मथुरा। अब तक तो मैं पचास साठ साल पुराने तक के किस्सों को लिखकर गड़े मुर्दों को उखाड़े जा रहा था किंतु आज एक ऐसा ताजा और रोचक किस्सा बताता हूं जिसका मैं खुद भुक्तभोगी हूं।
बात अभी पन्द्रह बीस दिन पहले की है। अखबार में मैंने एक समाचार पढ़ा कि किसी ने किसी की आंखों में फेवीक्विक डालकर दुश्मनीं निकाली। वैसे फेवीक्विक है बड़ी खतरनाक चीज एक बूंद भी अगर उंगली से लग जाए और वह भूल चूक में दूसरी उंगली या शरीर के किसी अन्य भाग से छू जाय तो क्षण भर में ऐसी चिपक जाती है कि फिर बगैर ऑपरेशन किए छूटती नहीं। यदि किसी की आंख में एक बूंद भी डल गई तो फिर समझ लो उसकी आंख हमेशा के लिए गई।
इस समाचार को पढ़कर मेरे मन में बड़े अजब गजब के आइडिया आने लगे। मैं सोचने लगा कि जघन्य अपराधियों को लंबे या आजीवन कारावास अथवा फांसी आदि के बजाय आंख कान नाक अथवा मुंह में फेविक्विक डालने की सजा दी जानी चाहिए। यानी जैसा जिसका अपराध वैसी उसकी सजा। फांसी वालों के तो आंख, कान, नाक व मुंह में फेविक्विक डाल देनी चाहिए ताकि वे तड़फ तड़फ कर मरें।
इसके अलावा एक कुविचार भी मेरे शैतानी मन में घुटमन घुटमन चलने लगा कि कभी मुझे भी किसी ने दुश्मनीं निकालनी हो तो क्यों न मौका लगते ही उसकी आंख में फेविक्विक की एक बूंद टपका देनी चाहिए? दरअसल मेरे अंदर एक दैत्य है और एक देवता। इन दोनों की अंदर ही अंदर कुश्ती चलती रहती है। वैसे तो अधिकतर देवता का साम्राज्य रहता है किंतु कभी-कभी दैत्य महाराज भी देवता पर भारी पड़ जाते हैं क्योंकि कलयुग जो है। और वैसे भी प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में कई जगह उल्लेख मिलते हैं कि राक्षस देवताओं पर भारी पड़ गए और देवताओं को सिर पर पैर रखकर भागना पड़ा।
मेरे मन में ही क्या सुर असुर तो सभी के अंदर विद्यमान रहते हैं फर्क इतना है कि किसी के अंदर का सुर बड़ा होता है और किसी का असुर। मन के अंदरूनी विचारों पर किसी की लगाम तो है नहीं। कहते हैं कि चित्त तो बड़ा चंचल होता है तथा चलायमान रहता है अभी यहां है और क्षणभर में कलकत्ता बम्बई पहुंच जाय। वैसे सही बात बताऊं कि भले ही कोई मेरा कितना भी बड़ा दुश्मन क्यों न हो ऐसा खुराफाती काम तो मैं प्रैक्टिकल में कभी भी नहीं कर सकता। यह तो सिर्फ मन की अंदरूनी खुराफात थी। खैर अब मैं मतलब की बात पर आता हूं। अखबार में पढ़ी फेवीक्विक वाली खबर के कुछ ही दिन बाद एक घटना घटी।
हमारे आजीवन साथी मनोज तौमर की लगभग चार साल की पुत्री गनुश्री जो हम सभी परिवारी जनों की आंखों का तारा है। अपनी प्लास्टिक की चप्पल लेकर मेरे पास दौड़ी दौड़ी आई और बोली कि “बाऊजी मेरी चप्पल टूट गई है इसे सई कर दो” मैंने कहा कि मैं कोई मोची तो हूं नहीं जो जूते चप्पलों की मरम्मत करूंगा और वैसे भी इस समय में लिखने में व्यस्त हूं तू जा बाद में बात करना। खैर वह मेरे बार-बार समझाने के बाद भी डटी रही और जिद पकड़ बैठी कि “नहीं तुम ही सई करो और अभी करो”। असल में उसकी कॉपी किताब का कोई पन्ना फट जाता है तो वह मेरे कमरे में आ जाती है और फिर मैं सेलो टेप से उसे जोड़ देता हूं उसी तर्ज पर वह चप्पल लेकर आ गई।
जब मेरी पेश नहीं खाई तो फिर हार झक मारकर मैंने उसके हाथ से चप्पल ली व उलट पलट कर देखा कि कैसे टूट गई और किस प्रकार यह सही होगी। उसका स्टेप आगे से निकल गया था। मैंने सोचा कि यह तो चुटकियों में सही हो जाएगी। और फिर स्टेप की बटन नुमा घुंडी को उसके छेद में पार करके जिस खांचे में घुंडी बैठती है उसमें दो चार बूंद फेवीक्विक टपका दिया ताकि वह हमेशा के लिए चिपक जाय। जब मैंने उस घुंडी को उसके खांचे में बैठाना चाहा तो वह थोड़ी टाइट सी लगी यानी उसके अंदर नहीं गई। इस पर मैंने अंगूठे की ताकत लगाकर जैसे ही बैठाया तो पिच्च की हल्की सी आवाज के साथ वह बैठ तो गई किंतु बड़ा गजब हो गया।
गजब यह हुआ कि इधर पिच्च की आवाज से वह खांचे में बैठी उधर फेवीक्विक की सूक्ष्म बूंदे छिटक कर मेरी आंखों के उस खांचे में पहुंच गईं जो पलकों के अंदर होता है। अब तो तुरंत मेरी आंखों में जलन हुई लेकिन भगवान ने मुझे सद्बुद्धि दे दी और मैंने तुरंत पलकों को बड़ी तेजी से खोलना और बंद करना शुरू कर दिया तथा कमरे के बाहर लगे नल पर भागा व दना दन पानीं के छमके आंखों में मारे। ईश्वर की ऐसी कृपा हुई कि एकाध मिनट में ही फेवीक्विक का असर जाता रहा और मैं सूरदास होते-होते बाल-बाल बच गया। गनु अपनी चप्पल चिपकने से खुश और मैं अपनी आंख न चिपकने की वजह से बेहद खुश।
मैं उसी दिन से बार बार सोचता हूं कि भगवान ने मुझे बुरा विचार मन में आने की सजा दी या यौं कहा जाए कि यह चेतावनी दी कि आगे से कभी कोई खोटी बात मन में मत लाना अथवा मेरे साथ मजाक किया कि हे भक्त तू तो सभी से ठिठोली करता रहता है। आज मैं भी तेरे साथ दिल्लगी कर लूं। यह भी हो सकता है कि भगवान ने एक तीर से दो शिकार किए हों यानी कि बुरे विचार के दंड स्वरूप हल्की-फुल्की चेतावनी भी दे दी और दिल्लगी भी कर ली। यानी की आंखों में फेविक्विक भी छिड़क दी और बाल बांका भी नहीं होने दिया। अर्थात गोली तो सीने में लग गई किंतु जान जाने की बात तो दूर घाव तक नहीं हुआ। इसी को कहते हैं ईश्वरीय कृपा का चमत्कार।
इधर बुरा विचार मेरे मन में आया उधर भगवान ने मजा चखाया
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