगति पाकिस्तान के दो टुकड़े करके बंगलादेश बनवाने और खालिस्तान की मांग को लेकर उत्तपात मचाने वाले सिख उग्रवादियों में भुस भर देने के कुछ मामलों से मैं इंदिरा गांधी का एक प्रकार से भक्त था। मुझे जैसे ही यह पता चला कि इंदिरा गांधी अमुक दिन ताज एक्सप्रेस से आगरा जायेंगी तुरंत मैंने ताज में अपनी रिजर्वेशन भी करा ली आगरा की क्योंकि उस समय शायद बगैर रिजर्वेशन के ताज का सफर नहीं होता था।
यही नहीं इंदिरा गांधी का सानिध्य पाने की ललक के चक्कर में मैं लौटते समय जिस प्रथम श्रेणी की बोगी में इंदिरा गांधी को वापस दिल्ली लौटना था (वह पूरी होगी इंदिरा गांधी व अन्य कांग्रेस के लोगों के लिए आरक्षित थी) ताज के रवाना होने से काफी देर पहले ही चुपचाप उस बोगी के शौचालय में जाकर छिप गया। जब रेल चली तब बाहर आ गया और इंदिरा गांधी से नमस्कार व क्षणिक मुलाकात हुई। जब मैं उनके पैर छूने लगा तो वह बोली कि बस बस और फिर पैर छुआ लिए।
फिर उन्होंने मुझसे पूंछा कि कहां के रहने वाले हो? मैंने उन्हें बताया कि मथुरा का हूं आप अब मथुरा आइए। इस पर वे बोलीं कि जरूर आऊंगी। उनका सानिध्य पाकर मुझे अपार खुशी मिली किंतु एक गलती हो गई कि उन्हें यह बताने का ध्यान हड़बड़ाहट में नहीं रहा कि उस गंदे इंसान मौर्या को मैंने उसकी औकात बता दी, क्योंकि उसने आपके सामने गंदी गालियां बकी थीं। शायद उन्हें यह सुनकर सुकून मिलता।